बार बार अपमानित हुए बाबा साहब आंबेडकर

बार बार अपमानित हुए बाबा साहब आंबेडकर

डॉ. अजय खेमरिया

बार बार अपमानित हुए बाबा साहब आंबेडकरबार बार अपमानित हुए बाबा साहब आंबेडकर

देश की संसदीय राजनीति में इन दिनों भारत रत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर चर्चा और राजनीतिक विवाद के केंद्र में हैं। कांग्रेस गृहमंत्री अमित शाह पर बाबा साहब के अपमान का आरोप लगाकर देश भर में एक नैरेटिव सेट करने की जुगत में है। उसका उद्देश्य भाजपा को बाबा साहब विरोधी साबित कर अनुसूचित जाति वोटों में राजनीतिक गोलबंदी करना है। कांग्रेस यह प्रयोग 2024 के लोकसभा चुनाव में सफलतापूर्वक कर चुकी है, जब पार्टी ने सुनियोजित इकोसिस्टम के माध्यम से संविधान बदलने और आरक्षण समाप्त करने का दुष्प्रचार कर महाराष्ट्र, यूपी, हरियाणा, बंगाल जैसे राज्यों में भाजपा के विजय रथ को रोक दिया था।

ध्यान देना होगा कि लोकसभा चुनाव में जो इकोसिस्टम कांग्रेस के साथ काम कर रहा था, उसके तार भारत से बाहर डीप स्टेट तक फैले थे। यही व्यापक तन्त्र अब संसद में अमित शाह के भाषण के एक अंश को शरारतपूर्वक मुद्दा बनाने में लगा है।

डॉ. आंबेडकर को लेकर राहुल गांधी और कांग्रेस के आक्रामक रुख के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पलटवार ने एक नई बहस को खड़ा कर दिया है। यह बहस बाबा साहब और कांग्रेस के रिश्तों पर आकर टिक गई है। यह भी देखना होगा कि आज संसद से सड़क तक बाबा साहब के सम्मान से अधिक अपमान पर चीखने वाली कांग्रेस ने क्या वास्तव में कभी बाबा साहब का सम्मान किया है? ऐतिहासिक तथ्य तो दीवार पर लिखी इबारत की तरह यही कहते हैं कि बाबा साहब सदैव कांग्रेस की आंखों में खटकते रहे। स्वाधीनता से पहले का कांग्रेस सिंडिकेट हो या फिर इस के बाद नेहरू, इंदिरा, राजीव से आगे बढ़ती सोनिया, प्रियंका, राहुल तक की वंशबेल। हर स्तर पर बाबा साहब कांग्रेस की सामंती राजनीति का शिकार रहे हैं। दुर्भाग्य की बात यह है कि कांग्रेस के नेताओं ने बाबा साहब को गद्दार तक कहा। उन्हें राजनीतिक व प्रशासनिक रूप से प्रताड़ित करने में भी नेहरूवादी राजनीति पीछे नहीं रही। इसके बावजूद आज कांग्रेस केवल बाबा साहब के सहारे संविधान और आरक्षण जैसे विषयों पर देश को गुमराह कर रही है। दुरभि सन्धि यह है कि देश के अनेक वामपंथी पत्रकार, कलाकार, प्रोफेसर, बुद्धिजीवी इस नकली नैरेटिव में साथ खड़े हैं।

इस विमर्श में देश की जनता विशेषकर नई पीढ़ी को कुछ महत्वपूर्ण तथ्य अवश्य ही जानने चाहिए, जिनका सीधा सम्बंध कांग्रेस और बाबा साहब के साथ है।

आखिर चिढ़ क्यों थी ….?

