भारत केवल भूगोल नहीं संस्कृति है- मोहन भागवत
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भारत केवल भूगोल नहीं संस्कृति है- मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कोलकाता के बर्दवान में रविवार 16 फरवरी को स्वयंसेवकों को संबोधित किया। उन्होंने हिंदू समाज की एकता पर जोर देते हुए कहा कि संघ पूरे हिंदू समाज को संगठित करना चाहता है, क्योंकि यही समाज देश की जिम्मेदारी उठाने वाला समाज है।
भागवत ने कहा कि आज कोई विशेष अवसर नहीं है, फिर भी कार्यकर्ता इतनी गर्मी में सुबह से एकत्रित हैं। यह प्रश्न उठता है कि संघ आखिर क्या करना चाहता है? यदि एक वाक्य में उत्तर दिया जाए, तो संघ का उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना है।
भारत केवल भूगोल नहीं, बल्कि एक संस्कृति है
सरसंघचालक ने भारत की विशेषता बताते हुए कहा कि यह केवल एक भूगोल नहीं है, बल्कि इसकी अपनी प्रकृति और मूल्य हैं। कुछ लोग इन मूल्यों के अनुसार नहीं रह सके और उन्होंने अलग देश बना लिया। लेकिन जो भारत में रहे, उन्होंने इसकी संस्कृति को आत्मसात किया।
उन्होंने कहा कि हिंदू समाज वह समाज है, जो विविधता को स्वीकार करता है और उसमें समरसता लाता है। हम अक्सर ‘विविधता में एकता’ की बात करते हैं, लेकिन हिंदू समाज इसे गहराई से समझता है कि विविधता ही वास्तविकता में एकता है।
राम के आदर्श भारत की पहचान
भागवत ने भारत के सांस्कृतिक मूल्यों का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत सम्राटों और महाराजाओं को नहीं, बल्कि उस राजा को याद करता है, जिसने अपने पिता के वचन को निभाने के लिए 14 वर्षों का वनवास स्वीकार किया। यह भगवान राम की ओर संकेत था, जिनकी पादुकाओं को सिंहासन पर रखकर उनके भाई ने शासन किया और उनके लौटने पर राज्य उन्हें समर्पित कर दिया। यही विशेषताएँ भारत की पहचान हैं और जो इन मूल्यों को अपनाता है, वही हिंदू कहलाता है।
भारत सदियों से अस्तित्व में है
भागवत ने कहा कि भारत को अंग्रेजों ने नहीं बनाया। महात्मा गांधी ने भी एक साक्षात्कार में कहा था कि अंग्रेजों ने हमें यह सोचने पर विवश किया कि उन्होंने भारत का निर्माण किया, जबकि यह पूर्णतः गलत है। भारत सदियों से अस्तित्व में है और इसकी विविधता में ही इसकी एकता का सार छिपा है। आज जब हम इस सच्चाई को दोहराते हैं, तो इसे हिंदुत्व से जोड़ा जाता है, जबकि यह भारत की मूल भावना है।