होली आई रे (गीत)
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धर्मेन्द्र कुमार
होली आई रे (गीत)
होली आई रे फागुन की मस्ती छाई भाई रे,
कि होली आई रे।
महाकुम्भ के मेले में, जन जन ने पुण्य कमाए हैं।
भारत ही क्या दुनिया से अनगिन श्रद्धालु आए हैं।
समरसता का भाव लिए, डुबकियाँ लगाईं रे,
कि होली आई रे॥1॥
संगम तट पर बाल वृद्ध युव नर नारी का ज्वार दिखा।
पर्यावरण बचाकर सबने एक नया इतिहास लिखा।
“इक थाली इक थैला” से ये सिद्धि पाई रे,
कि होली आई रे॥2॥
जप तप और संयम की धरती तीर्थराज प्रयाग है।
धर्म विरोधी इससे डरते, लगती मन में आग है!
संस्कृति ना मिटा सके, करें लाख बुराई रे,
कि होली आई रे॥3॥
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा, भारत मां की शेष अभी।
वैभवशाली देश बनेगा, पञ्च परिवर्तन करें सभी।
विश्व पटल पर भारत ने फिर धाक जमाई रे,
कि होली आई रे॥4॥
जागृति का अभियान चला है, परिवर्तन चहुं ओर है।
भ्रष्ट, अपराधी, जिहादियों का नहीं चले गठजोड़ है।
दिल्ली की जनता ने भी ‘आपदा’ हटाई रे,
कि होली आई रे॥5॥