प्रयागराज महाकुंभ : एक अद्भुत अनुभव
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महेश श्रीमाली
प्रयागराज महाकुंभ : एक अद्भुत अनुभव
सनातन संस्कृति अध्यात्म की अलौकिक साधना है। चारों ओर दिव्यता है, उल्लास है और मानव जीवन के लिए मंगलकामना है। ईश्वर के आशीर्वाद से मुझे इस वर्ष परिवार सहित महाकुंभ के पवित्र स्नान हेतु प्रयागराज जाने का सुअवसर प्राप्त हुआ। नक्षत्रों के आभामंडल का यह विशेष संयोग 144 वर्षों में एक बार बनता है। अतः इसका हिन्दू धर्म में विश्वास रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए बहुत महत्व है। इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष अब तक लगभग 45 करोड़ लोग महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं। यह संख्या भारत की एक तिहाई जनसंख्या से भी अधिक है।
हम दिल्ली से राजधानी ट्रेन द्वारा प्रयागराज स्टेशन पहुंचे। योगी प्रशासन द्वारा महाकुंभ के लिए जो तैयारियां देखने को मिलीं, वे अविश्वसनीय थीं। स्टेशन पर उतरते ही ऐसा अनुभव हुआ जैसे किसी देव नगरी में पहुंच गए हैं।
पूरी प्रयागराज नगरी को सजाया गया है। दीवारों, खंभों और सड़कों के किनारों पर हिन्दू देवी देवताओं और प्रतीकों के मनमोहक चित्र बनाए गए हैं, जो कला का उत्कृष्ट प्रतिबिंब हैं। जहां देखो वहां भव्यता ही दिखाई देती है। सभी जगहों पर पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के जवान खड़े दिखाई देते हैं। वह आने जाने वाले नागरिकों की सुरक्षा ही नहीं मार्गदर्शन का कार्य भी संभालते दिखाई देते हैं। जैसे पूरा प्रशासन ही श्रद्धालुओं के स्वागत और आतिथ्य में जुट गया हो। रात्रि 2 बजे भी पूरा शहर जगमगाता हुआ दिखाई देता है।
मां गंगा के घाटों को स्वच्छता से चमकाया गया है। पूरे कुंभ स्नान स्थल को अस्थाई सेक्टर्स में विभाजित किया गया है, जहां पर विभिन्न संत गणों, समुदायों, अखाड़ों और सामाजिक संस्थानों के टेंट बसाए गए हैं। इन टेंटों में अत्याधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध करवायी गई हैं।
हमें मां ऋतम्भरा जी के वात्सल्य ग्राम शिविर में ठहरने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह हिंदू संस्कृति से ओत-प्रोत पावन जीवनचर्या का प्रत्यक्ष अनुभव था। प्रातः उठने से लेकर रात्रि विश्राम तक सब ओर केवल आनंद ही आनंद। ताजा बना हुआ उत्तम गुणवत्ता का सात्विक भोजन, दोपहर से आरंभ होकर सांय तक चलने वाला मां ऋतम्भरा जी का हिंदू धर्म ग्रंथों का पाठ, गंगा किनारे घाटों पर पुण्य स्नान, शहर की सड़कों पर भारी जनसैलाब के मध्य दिव्य साधु संतों के दर्शन, चारों ओर से सुनाई देती भजन-कीर्तन की ध्वनि सब कुछ एक अविस्मरणीय अनुभव था।
आने वाली पीढ़ी के मन में यह अनुभव सनातन संस्कृति के लिए अटूट विश्वास और गौरव भर देने का पर्याय था। जो एक बार कुंभ आ जाएगा उसका उसका तन, मन हिन्दू दर्शन से आत्मसार हो जाएगा।
इतने विशाल जन समूह के बाद भी कहीं कोई भेद नहीं, कोई ऊंचा अथवा गौण नहीं, पूरा हिन्दू समाज समरस हो गया दिखाई देता है। स्त्री–पुरुष, वृद्ध–युवा सभी पूरी श्रद्धा और उमंग से मां गंगा के जल में डुबकी लगाने आते हैं और ईश्वर से अपने जीवन के लिए मंगलकामनाएं मांगते हैं। कहीं कोई अव्यवस्था, कोई छेड़छाड़ की अप्रिय घटना दिखाई नहीं देती। उत्तरप्रदेश प्रशासन को इस आयोजन के लिए कोटि कोटि धन्यवाद। किसी ने सही ही कहा है कि धर्म का सही पालन एक सन्यासी के राजा बनाने पर ही होता है।
कैसे तीन दिन बीत गए पता ही नहीं चला। संगम का वह अविस्मरणीय दृश्य जीवनपर्यन्त हमारी स्मृति में बना रहेगा। सही अर्थों में यदि किसी संस्कृति में संपूर्ण मानव समाज और प्रकृति के लिए सुख और कल्याण की भावना निहित है तो वह केवल सनातन संस्कृति में है। धर्म पालन का एक पवित्र संकल्प कुंभ में जाकर मिलता है और वह है – कृण्वन्तो विश्वमार्यम्, अर्थात पूरे विश्व को महान, पवित्र और सनातन की पुण्य धारा से जोड़ना।