स्वामी विवेकानंद का हिन्दू चिंतन
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विदुला कौशिक
स्वामी विवेकानंद का हिन्दू चिंतन
स्वामी विवेकानंद का हिन्दू चिंतन एक ऐसी पुस्तक है, जो उनके विचारों, दर्शन और हिन्दू धर्म को लेकर उनकी व्याख्याओं को प्रस्तुत करती है। यह पुस्तक स्वामी जी के व्याख्यानों, लेखों और संवादों का एक संकलन है, जिसमें वे हिन्दू धर्म की व्यापकता, आध्यात्मिकता, सामाजिक सुधार और वैज्ञानिक सोच को उजागर करते हैं।
पुस्तक की विषयवस्तु –
वेदांत और हिन्दू धर्म :
• स्वामी विवेकानंद वेदांत को हिन्दू धर्म का आधार मानते थे। वे इसे केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने का एक तरीका बताते हैं।
• उनका मानना था कि हिन्दू धर्म केवल कर्मकांड और रूढ़ियों तक सीमित नहीं है। बल्कि यह आत्म-साक्षात्कार और सर्वव्यापी चेतना को समझने का मार्ग है।
सर्वधर्म समभाव और सहिष्णुताः
• उनके विचारों में हिन्दू धर्म की विशेषता इसकी सहिष्णुता और सभी के प्रति सम्मान में है।
• शिकागो धर्म संसद (1893) में अपने ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने हिन्दू धर्म की इस समावेशी भावना को पूरे विश्व के सामने रखा।
हिन्दू समाज और सामाजिक सुधार :
• स्वामी विवेकानंद ने समाज में व्याप्त जातिवाद और छुआ-छूत जैसी बुराइयों का विरोध किया।
• वे मानते थे कि हिन्दू धर्म की वास्तविक शक्ति इसके लोगों की एकता और कर्म में निहित है, न कि जाति या परंपरागत ऊँच-नीच की भावना में।
युवा और राष्ट्र निर्माण :
• स्वामी विवेकानंद ने हिन्दू युवाओं को कर्म, योग और आत्मनिर्भरता का संदेश दिया।
• वे कहते थे, उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।
• उनका हिन्दू चिंतन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीयता और सामाजिक उत्थान से भी जुड़ा था।
आधुनिकता और विज्ञान:
• वे धर्म और विज्ञान को परस्पर विरोधी नहीं मानते थे।
• उनका विचार था कि हिन्दू धर्म वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाकर अधिक प्रभावशाली बन सकता है।
पुस्तक का प्रभाव :
यह पुस्तक उन लोगों के लिए उपयोगी है जो हिन्दू धर्म को विवेकानंद की दृष्टि से समझना चाहते हैं। यह न केवल धार्मिक बल्कि दार्शनिक और व्यावहारिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। इसमें उनके विचारों को सरल भाषा में प्रस्तुत किया गया है, जिससे पाठक उनके चिंतन को आसानी से आत्मसात कर सकते हैं।
निष्कर्ष :
स्वामी विवेकानंद का हिन्दू चिंतन पुस्तक केवल धर्म पर चर्चा करने वाली पुस्तक नहीं है, बल्कि यह जीवन, समाज और राष्ट्र निर्माण के व्यापक दृष्टिकोण को प्रस्तुत करती है। उनका हिन्दू चिंतन, मानवता और आत्म-शक्ति को केंद्र में रखता है। यह पुस्तक प्रत्येक उस व्यक्ति के लिए आवश्यक है, जो हिन्दू धर्म की मूल आत्मा को समझना चाहता है। पुस्तक का संपादन डॉ. राजकुमार उपाध्याय ने किया है।