मोक्षधाम में लकड़ी का विकल्प एलपीजी

– कौशल अरोड़ा

प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में पर्यावरण के अनेक घटकों जैसे वृक्ष, जल, वायु, अग्नि आदि को पवित्र मानकर उनकी पूजा की जाती रही है। आकाश व पृथ्वी को हमारे ग्रंथों में अमूल्य स्थान प्राप्त है। समुद्र और नदी को भी प्रातः स्मरणीय आराधना योग्य माना गया है।

समय बदला, मनुष्य की आवश्यकताएं बढ़ीं तो इसका प्रभाव परम्पराओं और पर्यावरण पर भी पड़ा। जंगल कटे और अपशिष्ट नदियों में छोड़े जाने लगे। बढ़ते प्रदूषण व जंगलों की अंधाधुंध कटाई से ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ी, ऋतु चक्र असंतुलित हुआ व अन्य अनेक दुष्परिणाम सामने आए हैं।

आज फिर पर्यावरण संतुलन के अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। इसी दिशा में पर्यावरण के महत्व को ध्यान में रखते हुये जयपुर के आदर्श नगर मुक्ति धाम ने एक नई पहल की है। यहॉं शवदाह हेतु एक गैस भट्टी (एलपीजी फर्नेंस) लगाई गई है। सामाजिक सरोकार का यह प्रयास ‘एक कुआं, एक गाँव व एक श्मशान’ के समरस समाज के लक्ष्य को समर्पित है। यह मोक्षधाम सर्व हिन्दू समाज के लिये गत 65 वर्षों से ‘आदर्श सहयोग समिति’ द्वारा संचालित है और यह भट्टी स्थानीय व्यक्तियों व सामाजिक एवं धार्मिक संस्थानों द्वारा दिए गए दान से स्थापित की गई है।

वर्तमान में कोविड-19 के संक्रमण से चिकित्सालय में होने वाली मृत्यु पर शवों की अंत्येष्टि नगर निगम द्वारा की जा रही है। इन शवों का अंतिम संस्कार इसी मोक्षधाम में गैस भट्टी में किया जा रहा है। इसके लिये निगम की ओर से एक व्यक्ति नियुक्त है। अंत्येष्टि के पश्चात मशीन व आस पास की जगह को निगम द्वारा सेनेटाइज भी करवाया जा रहा है। इस हेतु पीपीई किट भी उपलब्ध करवाया गया है। मोक्षधाम संस्था ने एक सेनेटाइजर मशीन भी खरीदी है जो यहॉं आने वाले लोगों को संक्रमण मुक्त करने में उपयोग में लायी जा रही है ।

इस भट्टी में प्रथम अंत्येष्टि श्रीमती चांद रानी जैन की हुई। उनकी आयु 77 वर्ष थी। ऐसा कीमती लाल जैन के प्रयासों व प्रेरणा से सम्भव हो पाया। वे जैन समाज के वरिष्ठ सम्माननीय सदस्य होने के साथ आदर्श नगर के पुरुषार्थी समाज के सदस्य भी हैं। चांद रानी जैन कीमती लाल जैन के परिवार की ही सदस्य थीं। गैस भट्टी में अंत्येष्टि पर कीमती लाल जी का कहना है कि मेरी भाभी जी की अंत्येष्टि जिस प्रक्रिया की पालना से हुई, उससे लकड़ी में प्रायः रह जाने वाले जीवों की हत्या को भी रोका जा सका। साथ ही इस प्रक्रिया से लगभग 2 घण्टों मे ही अस्थियों (फूलों) को प्राप्त किया जा सका। उनका यह भी कहना है कि आज परिजनों के अलग अलग शहरों में रहने के कारण रीति नीति के लिये भी कम समय मिल पाता है, ऐसे में यह प्रक्रिया कारगर है।

इस मोक्षधाम में किसी की परंपरा बाधित न हो उसके लिये एक अस्थि-गृह व एक अस्थि पूजा का कक्ष अलग से बना हुआ है।

इस प्रक्रिया को देख चुके राज. विश्वविद्यालय के वनस्पति शास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. आर. डी. अग्रवाल का कहना है कि एक पेड़ से 25 वर्षो में लगभग 3 से 4 क्विंटल लकड़ी मिलती है, जबकि एक शव दहन पर इससे अधिक लकड़ी की आवश्यकता होती है।

वायुमंडल में जैविक गैस ऑक्सीजन का एक मात्र स्रोत पेड़ पौधे ही हैं। शवदाह गृहों में एलपीजी के उपयोग से दाह संस्कार में लकड़ी के उपयोग को सीमित किया जा सकता है। इसका व्यय भी काफी कम है। लकड़ी से जहाँ 8-9 हजार का खर्चा होता है वहीं इससे मात्र 3 हजार में ही अंत्येष्टि पूर्ण हो जाती है। जैसे जैसे लोगों को इसके बारे में पता चल रहा है, इसकी स्वीकार्यता बढ़ रही है।

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1 thought on “मोक्षधाम में लकड़ी का विकल्प एलपीजी

  1. यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि कोविड-19 के संक्रमण से जयपुर के अस्पताल चिकित्सालय में होने वाली मृत्यु के उपरान्त शवों की अंत्येष्टि आदर्श नगर मोक्षधाम में एलपीजी गैस भट्टी में की जा रही है। इस पहल और प्रयास से आम जनता में व्याप्त डर और संशय को विराम मिलता है जो संक्रमित शवों के अंतिम सँस्कार में मोक्षधाम के सामान्य शव दहन स्थानों के उपयोग का विरोध करते हैं | इस प्रयास से लोगों के बीच पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और शव दहन में एलपीजी गैस के उपयोग से संभंधित भ्रांतियाँ मिटेंगी |

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