गोमाता सृष्टि का आधार है, इसका संरक्षण आवश्यक- प्रांत गो सेवा प्रमुख
गोमाता सृष्टि का आधार है, इसका संरक्षण आवश्यक- प्रांत गो सेवा प्रमुख
जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गो सेवा गतिविधि के अन्तर्गत प्रदेश स्तरीय गो विज्ञान एवं सामान्य ज्ञान परीक्षा स्थानीय स्वास्तिक भवन, आदर्श विद्या मंदिर, अम्बाबाड़ी में आयोजित की गई। जयपुर प्रांत में जिला स्तर पर आयोजित परीक्षा में 2500 स्कूलों के 90 हजार विद्यार्थियों ने भाग लिया।
इस अवसर पर जयपुर प्रांत के गो सेवा प्रमुख अशोक कुमार गुप्ता ने अपने सम्बोधन में कहा कि हम अपनी संस्कृति को भूलते जा रहे हैं। गोमाता सृष्टि का आधार है। लेकिन आज कष्ट भोग रही है। इसका एकमात्र कारण स्वाभिमान शून्यता और जानकारी का अभाव है। उन्होंने गो सेवा विभाग की पृष्ठभूमि एवं गो संरक्षण की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए कहा, गोमाता हमारे दैनिक जीवन में जन्म से मृत्यु तक हर प्रकार से हमारा पालन पोषण करती है। गोमाता में 33 कोटि देवी देवताओं का वास होता है। वह अनेक गुणों का समुच्चय है। इसका दूध, दूध नहीं अमृत है।
उन्होंने भारतीय एवं विदेशी नस्ल की गायों के बीच भेद का खुलासा करते हुए कहा, गाय केवल भारतीय नस्ल की होती है। विदेशी नस्ल का जानवर जिसे गाय कहा जाता है, वह गाय नहीं बल्कि गाय जैसा प्राणी है, जिससे दूध जैसा पदार्थ मिलता है। इस पदार्थ का अनुसंधान करने पर वैज्ञानिकों ने पाया कि इसमें कैंसर कारक तत्व होते हैं। इसका परिणाम यह रहा कि न्यूजीलैंड की सरकार ने कानून बनाकर वहां के गोपालकों पर गाय जैसा दिखने वाले जानवर को पालने पर प्रतिबंध लगा दिया है।
उन्होंने भारतीय नस्ल की गायों को बचाने पर जोर देते हुए कहा, गाय का पालन, पोषण और संरक्षण हो। आज गोमाता को बचाने के लिए संघ ने अलग से विभाग बनाया हुआ है। ताकि भारतीय नस्ल के गोवंश को बचाया जा सके। भारत में लगभग 200 प्रकार की गायें थीं। अब केवल 32 नस्ल का गोवंश ही उपस्थित है। उन्होंने कहा गो विज्ञान एवं सामान्य ज्ञान परीक्षा आयोजित करने का उद्देश्य विद्यार्थियों को गाय का महत्व व उपयोगिता से अवगत कराना था।
वहीं प्रांत गो सेवा सह संयोजक मोहन सिंह ने अपने संबोधन में कहा, जब देश के प्रधानमंत्री के घर में गाय हो सकती है, तो हमारे घर में क्यों नहीं? दुनिया में आज भी भगवान कृष्ण को महान योजनाकार कहा जाता है। ऐसे श्रीकृष्ण सहित हमारे पूज्य गोगा जी महाराज, देवनारायण महाराज व अन्य लोकदेवों ने अपना सम्पूर्ण जीवन गायों की सेवा और उनकी रक्षा के लिए लगाया है। उन्होंने कहा, गाय के दूध में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है। हमें गाय को बचाने के लिए तीन बातों का ध्यान रखना होगा- पहला, अगरबत्ती के स्थान पर धूपबत्ती, दूसरा, दीपक व हवन यज्ञ में गोमाता के घी का प्रयोग और तीसरा शिव अभिषेक में गोमाता के दूध का प्रयोग अन्यथा शुद्ध पानी से अभिषेक करना। यदि ये तीन बातें हम जीवन में अंगीकार करते हैं, तो हम गाय को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं।
सिंह ने भगवान श्री कृष्ण को नंद बाबा और यशोदा का लाड़ला बताते हुए कहा, नंद किसी व्यक्ति का नाम नहीं है। जो नौ लाख गायों का पालन, पोषण करता है उसे नंद कहा जाता है। पुराने भारतवर्ष में जिसके पास नौ लाख गायें होती थीं, उसको नंद राज कहा जाता था। ऐसे नंद राजा के घर में कृष्ण का लालन पोषण हुआ। इसी प्रकार वृषभानु किसी व्यक्ति का नाम नहीं है, जिसके पास 11 लाख गायें होती थीं, उसे वृषभानु राजा कहा जाता था। जिस स्थान पर नौ लाख गायों का पालन पोषण होता है, वहां भगवान कृष्ण को आना होता है और जिस स्थान पर 11 लाख गायों का पालन पोषण होता है, वहां दैवीय शक्ति का वास होता है। वृषभानु के यहां राधा रानी का जन्म हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है, मेरे नाम को जपने से मोक्ष होगा या नहीं लेकिन राधे – राधे जपने से मोक्ष निश्चित है। इसलिए नंद और वृषभानु किसी व्यक्ति के नाम नहीं हैं। ये उपाधियों के नाम हैं, जो भारत में चलते थे। उन्होंने पंच परिवर्तनों – पर्यावरण संरक्षण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्व का जागरण, नागरिक शिष्टाचार और सामाजिक समरसता का उल्लेख करते हुए, उन्हें जीवन में अपनाने का भी आह्वान किया।
जिला स्तर पर आयोजित परीक्षा में प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पर रहे प्रतिभागियों को कार्यक्रम के दौरान स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में अनेक पदाधिकारियों समेत अभिभावक उपस्थित रहे।