होटल का नाम खादिम से अजयमेरु करना भारत के स्व का जागरण है

होटल का नाम खादिम से अजयमेरु करना भारत के स्व का जागरण है

डॉ. अभिमन्यु

होटल का नाम खादिम से अजयमेरु करना भारत के स्व का जागरण हैहोटल का नाम खादिम से अजयमेरु करना भारत के स्व का जागरण है

पिछले दिनों अजमेर के राजस्थान पर्यटन विकास निगम (RTDC) के होटल खादिम का नाम अजयमेरु कर दिए जाने के मामले ने तब तूल पकड़ लिया, जब दरगाह शरीफ के सरवर चिश्ती ने सरकार के इस निर्णय को सांप्रदायिक बता दिया। अजमेर दरगाह के खादिमों ने भी राज्य सरकार के इस निर्णय की निंदा की। अपने बयान में सरवर चिश्ती ने इसे इतिहास से छेड़छाड़ बताया। लेकिन हम वास्तव में इतिहास के पन्ने पलटें और इन शब्दों की जड़ों तक जाएं तो पता चलता है कि होटल ख़ादिम का नाम ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के ख़ादिमों के नाम पर रखा गया है। दरगाह शरीफ के मौलवियों को ख़ादिम कहा जाता है। वहीं दूसरी ओर अजयमेरु शब्द का सर्वप्रथम उल्लेख सातवीं शताब्दी A.D. में मिलता है। राजा अजयपाल चौहान ने अजयमेरु शहर बसाया था, जो समय के साथ अजमेर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। अब यदि हम ख़ादिम एवं अजयमेरु शब्द का विश्लेषण करें कि दोनों में से कौन सा शब्द सेक्युलर, हमारे वैशिष्ट्य, भौगोलिक परिस्थितियों, गौरवशाली राजनीतिक एवं सांस्कृतिक इतिहास, एकता में विविधता, बंधुतापूर्ण समाज एवं ‘स्व’ के भाव को प्रदर्शित करता है, तो अंदर से हमें एक ही उत्तर मिलता है और वह है ‘अजयमेरु’।

हमारा संविधान पंथनिरपेक्षता को बढ़ावा देने की बात कहता है, यदि इस कसौटी पर भी परखें तो ख़ादिम की तुलना में अजयमेरु शब्द खरा उतरता है। ख़ादिम जहाँ इस्लाम से जुड़ा शब्द है, वहीं अजयमेरु शब्द का किसी धर्म से कोई लेना देना नहीं है।

भौगोलिक अर्थ में देखें तो अजयमेरु का तात्पर्य है अजेय पहाड़ी। विश्व की सबसे पुरानी पहाड़ी अरावली की गोद में बसा अजयमेरु शहर हमारे भौगोलिक गौरव का भी परिचायक है।

राजनीतिक दृष्टि से देखें तो राजस्थान के अजमेर क्षेत्र की भूमि को चौहान राजवंश ने अपने खून पसीने से सींचा है, साथ ही कई विदेशी मुस्लिमों के आक्रमणों को विफल कर भारत भूमि की रक्षा की है। जब ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भारत आए और इस शहर में बसे, उस समय भी इस क्षेत्र को अजयमेरु के नाम से ही जाना जाता था। इसलिए जो नाम मोइनुद्दीन चिश्ती के आने से पहले से प्रचलित है, उस नाम पर होटल का नाम रखे जाने पर किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि सभी को गर्व होना चाहिए।

अजमेर के पुष्कर में ब्रह्मा जी का मंदिर, नारेली का जैन मंदिर एवं अजमेर में ख़्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह का होना हमारी विविधतामय सांस्कृतिक विरासत का उदाहरण है, इन सबका सम्बन्ध एक शब्द अजयमेरु से है अर्थात अजयमेरु नाम राजस्थान की सांस्कृतिक विविधता का द्योतक है। यदि इस नाम का कोई विरोध करता है, तो इसका एक ही अर्थ निकलता है कि वह भारत की विविधता पूर्ण संस्कृति में विश्वास नहीं करता।

आज जब हिमालय से हिन्द महासागर के तट तक के भू भाग पर रहने वाला हर भारतीय अपनी सांस्कृतिक, सामाजिक एवं राजनीतिक विरासत पर गर्व करता है, तब वह चाहता है कि उसके शहरों, होटलों या सार्वजनिक स्थानों के नाम भी वैसे ही हों, जो भारत के सांस्कृतिक, राजनीतिक व सामाजिक गौरव को प्रदर्शित करते हों। इस प्रकार होटल ख़ादिम के स्थान पर होटल अजयमेरु नाम किया जाना भारत के स्व का जागरण है, जिसमें किसी भी भारतीय को किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, बल्कि इस कदम का स्वागत करना चाहिए।

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