सामाजिक समरसता : यहॉं नव विवाहिता को मिल जाता है ससुराल के साथ ही नया मायका भी

सामाजिक समरसता : यहॉं नव विवाहिता को मिल जाता है ससुराल के साथ ही नया मायका भी

सामाजिक समरसता : यहॉं नव विवाहिता को मिल जाता है ससुराल के साथ ही नया मायका भीसामाजिक समरसता : जाट भाई ने भरा मेघवाल धर्म बहन की बेटियों का भात

मेड़ता। सामाजिक समरसता भारत के मूल में है। आज भी जो क्षेत्र वामपंथी और पश्चिमी विचारधारा के तड़के से दूर हैं, वहां समरसता की गहरी छाप है। राजस्थान के नागौर, जालोर, बाड़मेर आदि अनेक जिले ऐसे हैं, जहॉं के गांवों में परम्परा है, कि जब भी किसी गांव की लड़की विवाह करके यहॉं आती है, तो गांव का कोई न कोई परिवार उसको अपनी धर्म बेटी या बहन बना लेता है। इस तरह उस लड़की को नए स्थान पर भी मायका मिल जाता है। यह परिवार आजन्म उस लड़की के परिवार से बंध जाता है और सुख दुख में काम आते हुए सारे रीति रिवाज निभाता है। ऐसा ही एक परिवार दो दिनों से सुर्खियों में है।

नागौर जिले के मेड़ता शहर से 5 किमी दूर एक गांव है सारंगबासनी। दो दशक पहले संतोष देवी इस गांव में बहू बनकर आईं, तो गॉंव के ही रामपाल लालरिया ने उन्हें अपनी धर्म बेटी बना लिया। उस धर्म के रिश्ते को निभाते हुए रामपाल के पुत्र मेड़ता मंडी व्यापारी राजूराम लालरिया ने सोमवार को धर्म बहन संतोष देवी की तीन बेटियों की शादी में मायरा भरा, जिसमें उन्होंने में 1 लाख 11 हजार रुपए नकद, ढाई तोला सोने के जेवरात एवं वस्त्र उपहार में दिए।

समाजसेवी डॉ. अशोक चौधरी बताते हैं, इस क्षेत्र के लोगों के लिए यह सामान्य बात है क्योंकि अधिकांश परिवार इस परम्परा से बंधे हैं। बाहर से आई लगभग हर लड़की किसी न किसी परिवार की धर्म की बेटी या बहन है। ये परिवार आपस में सारे तीज त्यौहार वैसे ही मनाते हैं, जैसे खून का रिश्ता हो। अशोक बताते हैं, कई स्थानों पर तो बहन धर्म भाई को राखी बांधती है, अपने सगे भाई को नहीं। यह परम्परा है। इसके पीछे शायद धर्म भाई को विशेष सम्मान देने की भावना है।

सारंगबासनी गांव के प्रेमसुख मेहरा कहते हैं, लालरिया सम्पन्न परिवार से हैं, इसलिए उन्होंने बड़ा मायरा भरा। अन्य परिवार भी अपनी अपनी सामर्थ्य अनुसार धर्म के रिश्तों को सगे रिश्तों की भांति ही निभाते हैं। राजूराम लालरिया जाट समाज से हैं और संतोष देवी मेघवाल समाज से। ऐसे उदाहरण जातिवाद की राजनीति करने वालों के मुंह पर तमाचा हैं।

शायद मेहरा सही हैं। क्योंकि हिन्दू समाज में ऐसे अनेक उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं। सामाजिक सद्भावना हिन्दू समाज के स्वभाव में है, कोई ऐसे कामों का प्रचार प्रसार नहीं करता, इसलिए ऐसे प्रकरण लोगों की जानकारी में भी नहीं आ पाते। बस, कभी कभार कोई घटना मीडिया में आ जाती है, तो लोगों को पता चल जाता है।पिछले दिनों पाली जिले के निम्बली गांव में सामाजिक सद्भाव की एक घटना सामने आई थी, जिसमें अफ्रीका में व्यवसायी कुंवर तेजसिंह ने गांव में नवनिर्मित शीतला माता मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर मंदिर के शिखर पर अमर ध्वजा की चढ़ावा चढ़ाने की बोली स्वयं लेकर ध्वजा चढ़ाने का सम्मान गांव के ही एक वाल्मीकि परिवार को दिया।

भैंसरोडगढ़ में मांगू सिंह राठौड़ ने जनजाति समाज की बेटी कृष्णा भील का धर्म पिता बनकर उसका विवाह करवाया। कृष्णा भील के परिवार की माली हालत कमजोर है, ऐसे में मांगू सिंह राठौड़ उस परिवार का सहारा बने। मांगूसिंह ने कहा हिन्दू संस्कृति में कन्यादान को सबसे बड़ा दान कहा गया है। ईश्वर ने मुझे इस पुण्य का निमित्त बनाया, यह मेरा सौभाग्य है।

डॉ. अशोक चौधरी कहते हैं, भारत में सामाजिक भाईचारे की जड़ें सदियों पुरानी हैं। राजनीतिक क्षेत्र के स्वार्थी तत्व समाज को बांटने की कितने भी प्रयास कर लें, हिन्दू समाज बंटेगा नहीं। राजस्थान के हर गांव में एक जाति वर्ग के लोग दूसरे वर्ग के साथ प्रेम और सम्मान से रहते हैं। आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी हर पहल का प्रचार-प्रसार हो। सामाजिक समरसता इस देश की प्राणवायु है।

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