भारत की सांस्कृतिक निरंतरता
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हृदयनारायण दीक्षित
भारत की सांस्कृतिक निरंतरता
भारतीय संस्कृति अति प्राचीन है। यूरोप की सभ्यता पर यूनानी प्रभाव है। यूनान जर्मनी से पहले सभ्य हुआ। भारत यूनान से पहले। यूनानी दर्शन ईसा के 500-600 वर्ष पहले शुरू हुआ। इसके सैकड़ों बरस पहले भारत का वैदिक दर्शन प्रसिद्धि प्राप्त कर चुका था। यूनानी सभ्यता की विकास भूमि क्रीट द्वीप है। क्रीट की कला के विश्लेषक रैनोल्ड हिगिंस के अनुसार ईसा के 2800 बरस पहले लघु एशिया के प्रवासी वहां सभ्यता ले गए। क्रीट के क्रोसोस नगर के प्रथम शासक मिनोस के नाम पर इसे ‘मिनोअन सभ्यता‘ कहा गया। मिकनी नगर यूनानी सभ्यता का केन्द्र बना। यह सभ्यता मखदूनिया, साइप्रस और इटली तक फैली। मिस्र से निकाले गए हुक्सोस मिकनी के शासक थे। टायनबी ने इन्हें आर्य व हिगिंस ने इन्हें भारतीय कहा। भाषा वैज्ञानिक वामपंथी विद्वान डॉ. रामविलास शर्मा ने बताया कि, ‘‘आर्य भाषा बोलने वाले भारतीय मिनोअन-मिकीनियन राज्यों के संस्थापक थे। यूनानी सभ्यता, संस्कृति और दर्शन का विकास भारतीय सम्बंधों से हुआ।
ऋग्वेद के मनु, मिस्र के प्रथम राजा मेनस और यूनान (क्रीट) के प्रथम शासक मिनोस भाषा की दृष्टि से संस्कृत के और संस्कृति की दृष्टि से भारतीय तत्व हैं। इंग्लैंड की सभ्यता यूनान से प्रेरित है। उन्होंने लैटिन, ग्रीक, मिस्र से संस्कृति और सभ्यता के तत्व पाए। भारतीय संपर्क से उन्हें पुष्ट किया। अंग्रेजी स्वयं में व्यवस्थित भाषा नहीं है। संस्कृत के अनेक शब्द अंग्रेजी में हैं। संस्कृत का दिव्य ही अंग्रेजी का डिवाइन है। अंग्रेजी का ब्रदर संस्कृत का भ्रात है, फादर संस्कृत का पितृ है और मदर संस्कृत की मातृ है। गोदाम अंग्रेजी में गोडाउन है। पीजी सुब्बाराव ने ‘इंडियन वर्ड्स इन इंग्लिश‘ में ऐसे सैकड़ों रुचिकर शब्दों की सूची दी है। अंग्रेजों ने जर्मन, फ्रेंच से भाषा के संस्कार पाए, रोमन लिपि अपनाई।
भाषा विज्ञानी अलब्राइट व लैम्बिडन ने सुमेरी को प्राचीनतम लिखित भाषा बताया। इनके अनुसार पश्चिम को सुमेरी ने प्रभावित किया। उन्होंने बताया अंग्रेजी ‘ऐबिस‘ सुमेरी का अब्ज (पृथ्वी के नीचे का जल) है। यूनानी में वह अबुस्सास है। बेबीलोन में इसे अप्सु कहते हैं। लेकिन ऋग्वेद (1.23.19, 9.43.9 और 9.30.5 आदि) में जलवाची अप और अप्सु शब्द भरे पड़े हैं। मिस्त्री, सुमेरी और संस्कृत में भूतल जल पर एक शब्दावली है। ऋग्वेद पुराना है, स्पष्ट है कि संस्कृत ही सबसे पहले सृष्टि के आदि तत्व ‘जल‘ की बोली बनी। विलियम जोन्स ने कहा कि, ‘‘संस्कृत ग्रीक से अधिक निर्दोष, लैटिन से अधिक समृद्ध और इनमें किसी से भी अधिक उत्कृष्ट है। इसके बावजूद धातुओं और व्याकरणिक रूपों में यह इन दोनों से प्रगाढ़ सम्बंध रखती है, इतना प्रगाढ़ कि कोई भाषाविद इनका एक ही स्रोत माने बिना छानबीन नहीं कर सकता। संस्कृत जाने बिना विश्व भाषा विज्ञान, विश्व भाषा परिवार, सृष्टि संरचना और विश्व सांस्कृतिक सम्बंधों का अध्ययन विश्लेषण संभव नहीं।
