तैमूर : नाम में क्या रखा है..!
विजय मनोहर तिवारी
तैमूर : नाम में क्या रखा है..!
बच्चों के नामकरण के पहले हर परिवार में पूछताछ और खोज का अच्छा-खासा अभ्यास चलता है। राशि के अनुसार पहले अक्षर के दो, तीन या चार अक्षरों के अनेक नाम सुझाए जाते हैं। आधुनिक भी, पुराने प्रचलन के भी। बहुत सोच-समझकर ही कोई नाम तय होता है। अपने बेटे के नामकरण के पहले सैफ अली और पटोदी खानदान वाले अच्छे से जानते होंगे कि तैमूर किसका नाम है और क्यों रखा जा रहा है। लेकिन यह तय है कि न शर्मिला टैगोर, न करीना कपूर और न ही रणधीर कपूर के एक्टरों से भरपूर खानदान को इतिहास के इस दुर्दांत व्यक्ति के बारे में कुछ पता होगा। जबकि तैमूर जिस रास्ते को भारतीयों के खून से रंगता हुआ दिल्ली पहुंचा था, वह पेशावर के आसपास पृथ्वीराज कपूर के परदादाओं के घर के सामने से ही गुजरा होगा…।
“भारत में इस्लाम’ श्रृंखला की पुस्तक रचना में मेरा परिचय समरकंद के अमीर तैमूर से दो दशक पहले हुआ था। गरुड़ प्रकाशन से छप रही इस श्रृंखला के दूसरे भाग “भोगा हुआ सच’ के अंतिम चार एपिसोड तैमूर पर ही हैं। भारत पर अभिशाप की तरह आए दस आततायियों में मैं उसे पहले पाँच में शामिल करूंगा। हालांकि अगले पाँच को भी पहले पाँच की लिस्ट से बाहर करना मेरे लिए बेहद कठिन होगा, क्योंकि ये सब एक ही महामारी के अलग वेरिएंट थे, जो केवल बदले हुए नाम से फिर-फिर आए। तैमूर एक ही बार आया। बहुत तेजी से आया। विध्वंस की मेगा मशीन की तरह इंसानों को गाजरमूली की तरह काटते हुए आया और भारत की स्मृतियों में गाढ़े खून की मोटी परत चढ़ाकर चला गया।
दिल्ली तब तक दो सौ वर्षों से तुर्क मुसलमानों के कब्जे में थी और वे दिल्ली को अड्डा बनाकर पूरे देश में आफत बनकर लकड़बग्गों की तरह घूम रहे थे, अपने नए ठिकाने बना रहे थे। अगर उस दौर में कोई फिल्मांकन उनके कारनामों का होता तो फिल्म हर दशक और हर सदी में बंगाल से गुजरात और कश्मीर से कर्नाटक तक एक जैसी ही बनती। षड्यंत्र, अकारण हमले, किलों और शहरों के घेराव, फिरौती की मांग, वादा खिलाफी, लूटमार, मंदिरों के ध्वंस, मलबे से मस्जिदों के निर्माण, गुलामों की खरीद-फरोख्त, कत्लेआम, खूनखराबा और अगले वर्ष फिर यही किसी और दिशा में। यही एकमात्र उद्योग था और यह सब इतनी बार दोहराया गया है कि हर जगह कहानियाँ गड्डमड्ड हैं।
तैमूर को दिल्ली में दो हिंदुओं ने ऐसा कड़ा प्रत्युत्तर दिया कि वह समरकंद लौटकर कब्र में सोने तक दोनों को कभी भूल नहीं सका। इनमें पहला है लोनी नाम की जगह का करतार। वह लोनी के किले का किलेदार था। इस किले के घेराव के लिए तैमूर ने अपने 18 वर्ष के बेटे साद वकास को छोड़ा था और स्वयं दिल्ली को घेरने-लूटने के लिए आगे बढ़ गया था। वह मेरठ में तबाही मचाकर लोनी तक पहुंचा था। करतार ने साद वकास के साथ तैमूर के लुटेरों की टुकड़ी को हराया। साद मारा गया। दिल्ली से लौटते हुए तैमूर को सबक सिखाने के लिए उसी की भाषा में साद की लाश को किले पर टांगा। टांगने के पहले उसकी खाल खिंचवाई गई और उसमें भूसा भरा गया। लकड़बग्गे तथागत के विपश्यना की भाषा नहीं जानते। शांति और करुणा किसे कहते हैं, उन्हें ज्ञात नहीं। लोनी का वह वीर पुरुष करतार यह अच्छे से जानता था।
तैमूर मरते दम तक जिस दूसरे चेहरे को नहीं भूला, वह दिल्ली का एक ब्राह्मण था। समरकंद के महलों में तैमूर की रातें बेचैनी में गुजरीं और वह उस ब्राह्मण का नाम याद करता है-गनी होरता। दुभाषिए ने उसे गनी होरता का अर्थ बताया-“पवित्र अग्नि।’ शायद यह उच्चारण दोष के साथ किसी अग्निहोत्री का नाम है। दिल्ली के घेराव के समय किले की प्राचीर से लाल कपड़े में उस ब्राह्मण ने चीखकर तैमूर को आवाज दी थी। अपने शिविर से तैमूर एक दुभाषिए के साथ आता है। वह ब्राह्मण कहता है कि तैमूर दिल्ली को लूटने का ख्याल छोड़ दे वर्ना ब्रह्मा का दंड भुगातेगा। पाँच समय की नमाज के पक्के और अपने प्रिय पैगंबर के दीवाने तैमूर ने पहली बार यह नाम सुना-“ब्रह्मा!’
