तमिलनाडु से देश एवं विश्व को संदेश 

तमिलनाडु से देश एवं विश्व को संदेश 

अवधेश कुमार 

तमिलनाडु से देश एवं विश्व को संदेश तमिलनाडु से देश एवं विश्व को संदेश 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तमिलनाडु विशेषकर रामेश्वरम की यात्रा, वहां के कार्यक्रम, भाषण आदि की जितनी गहन चर्चा देश में होनी चाहिए उतनी नहीं हुई। हमारे यहां राजनीति में तीखा विभाजन होने के कारण देश के सकारात्मक मुद्दे गौण हो जाते हैं और नकारात्मक, निहित स्वार्थ के अंतर्गत उठाए देश के लिए क्षतिकारक मुद्दे सर्वाधिक चर्चा में होते हैं। लंबे समय से दक्षिण को संपूर्ण भारत से अलग साबित करने और तमिल को बिल्कुल भारतीय संस्कृति से विलग के करने का अभियान चल रहा है। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं और उनकी सरकार लंबे समय से भारतीय संस्कृति, सभ्यता, अध्यात्म, समाज जीवन आदि में वैदिक काल की एकता के तत्वों को सामने लाकर दिशा देने का प्रयास कर रही है। सामान्य तौर पर देखें तो प्रधानमंत्री मोदी ने वहां पंबन पुल का उद्घाटन किया, रेलवे को हरी झंडी दी, रामेश्वरम धाम में पूजा की तथा जनसभा को संबोधित किया। राजनीतिक दृष्टि से यह कार्यक्रम सामान्य माना जा सकता है। किंतु पूरी स्थिति समझने वाले इन कार्यक्रमों के दूरगामी गहरे प्रभाव शक्ति को स्वीकार करेंगे। आखिर रामनवमी का दिन ही इस कार्यक्रम के लिए क्यों चुना गया होगा? रामनवमी भारत की दृष्टि से इस वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण दिवस बन गया। एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रामेश्वरम द्वीप और मुख्यभूमि को जोड़ने वाले पंबन समुद्र पुल का उद्घाटन कर रहे थे तो दूसरी ओर अयोध्या में निश्चित समय पर सूर्य की किरणें ठीक रामलला के मस्तक पर तिलक लगा रही थीं। इसके साथ प्रधानमंत्री ने उपग्रह से सेतु समुद्र को स्वयं देखने के साथ संपूर्ण विश्व को दिखाया। यह भारतीय सभ्यता, संस्कृति की कल्पनाशीलता और विज्ञान दोनों स्तरों पर उच्च सोपान का प्रमाण था। संपूर्ण दृश्य अद्भुत था। अगर तमिलनाडु को श्री राम, श्री कृष्ण, महादेव यानि शिव से अलग कर दें तो वहां बचेगा क्या? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी का साकार स्वरूप देश और विश्व के सामने रखने का प्रयास कर रहे थे। 

पंबन पुल भारत का पहला वर्टिकल सी लिफ्ट पुल है, जो हमारे आधुनिक ज्ञान, उच्च तकनीक अभियांत्रिकी की क्षमता का प्रदर्शन है। भारत ने पंबन ब्रिज के अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर में विश्व के सबसे ऊंचे रेल पुलों में से एक चेनाब ब्रिज का निर्माण किया है तो मुंबई में देश का सबसे लंबा समुद्री पुल अटल सेतु और पूर्व में असम में बोगीबील ब्रिज का निर्माण हुआ है। रामेश्वरम को मुख्य भूमि से जोड़ने वाला यह पुल वैश्विक मंच पर भारतीय इंजीनियरिंग की बड़ी उपलब्धि के रूप में सामने है। इसके साथ रामेश्वरम-ताम्बरम (चेन्नई) नई ट्रेन सेवा की शुरुआत हुई तो मोदी ने एक कोस्ट गार्ड शिप को भी फ्लैग ऑफ किया। पंबन पुल की लंबाई 2.08 किमी है। इसमें 99 स्पैन और 72.5 मीटर का वर्टिकल लिफ्ट स्पैन है, जो 17 मीटर तक ऊपर उठता है, जिससे जहाजों की आवाजाही की सुविधा मिलती है, साथ ही निर्बाध ट्रेन संचालन सुनिश्चित होता है। इसके नीचे से बड़े जहाज भी आसानी से गुजर सकेंगे और ट्रेनें तेजी से दौड़ सकेंगी। जब भी जहाज आएगा पुल अपने आप ऊपर उठ जाएगा। यह पुल रामेश्वरम को श्रद्धालुओं के लिए बेहतर कनेक्टिविटी प्रदान करेगा। नई ट्रेन सेवा रामेश्वरम को चेन्नई के साथ देश के अन्य हिस्सों से भी जोड़ेगी। अगर सामान्य तौर पर पंबन पुल का उद्घाटन हो जाता, तो भारत को जिस रूप में हम विश्व के समक्ष प्रस्तुत करना चाहते हैं, स्वयं भारतीयों के अंदर आंतरिक नैसर्गिक एकता तथा अपने देश की विरासत पर गर्व के भाव से प्रेरणा देने के लक्ष्य पर काम कर रहे हैं वह पूरा नहीं होता।