भारत सांस्कृतिक तत्वों का भी निर्यातक था। पश्चिम एशिया में रुद्र-शिव की उपासना थी। गूर्ने ने ‘दि हिटटाइटस‘ (पृष्ठ 134) में बताया कि वे हित्तियों के विशेष देवता थे, उनके अनेक रूप थे। सीरिया के शिल्प में वह परशु चलाते हुए बिजली कौँधने के प्रतीक हैं। यूनानी (मिनोअन) संस्कृति में भी परशु खास प्रतीक हैं। इबान्स के अनुसार, यह परशु मिनोअन देवी और उसके पुरुष देवता का चिन्ह था। इसी परशु का उल्लेख ऋग्वेद में है। पश्चिमी भारत से दक्षिणी यूरोप, फिर उत्तरी यूरोप होते हुए परशु नाम का देव प्रतीक इंग्लैंड तक पहुंचा। अंग्रेजी विद्वान सम्भवतः नहीं मानते कि रुद्र का शिवत्व प्रागैतिहासिक काल में भी है। ऋग्वेद में वे अरुण-रूद्र हैं। वे जटाधारी भी हैं। यजुर्वेद में वे नमः शम्भवाय-नमः शिवाय भी हैं। जैसे सीरिया में वे बिजली कौँधने के प्रतीक हैं वैसे ही उसके बहुत पहले ऋग्वेद (7.46.3) में वे आकाश से बिजली गिराते हैं। यहां उनसे अमृत्व की महामृत्युंजय स्तुति (7.59.12) है।
सभ्यता, संस्कृति, देवतंत्र, दर्शन, भौतिकी और आधुनिक ज्ञान विज्ञान का आदि केन्द्र भारत है। यूरोपीय विद्वान एच. एस. मेन ने लिखा था, ‘‘बीजगणित, अंकगणित में पश्चिमी सहायता के बिना ही ऊंचे दर्जे की दक्षता है। दशमलव प्रणाली के अविष्कार का हम पर ऋण है। अरबों ने अंक हिन्दुओं से पाए, यूरोप में फैलाए। यूरोपीय चिकित्सा पद्धति 17वीं सदी तक अरबी चिकित्सा थी।‘‘ विलियम हंटर ने लिखा था कि, ‘‘पश्चिम के विद्वान जब भाषा विज्ञान का विवेचन आकस्मिक समानताओं के आधार पर कर रहे थे, उस समय भारत में व्याकरण को मूल सिद्धांतों का रूप मिल चुका था।‘‘सारा ज्ञान विज्ञान, संस्कृति दर्शन संस्कृत में है, हिन्दी में भी है। बावजूद इसके अंग्रेजी पर जोर है, अंग्रेजी का शोर है। सवाल यह है कि जो संस्कृत और हिन्दी काव्य, साहित्य, दर्शन, विज्ञान, प्रीति और प्रेम की सहज अभिव्यक्ति है, वही विज्ञान और व्यापार की सशक्त भाषा क्यों नहीं है?
भारत प्राचीनतम व अद्वितीय राष्ट्र है। मैक्समूलर ने लिखा, ‘‘भारत के मानवी-मस्तिष्क ने कुछ सर्वोत्तम गुणों का पूर्ण विकास किया है। जीवन की बड़ी से बड़ी समस्याओं पर भारत द्वारा प्राप्त हल प्लेटो और कांट के दर्शन का अध्ययन किए हुए लोगों के लिए (भी) विचार करने योग्य है। यूनानी, रोमन और एक सेमेटिक जाति यहूदी के विचारों मात्र पर पालित पोषित यूरोप के हम लोग जीवन को अधिक परिपक्व, अधिक व्यापक, अधिक सार्वलौकिक दरअसल सच्चे मानवीय बनाने के लिए भारत की ओर ही देखते हैं।‘‘भारतीय संस्कृति दर्शन की ऐसी प्रतिष्ठा पर गर्व करना चाहिए।
स्वाधीनता संग्राम की भाषा मातृभाषा हिंदी थी। लेकिन नए प्रभुवर्ग अंग्रेजी को वरीयता देते रहे हैं। गांधी जी ने कहा था, ‘‘अंग्रेजी ने हिंदुस्तानी राजनीतिज्ञों के मन में घर कर लिया है। मैं इसे अपने देश और मनुष्यत्व के प्रति अपराध मानता हूं।‘‘ (संपूर्ण गांधी वांगमय 29-312)
संस्कृति, सृजन और संवाद की भाषा हिंदी है। बावजूद इसके अंग्रेजी का मोह बढ़ा, अंग्रेजी स्कूल बढ़े, अंग्रेजी प्रभुवर्ग की भाषा बनी। हिंदी का अंग्रेजीकरण भी हुआ। टीवी सिनेमा ने नई ‘शंकर भाषा‘ को गले लगाया। हिंदी सौंदर्य और कला में व्यक्त करने का माध्यम थी-है। अंग्रेजीकृत हिंदी-हिंगलिश-मिश्रित बोली ने भारतीय सौंदर्यबोध को विकृत किया। अंग्रेजी मिश्रित हिंदी शैंपू और दाद खाज की दवा बेचने का माध्यम हो सकती है लेकिन सृजन और संवाद की भाषा नहीं हो सकती। स्वभाषा के बिना संस्कृति निषप्राण होती है।
लॉर्ड मैकाले ने ब्रिटिश संसद में कहा था, ‘‘उच्चतर जीवन मूल्य और उत्कृष्ट क्षमताओं को देखते हुए भारतीयों पर तब तक विजय प्राप्त नहीं की जा सकती, जब तक वहां की आध्यात्मिक सांस्कृतिक परंपरा की सशक्त रीढ़ नहीं तोड़ी जाती। इसलिए मेरा प्रस्ताव है कि भारत की प्राचीन शिक्षा पद्धति, संस्कृति को विस्थापित करें कि भारतवासी विदेशी और अंग्रेजी को श्रेष्ठ समझते हुए स्वसंस्कृति और स्वाभिमान खोकर हमारी इच्छा अनुरूप शासित राष्ट्र हो जाएं।‘‘ वे असफल हुए। इसका कारण भारत की सांस्कृतिक निरंतरता है।