पहली बात यह कि डॉ. बीआर आंबेडकर समकालीन दौर के सबसे पढ़े लिखे नेता थे, उन्होंने कोलंबिया एवं लंदन स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स से पीएचडी एवं लॉ किया था। इसे इस अर्थ में समझिए कि उस दौर में पढ़े लिखे लोग इलाहाबाद के आनन्द भवन में ही जन्म लेते थे।

समझिए आरक्षण विरोधी डीएनए को

कांग्रेस के साथ बाबा साहब का पहला विवाद लंदन में आयोजित गोलमेज कॉन्फ्रेंस के दौरान हुआ था। यह 1930 के दौर की बात है। डॉ. आंबेडकर ने अनुसूचित जाति के लिए अलग निर्वाचक क्षेत्रों की मांग की। गांधी जी इसके सख्त विरोधी थे। यहीं से गांधी बनाम अम्बेडकर की शुरुआत भी हुई। 1932 में गांधी जी ने डॉ. अम्बेडकर की अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग के विरुद्ध आमरण अनशन शुरू कर दिया। यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि ऐतिहासिक रूप से आरक्षण के विरुद्ध कौन था? 

बाबा साहब को गद्दार तक कहा

दिनांक 29 जनवरी 1932, दूसरी गोलमेज कॉन्फ्रेंस के बाद मुंबई के आरटीसी में धन्यवाद सभा को संबोधित करते हुए बाबा साहब कहते हैं, “मुझे कांग्रेसियों द्वारा देशद्रोही कहा जाता है क्योंकि मैंने गांधी जी का विरोध किया। मुझे इस आरोप से परेशानी नहीं है। मुझे विश्वास है हिन्दुओं की आने वाली पीढ़ियां राउंड टेबल कांफ्रेंस को पढ़कर मेरे कामों को सराहेंगी।” इस वक्तव्य से समझ बनाने में आसानी होती है कि कौन किसके विरुद्ध था और आज जो बाबा साहब के सम्मान के होलसेल डीलर बने घूम रहे हैं, उनके पूर्वजों ने संविधान निर्माता को गद्दार कहने में भी संकोच नहीं किया था।

संविधान सभा में किसने रोका?

देश स्वतंत्रता की करवट ले रहा था, संविधान सभा के लिए कांग्रेसियों को चुने जाने की प्रक्रिया जारी थी। पहले चरण में कुल 296 सदस्यों का चुनाव हुआ। आज नीली टीशर्ट पहने हुए राहुल गांधी को शायद ही पता होगा कि नेहरू के प्रभाव में बाबा साहब का नाम 296 की सूची में नहीं था। यह तब, जब आज यह देश संविधान निर्माता के रूप में बाबा साहब को अधिमान्यता देता है। जैसे आज राहुल प्रियंका के फ्रेम में कोई अन्य कांग्रेसी स्वीकार्य नहीं है, ठीक वैसे ही स्वतंत्रता के बाद नेहरू के चमकते सूर्य के आगे किसी अन्य की स्वीकृति संभव नहीं थी। भले ही कोई कोलंबिया से पढ़ा हो या लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से।

कांग्रेस ने रद्द करा दिया था निर्वाचन

संविधान सभा से डॉ. आंबेडकर को बाहर करने की तीखी प्रतिक्रिया हुई, यह देखकर बंगाल के अनुसूचित जाति नेता जोगेंद्र नाथ मंडल की सहायता से डॉ. आंबेडकर संविधान सभा में पूर्वी बंगाल से सदस्य निर्वाचित हुए। यह पूर्वी बंगाल 14 अगस्त 1947 को पाकिस्तान में चला गया। ऐसे में डॉ. आंबेडकर की संविधान सभा से सदस्यता यह कहकर रद्द कर दी गई कि कोई पाकिस्तानी सदस्य संविधान सभा में संभव नहीं है।

यहां फिर ध्यान देना होगा कि संविधान सभा यानी कांग्रेस का तत्समय का शीर्ष नेतृत्व ही था, जिसकी कमान नेहरू के पास थी। बाद में मुंबई से सदस्य एमआर जयकर ने संविधान सभा से त्यागपत्र दे दिया और डॉ. आंबेडकर उस सीट से संविधान सभा पहुँच सके।

त्यागपत्र क्यों गायब किया नेहरू ने

27 सितंबर 1951 को नेहरू के मंत्रिमंडल से डॉ. आंबेडकर ने त्यागपत्र दे दिया। इसका कारण था हिन्दू कोड बिल को लेकर नेहरू का विरोध और सरकार की अनुसूचित जाति विरोधी मानसिकता। त्यागपत्र देने के बाद उन्होंने शेड्यूल कास्ट फेडरेशन बनाया।

