बालासाहब के कार्यों में डॉक्टर हेडगेवार की झलक स्पष्ट दिखती थी
बालासाहब के कार्यों में डॉक्टर हेडगेवार की झलक स्पष्ट दिखती थी
अगहन शुक्ल पंचमी संवत् 1971 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस का जन्म
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी यात्रा आरंभ हो गई है। लगातार हमलों के बीच भी यदि संघ का स्वरूप निरंतर विस्तृत हुआ है, तो उसका आधार संघ की समयानुकूल व्यवहारिक कार्यशैली है। संघ के तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस भी संघ की कार्यशैली में ऐसे ही व्यवहारिक विस्तार देने के लिये जाने जाते हैं। उनकी प्रत्येक भोपाल यात्रा से संघ कार्यकर्ताओं को नया उत्साह आया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना 1925 में हुई थी। लेकिन नियमित शाखाएँ लगभग डेढ़ वर्ष बाद आरंभ हुईं। बालासाहब संघ की प्रारंभिक शाखा के स्वयंसेवक बने, तब उनकी आयु मात्र ग्यारह वर्ष थी। इस शाखा का शुभारंभ संघ के संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने स्वयं किया था। स्वयंसेवकों के इस प्रथम शाखा में बालासाहब के साथ केशवराव वकील, त्र्यंबक झिलेदार, अल्हाड़ अंबेडकर, बापू रावदिवाकर, नरहरि पारखी, बाली यशकुण्यवर, माधवराव मुले और एकनाथ रानाडे भी थे। बालासाहब बचपन से बहुत कुशाग्र और तीक्ष्ण बुद्धि थे। विषय को सुनकर प्रस्तुतिकरण करने की उनमें अद्भुत क्षमता थी। इसलिये वे इस टोली के स्वभाविक समन्वयक के रूप में उभरे। डॉक्टर जी स्वयं इस शाखा के शिक्षक और संचालक थे। इसलिए बालासाहब सहित इस पूरी टोली की संघ शिक्षा डॉक्टर जी के माध्यम से ही हुई। बालासाहब देवरस के विषय प्रस्तुतिकरण में भी डॉक्टरजी की झलक स्पष्ट दिखती थी। समय के साथ संघ की संकल्पना, शिक्षा, और डाक्टरजी के मार्गदर्शन से बालासाहब देवरस इतने प्रभावित हुए कि संघ को माध्यम बनाकर अपना पूरा जीवन राष्ट्र और संस्कृति की सेवा में समर्पित कर दिया। बालासाहब देवरस ने संघ की स्थापना का उद्देश्य, कार्यशैली, सिद्धांत और व्यवहार सब डॉक्टर जी से ही समझा था। इसलिये उनके व्यवहार और प्रबोधन में डॉक्टरजी की झलक सदैव मिलती थी। बालासाहब देवरस द्वारा प्रस्तुत विषयों में गहराई और व्यापकता कुछ ऐसी होती थी कि श्रोता वर्ग में संघ के स्वयंसेवक हों अथवा समाज के प्रबुद्ध जन, सभी एकाग्र होकर सुनते थे। देवरसजी एक प्रचारक से लेकर सरसंघचालक तक लगभग सभी दायित्वों पर रहे। वे 6 जून 1973 को सरसंघचालक बने। 5 जून 1973 को संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर उपाख्य ‘गुरुजी’ का निधन हुआ। बालासाहब तब आंध्रप्रदेश के प्रवास पर थे। तब उनके पास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह का दायित्व था। वे गुरुजी के निधन की सूचना पाकर नागपुर पहुँचे। गुरुजी की अंतिम इच्छा के अनुरूप बालासाहब देवरस ने “सरसंघचालक” का दायित्व संभाला। संघ की परंपरानुसार गुरुजी संसार से विदा होने से पहले एक पत्र लिखकर देवरसजी को अपना उत्तराधिकार सौंप गये थे। वे लगभग दो दशक तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहे । जब उन्होंने सरसंघचालक का पदभार संभाला तब उनकी आयु 58 वर्ष थी । मधुमेह रोग ने भी उन्हें प्रभावित कर लिया था। फिर भी अपने शरीर और स्वास्थ्य की बिना परवाह किये उन्होंने देशव्यापी यात्रा की। उन्हीं दिनों भारत में महंगाई विरोधी आँदोलन तेज हुआ। यह आँदोलन जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हो रहा था। लेकिन व्यक्तिगत तौर हर क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता सहभागी हो रहे थे। आपातकाल के पूर्व के इन दो वर्षों में उन्होंने देशभर की व्यापक यात्रा की और समाज एवं राष्ट्रहित के लिये एकजुट होने का आह्वान किया। उनकी इन यात्राओं से समाज में संघ को लेकर वे भ्रांत धारणाएँ स्पष्ट होने लगी जो कतिपय संघ विरोधी शक्तियों ने फैला रखीं थीं। उनकी इन यात्राओं से एक ओर जहाँ संघ कार्यकर्ताओं में उत्साह आया, वहीं समाज में संघ का विस्तार भी हुआ। संघ कार्यकर्ताओं का यह उत्साह महंगाई विरोधी आँदोलन की ओर मुड़ गया। इस तथ्य से सरकार भी अवगत हो गई थी। आपातकाल लगने से पहले देवरस जी को आभास हो गया था कि प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी कोई कड़ा निर्णय ले सकती हैं। उन्होंने अपने आकलन से संघ के प्रमुख अधिकारियों को सावधान कर दिया था। यह देवरस जी की दूरदृष्टि थी कि आपातकाल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगने और देशभर में लगभग एक लाख स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद भी संघ की सक्रियता बनी रही और आपातकाल हटने के तुरन्त बाद से संघ पुनः अपनी गति से काम करने लगा।
