सहरिया : समाज एवं संस्कृति
जनजाति गौरव दिवस
शिव कुमार
सहरिया : समाज एवं संस्कृति
भारत की जनजातियों का इतिहास एवं संस्कृति भारत की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाता है। भारत की जनजातियों में राजस्थान एवं मध्य प्रदेश में निवास करने वाली जनजातियों में सहरिया जनजाति प्रमुख है। सहरिया राजस्थान में मुख्यतः बारां जिले के शाहाबाद एवं किशनगंज तहसील में रहते हैं। ये मध्यप्रदेश के शिवपुरी, गुना, मुरैना एवं श्योपुर जिले में भी बड़ी संख्या में निवास करते हैं।
सहरिया शब्द की उत्पत्ति ‘सहर’ से मानी जाती है, जिसका शाब्दिक अर्थ होता है जंगल, अर्थात वे जो जंगल में निवास करते हैं, ‘सहरिया’ कहलाते हैं। विद्वानों का मानना है कि सहरिया शब्द स+हरिया से बना है। स का अर्थ साथी एवं हरिया का अर्थ शेर है अर्थात सहरिया वह है जो शेर का साथी है। प्राचीन भारतीय संस्कृत साहित्य एवं बौद्ध साहित्य के अतिरिक्त फारसी साहित्य में भी सहरिया, सहर, सहरा आदि शब्दों का उल्लेख मिलता है। सहरिया का एक अर्थ कुल्हाड़ी से भी लिया जाता है। सहरिया हमेशा अपने साथ कुल्हाड़ी रखते रहे हैं। सहारियों की मान्यता है कि आदिदेव महादेव अर्थात शिव ने एक व्यक्ति की रचना की, जिसे सबर कहा गया और शिव ने इसे जंगल साफ करने के लिए कुल्हाड़ी प्रदान की। यही लोग सहरिया कहलाए।
सहरिया जनजाति के लोग महर्षि वाल्मीकि को अपना आदि पुरुष मानते हैं। राजस्थान के शाहाबाद जिले की किशनगंज तहसील के सीताबाड़ी में वाल्मीकि जी का एक प्रसिद्ध मंदिर है। सीताबाड़ी में सहरिया लोगों का एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसे ‘सहरियों का कुंभ’ कहा जाता है।
ये विभिन्न त्योहार होली, दीपावली, मकर संक्रांति, कृष्ण जन्माष्टमी, नवरात्र, भुजरिया आदि बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं। सहरिया समाज विभिन्न त्योहारों एवं मांगलिक अवसरों पर नृत्य एवं गीत के माध्यम से अपने आराध्य को याद करता है। सब मिलकर आनंद के साथ विभिन्न रीति-रिवाजों को संपन्न करते हैं। इनके लोकगीत एवं लोकनृत्य इनकी समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाते हैं। इनके द्वारा होली के अवसर पर गाए जाने वाले फाग या रसिया गीत बहुत ही रोचक होते हैं। इनके लोकगीतों में राम-रावण युद्ध, लक्ष्मण जी के मूर्छित होने, हनुमान जी द्नारा युद्ध में भाग लेने, कृष्ण-लीला आदि से संबंधित प्रसंग बड़े रोचक होते हैं।
इनके लोकगीतों में प्रकृति, ऋतु आदि का वर्णन भी बड़ा मनमोहक होता है। भुजरिया के समय महिलाएं सिर पर जवारा रखकर नदी की ओर जाते हुए बहुत ही श्रद्धा भाव से गीत गाती हैं। इनके लोकगीतों में सुख-दुख में सहयोग करने आदि से जुड़े प्रसंग हृदय को छू लेने वाले होते हैं।
इनके द्वारा स्वांग एवं लहंगी नृत्य बहुत ही सुंदर तरीके से किए जाते हैं। स्वांग नृत्य विभिन्न देवी देवताओं से जुड़े प्रसंगों पर आधारित होता है। नृत्य परंपरागत वाद्य यंत्रों ढोलकी, नगड़ी आदि के साथ बड़ी ही लय में सम्पन्न किए जाते हैं।
(प्राचार्य इतिहास, इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय)