पत्तेदार सब्जियां बनीं जनजातीय महिलाओं की आजीविका का प्रमुख स्रोत

पत्तेदार सब्जियां बनीं जनजातीय महिलाओं की आजीविका का प्रमुख स्रोत

पत्तेदार सब्जियां बनीं जनजातीय महिलाओं की आजीविका का प्रमुख स्रोतपत्तेदार सब्जियां बनीं जनजातीय महिलाओं की आजीविका का प्रमुख स्रोत

बांसवाड़ा। जनजातीय क्षेत्रों की महिलाएं आज अपनी मेहनत और हुनर से न केवल अपने परिवार को आर्थिक रूप से सक्षम बना रही हैं, बल्कि बांसवाड़ा से बाहर के बाजारों तक भी अपनी पहचान बना रही हैं। सर्दी के इस मौसम में बांसवाड़ा का सब्जी बाजार हरियाली से भरा हुआ है। यहां बिकने वाली सब्जियों का बड़ा भाग उन जनजातीय महिलाओं द्वारा उगायी गई सब्जियों का है, जिन्होंने खेती को अपनी आजीविका का मुख्य स्रोत बना लिया है।

ये महिलाएं केवल स्थानीय बाजार तक सीमित नहीं हैं, बल्कि उदयपुर, अहमदाबाद और रतलाम जैसे बड़े शहरों में भी अपनी सब्जियों की आपूर्ति कर रही हैं। आंकड़ों के अनुसार, सर्दियों के समय प्रतिदिन 500 से 1000 किलो सब्जियां इन शहरों में भेजी जाती हैं।

महिलाओं द्वारा उगाई जाने वाली सब्जियों में पत्तेदार सब्जियां जैसे मेथी, पालक, धनिया, और मूली प्रमुख हैं। इन सब्जियों की खेती में कम समय लगता है और ये हाथों-हाथ बिकती हैं। इसके अतिरिक्त, बैंगन, गिल्की, तरोई, लौकी और चने जैसी फसलें भी उगाई जाती हैं। चने के पौधों के पत्ते भाजी के रूप में बेचे जाते हैं, बाद में हरे चने की बिक्री से अतिरिक्त आय होती है

इन सब्जियों की खेती मुख्य रूप से बांसवाड़ा जिले के कई गांवों में की जाती है। इनमें गागरी, उपला घंटाला, सूरापाड़ा, माहीडेम, चरपोटा बस्ती, झरी, खेरडाबरा, कटियोर, सेवना, माकोद, और घाटे की नाल प्रमुख हैं।

महिलाओं की मेहनत और परिवार का सहयोग

गागरिया गांव की बुजुर्ग महिला सवली चरपोटा ने बताया कि वे वर्षों से सब्जियों की खेती कर रही हैं। इसी प्रकार, घाटा की नाल की महिला किसान केसर निनामा ने बताया कि वे 25 सालों से सब्जी उगा रही हैं। उनका कहना है कि खेती का अधिकतर काम महिलाएं स्वयं करती हैं, लेकिन परिवार के सदस्य, विशेषकर बच्चे, सब्जियों को तोड़ने जैसे कार्यों में सहायता करते हैं।

पत्तेदार सब्जियों की विशेषता यह है कि ये 45 से 60 दिनों में तैयार हो जाती हैं और एक ही पौधे से कई बार पत्ते मिलते हैं। इससे महिलाओं को नियमित आय होती है। उनका कहना है कि सब्जियों की खेती करना सरल और लाभदायक है, क्योंकि ये जल्दी लाभ देती है।

नवाचार और परंपरा का संगम

जनजातीय महिलाएं न केवल पारंपरिक तरीकों से खेती कर रही हैं, बल्कि उन्होंने नवाचार को भी अपनाया है। उनकी मेहनत और संकल्प ने न केवल उन्हें आत्मनिर्भर बनाया है, बल्कि उनके गांवों को भी आर्थिक रूप से मजबूत किया है।

यह कहानी उन महिलाओं की है, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बाद भी अपनी कड़ी मेहनत और दृढ़ निश्चय से अपने परिवार और समाज के लिए उदाहरण प्रस्तुत किया है। ये महिलाएं न केवल आर्थिक रूप से सक्षम हो रही हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत कर रही हैं।

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