कुछ परंपराओं को व्यवहारिक बनाया
बालासाहब देवरस ने संघ की कुछ परंपराओं को समयानुकूल व व्यवहारिक बनाया। इसमें सबसे पहले था “परम पूजनीय” संबोधन। जब उन्हें “परम पूजनीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस” संबोधित किया गया तो उन्होंने स्पष्ट किया कि “परम पूजनीय” संबोधन “सरसंघचालक” दायित्व के लिये हो व्यक्ति के लिये नहीं।
बालासाहब देवरस ने बौद्धिक परंपरा को उभय पक्षीय बनाया। उन्होंने विभिन्न स्तरों पर कार्यकर्ताओं के साथ संवाद की प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया। उनका मानना था कि यदि स्वयंसेवकों के मन में कोई प्रश्न उठ रहा है तो इसका समाधान होना चाहिए। इसलिये बौद्धिक समागम में शंका समाधान के लिये भी समय रहे।
संघ में सरसंघचालक का दायित्व सौंपने की एक परंपरा थी। वर्तमान सरसंघचालक अपने उत्तराधिकारी का चयन करके एक पत्र लिखकर रख देते थे, जो उनके निधन के बाद खोला जाता था। डॉक्टर जी के निधन के बाद उनका पत्र पढ़ा गया उसके अनुसार ही “गोलवलकर जी उपाख्य गुरुजी” को दायित्व सौंपा गया । और “गुरुजी” के पत्र के बाद यह दायित्व बालासाहब देवरस जी को मिला। लेकिन देवरस जी ने इस परंपरा में एक परिवर्तन किया। उन्होंने अपने जीवनकाल में सरसंघचालक का दायित्व रज्जू भैया को सौंप दिया था। रज्जू भैया ने भी इस परम्परा का पालन किया और अपने जीवनकाल में ही यह दायित्व सुदर्शन जी को सौंप दिया था। और सुदर्शन जी ने अपने जीवन काल में ही यह दायित्व वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी सौंप दिया था।
संक्षिप्त जीवन परिचय
बालासाहब देवरस का पूरा नाम मधुकर दत्तात्रेय देवरस था। लेकिन उन्हें बालासाहब देवरस के नाम से जाना जाता है। उन्हें मध्यप्रदेश से बहुत लगाव था। परिवार यद्यपि आन्ध्रप्रदेश का मूल निवासी था। लेकिन पिता दत्तात्रेय शासकीय सेवा के चलते मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले में रहे। बालासाहब का जन्म बालाघाट जिले के करंजा नामक स्थान पर अगहन शुक्ल पक्ष की पंचमी संवत् 1971 को हुआ था। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार उनकी जन्मतिथि 11 दिसम्बर 1915 थी। इस वर्ष यह पंचमी तिथि 6 दिसम्बर को पड़ रही है। पिता दत्तात्रेय कृष्णराव देवरस और माता पार्वती बाई दोनों भारतीय परंपराओं और मान्यताओं के लिये समर्पित थे। उनके जन्म के साथ ही पिता का स्थानान्तरण हुआ और परिवार नागपुर आ गया। बालासाहब की शिक्षा नागपुर के न्यू इंग्लिश हाई स्कूल में हुई थी। उन्होंने 1931 में मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। नागपुर महाविद्यालय से वकालत पास की। वे बाल स्वयंसेवक थे। पढ़ाई पूरी करके संघ के प्रचारक बने। प्रचारक के रूप में संघ कार्य विस्तार के लिये उन्हें पहला दायित्व बंगाल का मिला। 1946 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के का सह सरकार्यवाह और 1965 सरकार्यवाह बने। 6 जून, 1973 को संघ के सरसंघचालक बने। उनके दायित्व संभालने के दो वर्ष बाद ही देश में 25 जून 1975 को आपातकाल लागू हो गया। 30 जून को बालासाहब गिरफ्तार कर लिये गये। उन्हें यरवदा जेल में रखा गया। 4 जुलाई 1975 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा, जो 1977 तक जारी रहा। 21 मार्च 1977 को आपातकाल समाप्त हुआ और बालासाहब सहित संघ के अन्य कार्यकर्त्ता रिहा हो सके। आपातकाल के दौरान वे 20 महीनों से भी अधिक समय तक जेल में रहे।
सरसंघचालक के रूप में उनके कार्यकाल में संघ पर दूसरी बार प्रतिबंध 1992 में लगा। तब अयोध्या में बाबरी ढांचा ढहने के बाद 10 दिसंबर 1992 को नरसिम्हा राव सरकार ने संघ पर प्रतिबंध लगाया था, जो 6 माह तक लगा रहा था। बालासाहब 1994 तक सरसंघचालक रहे। स्वास्थ्य की गिरावट के कारण उन्होंने पद छोड़ दिया और प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया को संघ का सरसंघचालक नियुक्त कर दिया। 17 जून 1996 को देवरस जी ने देह त्यागकर संसार से विदा ले ली।