नेहरू से त्रस्त होकर त्यागपत्र देने वाले डॉ. आंबेडकर सभा में अपना त्यागपत्र सबके सामने पढ़ना चाहते थे, लेकिन नेहरू के दबाव में इसकी अनुमति नहीं मिली। देश को जानकर आश्चर्य होगा कि यह त्यागपत्र आज सरकार और संसद के रिकॉर्ड से गायब है।13 फरवरी 2023 को अंग्रेजी समाचार पत्र द हिन्दू में एक समाचार छपा था, जिसका शीर्षक था,

“इंडियाज फर्स्ट लॉ मिनिस्टर डॉ. आंबेडकर रेजिग्नेशन लैटर लॉस्ट फ्रॉम द रिकॉर्ड।”

इस पत्र में ऐसा क्या था, जिसे नेहरू ने सदन में पढ़ने की अनुमति नहीं होने दी।

वे अपने त्यागपत्र में लिखते हैं, “संरक्षण की सबसे अधिक आवश्यकता अनुसूचित जाति को है, लेकिन नेहरू का सारा ध्यान सिर्फ मुसलमानों पर है।”

त्यागपत्र वक्तव्य की तस्दीक रचनावली (इंग्लिश) में वॉल्यूम 14, खंड – 2 में पेज 1317-1327 में उपलब्ध है।

सरकारी खर्च पर गांधी फ़िल्म

गांधी (1982) फ़िल्म बनाने के लिए इंदिरा गांधी ने सरकारी ख़ज़ाने से अमेरिकी निर्माता को 10 मिलियन डॉलर दिए। स्क्रिप्ट तब की केंद्र सरकार ने चेक की। फ़िल्म में नेहरू की महानता दिखाई गई। बाबा साहब इस फ़िल्म में सेकेंडों में विलेन की तरह सीमित कर दिए गए। बाबा साहब के दृष्टिकोण से इस फ़िल्म को सभी को देखना चाहिए। डॉ. बाबा साहब आंबेडकर (2000) फ़िल्म के लिए पैसा महाराष्ट्र की बीजेपी-शिवसेना सरकार और केंद्रीय समाज कल्याण मंत्रालय ने दिया। फ़िल्म अटल बिहारी वाजपेयी जी के समय बनी। 2016 में सरकार ने इसका फिर से शो कराया।

नेहरू से हंटर पड़वा रही थी कांग्रेस

कांग्रेस की सरकारों में डॉ. आंबेडकर की छवि खराब करने का काम किस सीमा तक किया गया इसका अनुमान एनसीईआरटी की 11 बी की पुस्तक में प्रकाशित एक कार्टून से लगाया जा सकता है। इस कार्टून में नेहरू बाबा साहब को चाबुक मारते दिखाए गए थे।एनसीईआरटी की 11वीं की पुस्तक में 2006 से 2012 तक यह कार्टून लगातार प्रकाशित होता रहा। 2012 में मायावती, राम विलास पासवान, तिरुमावलन , थावरचंद गहलोत, प्रकाश जावड़ेकर, राम कृपाल यादव ने संसद में बवाल मचा दिया और मंत्री कपिल सिब्बल को यह कार्टून बाद में हटवाना पड़ा। एनसीईआरटी की 11वीं की पुस्तक में 2006 से 2012 तक यह कार्टून था। राजनीति विज्ञान की इस पुस्तक के लेखक राहुल गांधी के सलाहकार योगेंद्र यादव थे। नेहरू के हाथों बाबा साहब पर चाबुक चलवाने वाले आज बाबा साहब के सम्मान की दुहाई दे रहे हैं।

कांग्रेस ने दो बार षड्यंत्र पूर्वक हरवाया बाबा साहब को

बाबा साहब के बारे में कांग्रेस ने कहा कि “आंबेडकर के लिए लोकसभा के दरवाजे ही नहीं, खिड़कियां भी बंद रहेंगी।” यह नेहरू की सोच थी।