ब्राह्मण ने कहा-“अगर तूने यह शहर नहीं छोड़ा तो तेरी आयु कम हो जाएगी। अगर तू चला जाएगा तो 21 वर्ष और जिएगा। तू 63 साल का हो चुका है। अगर देहली से नहीं गया तो तेरी आयु अधिकतम 70 वर्ष है।’
लाखों निर्दोष लोगों को जीवन भर क्रूरता से मौत के घाट उतारता रहा तैमूर दिल्ली के किले की प्राचीर पर खड़े उस निहत्थे वीर ब्राह्मण की बात सुनकर हँसा। उस धीर-गंभीर ब्राह्मण ने कहा-“अगर तू यहाँ से नहीं लौटता तो एक बेहद बुरी खबर सुननी पड़ेगी।’ तैमूर के चेहरे का रंग उड़ा। उसने पूछा-“क्या खबर है?’ वह ब्राह्मण बोला-“तेरे बेटे की मौत।’
यह कहकर वह अग्निहोत्री ब्राह्मण प्राचीर से उतरकर चला गया। वह दिल्ली के घेराव की पहली रात थी।
तैमूर कहाँ दिल्ली छोड़ने वाला था। उसे लोनी के करतार के हाथों साद वकास के मारे जाने की खबर जल्दी ही मिल गई। तैमूर ने तसल्ली और बेरहमी से दिल्ली को लूटा। दिल्ली की सड़कों पर लाशों के ढेर लगाए। दिल्ली की पक्की अटारियों को आग के हवाले किया। उसके लुटेरों ने एक भी घर नहीं छोड़ा। वह पूरे रास्ते खून बहाते हुए लौटा। जनवरी में संक्रांति के समय हरिद्वार में अनगिन भारतीयों को मारते हुए आगे बढ़ा।
किंतु दिल्ली से निकलते ही लोनी में उस वीर करतार ने उसे खुली चुनौती देकर लड़ने के लिए बुलाया। आमने-सामने की टक्कर में करतार मारा जाता है और उसके खून का प्यासा तैमूर बाकायदा अपने हाथों में लेकर उसका दो घूंट खून पीता है। करतार के सैनिकों के सिर काटे जाते हैं और लोनी में उसकी मीनार बनवाई जाती है। तैमूर के हाथों इंसानी खोपड़ियों की वह पहली मीनार नहीं थी। ईरान के खुरासान प्रांत में सब्जवार नाम के शहर में उसने हजारों कटे हुए सिरों को मसाले में ईंटों की तरह चुनवाकर ऐसी मीनारें बनवाई थीं, जिनके भीतर सीढ़ियाँ थीं और ऊपर चढ़कर चोटी पर मशालें जलाई जाती थीं। सब्जवार के वे सब बेकसूर मुसलमान थे, जो तैमूर के रास्ते में आए थे और उससे हार मानने को तैयार नहीं थे। तैमूर ने एक शिलालेख पर अपने नाम से यह कारनामा दर्ज किया ताकि आने वाले समय में लोगों को याद रहे कि तैमूर से टकराने का अर्थ क्या था?
दमिश्क से लेकर दिल्ली तक वह जिंदगी भर लूटमार और कत्लेआम ही करता रहा। वह घोड़े पर सवार होकर दोनों हाथों से तलवारें घुमाकर इंसानों को दोनों तरफ गाजर की तरह काटता हुआ खून की होली खेलता था और जब खून से नहाया हुआ बख्तरबंद के भीतर उसे गीला-गीला लगता तो वह असीम शांति अनुभव करता।
तैमूर 1336 में पैदा हुआ था। दिल्ली पर हमले के समय 1398 में उसकी आयु 63 वर्ष होने को थी। ब्राह्मण ने सात वर्ष की जिंदगी और बताई थी। वह 1405 में मरा। और हाँ, ब्राह्मण ने यह भी कहा था कि वह लड़ाई के मैदान में नहीं मरेगा। वह बीमार होकर ही मरा और मरने तक गनी होरता को नहीं भूला। उसने सब कुछ अपनी डायरी में दर्ज किया ताकि सनद रहे।
पृथ्वीकपूर की पड़पोती, राजकपूर की प्रिय पोती और रणधीर कपूर की सुपुत्री करीना सैफ अली खान, तुम्हें अपने चिरंजीव का यह नाम मुबारक हो।
(तस्वीर समरकंद में तैमूर के मकबरे की है, जिसे उसने दिल्ली के गुलाम कारीगरों से बनवाया था, जिन्हें वह बांधकर ले गया था। आज उनके कन्वर्टेड वंशज समरकंद में अवश्य ही अपने अमीर तैमूर पर फख्र करते होंगे। उन्हें कहाँ याद होगा कि उनके पुरखों ने किसके हाथों क्या भोगा था।)