बच्चों में संस्कार हैं जरूरी

बच्चों में संस्कार हैं जरूरी

सीमा शर्मा

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किसी वृक्ष के लिए उसकी जड़ों का जो महत्व है, वही महत्व किसी मनुष्य के लिए उसकी संस्कृति और संस्कारों का होता है। आज पश्चिम के अंधानुकरण में हम अपनी इस विरासत से कटते जा रहे हैं। माता पिता अपने बच्चों को इनका महत्व बताये बिना, उन्हें अच्छा पैकेज मिले, पर अधिक ध्यान केंद्रित करने लगे हैं। परिणामस्वरूप एक जड़विहीन समाज तैयार हो रहा है। उसे न तो अपने ग्रंथों का ज्ञान है, न ही रीति-रिवाजों का महत्व पता है। उसकी शिक्षा केवल रोजगार तक सीमित रह गई है। इसके चलते हिन्दू बच्चे बड़ी आसानी से दूसरे मतावलम्बियों से प्रभावित हो जाते हैं, जिससे कई बार उनका जीवन यहॉं तक कि अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता है।

हिन्दू धर्म इस धरती पर सबसे पुराना है। इसका स्वरूप व्यापक है। हिन्दू धर्म में पंचतत्वों की बात की गई है। विज्ञान ने भी इस तथ्य को स्वीकारा है। भौतिक व सूक्ष्म-शरीर पर हजारों वर्ष पूर्व हमारे वेदों और उपनिषदों में विस्तृत रूप से लिख दिया गया था। पश्चिमी दुनिया के लिए यह चौंकाने वाला था। बाद में इसी ज्ञान के आधार पर यूरोपियंस ने अनेक पुस्तकें लिखीं। आज जब यही ज्ञान पश्चिम के लेखकों की पुस्तकों के माध्यम से भारत आ रहा है, तो वह खूब बिक रहा है। जैसे Cosmos, Power of sub- conscious mind की भारतीय अवधाराणाओं पर लिखी उनकी पुस्तकें युवाओं के बीच धूम मचा रही हैं। युवा उन्हें पढ़कर ज्ञानी बनना चाहते हैं, परन्तु हमारी संस्कृति में ऐसे हजारों ग्रन्थ हैं, जो बरसों के शोध के बाद लिखे गए हैं, प्रमाणित हैं, परंतु उन्हें दकियानूसी माना जाता है। युवा पीढ़ी की उन्हें पढ़ने में रुचि ही नहीं दिखती। इस अज्ञानता के चलते हिन्दू धर्म पर प्रहार करने वाले लोगों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे लोगों के छिछले तर्कों से प्रभावित होकर हमारा युवा अपने ही धर्म का उपहास उड़ाते प्रायः देखा जाता है। हमारे ग्रन्थों और रिवाजों पर हजारों भ्रामक और आलोचनात्मक विश्लेषणों से सोशल मीडिया भरा पड़ा है। आज स्थूल शरीर और भौतिकवाद को बढ़-चढ़कर प्रस्तुत किया जाता है। ये गंभीर विषय हैं, जिन पर विचार किया जाना नितान्त आवश्यक है। हम उधार के ज्ञान या नकल के बल पर कितना आगे बढ़ पाएंगे? हमारी ज्ञान परम्परा की समृद्धि के अनेक उदाहरण हैं, अल्बर्ट आइन्सटीन ने वैदिक काल से चले आ रहे मौलिक सिद्वांतों के आधार पर अपना आविष्कार किया था। कम्प्यूटर-जगत का बाइनरी सिस्टम हमारे वेदों से उठाया हुआ है। इसलिए हमें अपनी संस्कृति और पूर्वजों पर तो गर्व करना सीखना ही होगा। पूर्व में तो केवल हमारे मन्दिर और विश्वविद्यालयों को उजाड़कर हिन्दू समाज की शाखाओं पर ही प्रहार किए गए, परन्तु वर्तमान में हमारी जड़ों पर प्रहार किया जा रहा है। हमें इस षड्यंत्र को समझते हुए अपने बच्चों को अपनी संस्कृति और संस्कारों से जोड़ना होगा। यह तभी संभव है, जब उन्हें अपने पूर्वजों के ज्ञान, हिन्दू धर्म की व्यापकता, ब्रह्माण्ड से इसके जुड़ाव और वैज्ञानिक स्वरूप का बोध कराया जाए। यह दायित्व अभिभावकों के साथ ही पूरे हिन्दू समाज का है।

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