कानून मंत्री के पद से त्यागपत्र देने के एक वर्ष बाद देश का पहला आम चुनाव 1952 में हुआ। मुंबई सेंट्रल नॉर्थ की सीट से बाबा साहब शिड्यूल कास्ट फेडरेशन की ओर से प्रत्याशी थे। कांग्रेस को उनकी टक्कर में कोई प्रत्याशी नजर नहीं आया तो उसने बाबा साहब के एक सहयोगी नारायण काजरोलकर को तोड़ लिया। सीपीआई के एसए डांगे भी बाबा साहब के विरोध में लड़े। इस चुनाव में नारायण काजरोलकर को 1,38,137 वोट, डॉ. बीआर आंबेडकर को 1,23,576 वोट प्राप्त हुए।

बाबा साहब को संसद जाने से रोकने के पुरस्कार स्वरूप कांग्रेस ने काजरोलकर को 1970 में पद्मभूषण दिया। यहां ध्यान देना होगा कि तब तक बाबा साहब को कोई राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया गया था। बाबा साहब को भारत रत्न तब मिला, जब केंद्र में भाजपा के समर्थन से वीपी सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रीय मोर्चे की गैर-कांग्रेसी सरकार बनी। आंबेडकर और सोशलिस्ट पार्टी के अशोक मेहता ने मुख्य चुनाव आयुक्त के समक्ष एक संयुक्त चुनाव याचिका दायर कर परिणाम को रद्द करने और उसे अमान्य घोषित करने का अनुरोध किया। उन्होंने अन्य बातों के अलावा दावा किया कि कुल 74,333 मतों को खारिज कर दिया गया और उनकी गिनती नहीं की गई।1954 में आंबेडकर ने दूसरा चुनाव महाराष्ट्र के भंडारा निर्वाचन क्षेत्र से लड़ा। इस बार वे कांग्रेस प्रत्याशी से लगभग 8,500 वोटों से हार गए। जीवनी लेखक धनंजय कीर ने अपनी पुस्तक डॉ. आंबेडकर: लाइफ एंड मिशन में लिखा है कि इस चुनावी कैंपेन के दौरान आंबेडकर ने नेहरू के नेतृत्व पर सीधा हमला किया था। उनकी विदेश नीति की आलोचना की थी।नेहरू ने भंडारा में तीन स्थानों पर सभाएं कीं और बाबा साहब को हराने की अपील की। कांग्रेस, विशेषकर नेहरू के प्रभाव में बाबा साहब भंडारा से लोकसभा में नहीं जा सके।

दिल्ली में क्यों नहीं हुआ अंतिम संस्कार?

कांग्रेस की परिवारवादी सोच का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में आज एक ही परिवार की चार समाधियां हैं, लेकिन जिन बाबा साहब के नाम पर आज राहुल गांधी संसद में घड़ियाली आंसू बहाने का ढोंग कर रहे हैं, उन्हीं के परिवार ने बाबा साहब का अंतिम संस्कार दिल्ली में नहीं होने दिया था। दिल्ली में यमुना तट पर गांधी की समाधि बनी। फिर नेहरू की। ये सब 50-50 एकड़ की हैं।

लेकिन बाबा साहब की समाधि को दिल्ली में जगह नहीं मिली। परिनिर्वाण के बाद उनके शव को मुंबई ले जाया गया। उनके अंतिम संस्कार में लगभग 5 लाख लोग आए थे।

बड़ा प्रश्न: दिल्ली में महज सांसद संजय गांधी की समाधि बनी है, लेकिन संविधान निर्माता को अंतिम संस्कार तक की जगह नहीं दी गई।वैसे दिल्ली की सत्ता को जागीर समझने वाले नेहरू परिवार ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव का अंतिम संस्कार भी दिल्ली में नहीं होने दिया था। उनके शव को लेकर कांग्रेस मुख्यालय गए शव वाहन को कार्यालय में अंदर तक नहीं आने दिया गया था।

कांग्रेस ने बाबा साहब आंबेडकर को उनके जीवनकाल में भारत रत्न नहीं दिया। भारत रत्न उनको तब दिया गया जब ग़ैर कांग्रेसी सरकार बनी। सरदार पटेल को तो इसके भी बाद मिला। जबकि नेहरू ने स्वयं यह सम्मान प्रधानमंत्री रहते ही प्राप्त कर लिया। राजीव गांधी को यह सम्मान उनका नाम बोफोर्स दलाली में फंसे होने के दौरान ही दे दिया गया। एक परिवार को थोक में भारत रत्न दिए जाते रहे और बाबा साहब को 40 वर्षों तक प्रतीक्षा करनी पड़ी किसी गैर कांग्रेसी सरकार की।

नेहरू ने नहीं लगने दी तस्वीर

संसद के सेंट्रल हॉल में डॉ. आंबेडकर का चित्र उनकी मृत्यु के दशकों बाद 1990 में लगाया गया। सेलेक्टेड वर्क्स ऑफ जवाहरलाल पुस्तक के भाग 2 खण्ड42 पेज 492 पर नेहरू की बाबा साहब से अदावत का पता चलता है। इसके अनुसार, तब के संसदीय कार्य मंत्री सत्यनारायण सिन्हा के पास सभी दलों के सांसदों ने मिलकर आग्रह किया कि सेंट्रल हॉल में डॉ. बीआर आंबेडकर का चित्र लगाया जाना चाहिए। 30 अप्रैल 1958 को सिन्हा ने प्रधानमंत्री से इस आशय की सहमति मांगी, लेकिन नेहरू ने इसके लिए स्पष्ट मना कर दिया। ध्यान देना होगा कि इसी दौरान मौलाना आजाद, हकीम अजमल खान, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सी राजगोपालाचारी के चित्र नेहरू की सहमति से लगाये गए थे।

कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर के जन्मस्थान मऊ, दिल्ली बंगला, लंदन हाउस किसी भी स्थान को राष्ट्रीय स्मारक के रूप में विकसित नहीं किया, जबकि नेहरू गांधी परिवार के 100 से अधिक स्मारक सरकारी खर्च पर 50 वर्षों में खड़े कर दिए गए।

किस मुंह से ओबीसी की बात करते हैं राहुल?

कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर के अलग निर्वाचन क्षेत्र की मांग का विरोध किया और हिंसा का डर दिखाकर, ब्लैकमेल करके पूना पैक्ट के लिए विवश किया। डॉ. आंबेडकर के हिन्दू कोड बिल को कांग्रेस ने पारित नहीं होने दिया, जिससे वे कानून मंत्री पद से त्यागपत्र देने को विवश हुए। त्यागपत्र के तीन अन्य कारण- कम महत्व का मंत्रालय देना, अनुसूचित जाति की अनदेखी करना और ओबीसी कोटा लागू न करना था। आज ओबीसी के सचिव तलाशने वाले राहुल गांधी को पता ही नहीं है कि नेहरू की जिद के कारण ओबीसी कोटा 90 के दशक तक लागू नहीं हो पाया।डॉ. अंबेडकर के महाड़ सत्याग्रह और छुआछूत के विरुद्ध आंदोलन को कांग्रेस ने समर्थन नहीं दिया। 

गांधी वर्ण व्यवस्था का समर्थन करते रहे

कांग्रेस ने डॉ. आंबेडकर के बौद्ध रिलिजन परिवर्तन आंदोलन को समर्थन नहीं दिया। वह इसे बढ़ावा देने से बचती रही। नव बौद्धों को अनुसूचित जाति में आरक्षण 1990 में तब मिला जब देश में ग़ैर कांग्रेसी सरकार बनी।

नेशनल हेराल्ड में बाबा साहब का अपमान-

नेहरू-गांधी परिवार के अख़बार नेशनल हेराल्ड में 27 नवंबर 2017 को बड़ा सा एक लेख छपा- “संविधान निर्माण में नेहरू की भूमिका आम्बेडकर से अधिक थी।” यह लेख सुधींद्र कुलकर्णी ने लिखा था।

(संदर्भ: बाबा साहब की जीवनी, बाबा साहब रचनावली और चांगदेव भवानराव खेरमोड़े की पुस्तकें)

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