हम यहां उन आंकड़ों में नहीं जाएंगे, जिन्हें प्रधानमंत्री ने अपने कार्यकाल में तमिलनाडु में केंद्र सरकार द्वारा दी गई धनराशि या कार्यों के संदर्भ में प्रस्तुत किया। कोई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके साथियों का यह आरोप स्वीकार नहीं कर सकता कि देश के अन्य क्षेत्रों की तरह तमिलनाडु को विकास की नीतियों में पर्याप्त महत्व नहीं मिलता। सत्य यह है कि इस प्रकार की भाषा तमिलों के अंदर अंग्रेजी शासनकाल से लेकर लंबे समय तक निराधार तमिल क्षेत्रीय नेशनलिज्म व संपूर्ण भारतीय संस्कृति से अलग विशिष्ट ही नहीं मूल अध्यात्म और संस्कृति के विरुद्ध साबित करने का अभियान चला रहा है। सनातन, हिंदी, उत्तर आदि के बारे में अपमानजनक और उत्तेजित करने वाली भाषा के पीछे की नकारात्मक सोच को समझना कठिन नहीं है। इस समय नई शिक्षा नीति में त्रिभाषा फार्मूले का निराधार विरोध कर तमिल भाषा के आधार पर उग्र क्षेत्रवाद पैदा करने का प्रयास द्रमुक एवं इसी तरह की राजनीति करने वाली अन्य पार्टियों कर रही हैं। सच यह है कि स्वयं ये नेता तमिल भाषा में पत्र लिखने और हस्ताक्षर की जगह अंग्रेजी का अधिक प्रयोग करते हैं। अगर स्टालिन अपने राज्य में मेडिकल, प्रबंधन, इंजीनियरिंग …..आदि की शिक्षा तमिल भाषा में आरंभ कर दें तो इसका विकास होगा या विरोध करने से? पिछले वर्ष 22 जनवरी को अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व प्रधानमंत्री तमिलनाडु एवं दक्षिण में प्रभु राम से जुड़े धार्मिक स्थलों पर पूजा अर्चना कर रहे थे, उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम की आध्यात्मिक – सांस्कृतिक अंतर्निहित एकता दिखती थी, तब भी तमिल नेताओं और पार्टियों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी और उनको समस्या हो रही थी। 

वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास के रामचरितमानस के अलावा जितनी भी राम कथाएं जिन भाषाओं में हैं, उन सबमें श्रीराम, लक्ष्मण, सीता के वन गमन उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक का विवरण है। ऐसा ही हम महाभारत में पांडवों के वनवास के बीच देखते हैं। अगर भारतीय संस्कृति और भूगोल के बीच एकता नहीं होती तो इस तरह निर्बाध यात्राएं होती ही नहीं। उपग्रह से प्रधानमंत्री रामसेतु देख और दिखा रहे हैं तो राम कथा को कपोल कल्पना मानने वालों को अपना विचार बदलना चाहिए। 

रामेश्वरम धाम द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। संत रामानुजाचार्य और माधवाचार्य तमिलनाडु से निकले और संपूर्ण देश में उनके द्वारा आरंभ वैष्णव पंथ के मंदिर व साधना परंपरा आज भी हैं। आदि शंकराचार्य ने स्वयं को द्रविड़ शिशु कहा। वह केरल के थे। बारह अलवर (वैष्णव परंपरा के कवि-संत) और 63 नयनार (शैव परंपरा के कवि-संत) दक्षिण भारत में हिंदू धर्म की भक्ति परंपरा के प्रतिपादक माना जाते है। उनमें से अधिकांश तमिल क्षेत्र से आए थे। संगम साहित्य में प्राचीन तमिलकम के आसपास हिंदू देवताओं और वैदिक प्रथाओं का उल्लेख है। संगम काल की प्राचीन कृति पारिपातल में भगवान विष्णु पर कविताएँ हैं, जिनमें कृष्ण और बलराम के भी संदर्भ हैं। 7वीं सदी के तमिल संत कवि अप्पार , तिरुज्ञान संबंदर और सुंदरर और 9वीं सदी के कवि मणिकवसागर, तिरुवाक्कम के संगीतकार शैव धर्म के संत थे। शैव संतों ने तेवरम में 276 मंदिरों की पूजा की है और उनमें से अधिकांश तमिलनाडु में कावेरी नदी के दोनों तटों पर हैं। वैप्पु स्थलंगल 276 स्थानों का एक समूह है जहां शिव मंदिर हैं जिनका उल्लेख तेवरम के गीतों में से किया गया था।

मोदी सरकार ने काशी तमिल संगम आरंभ कर इस उत्तर और दक्षिण की अंतर्भूत एकता को ही प्रमाणित और साकार करने की पहल की है, जिसके परिणाम आ रहे हैं। तमिल के नाम पर अलगाववाद और सनातन विरोधी भावना भड़काने वाले आखिर इतिहास की सच्चाइयों को कैसे खारिज कर सकते हैं। केवल कहने की बजाय अगर प्रधानमंत्री स्तर के व्यक्ति साकार रूप में उन मंदिरों में जाते हैं, पूजा करते हैं, उनके बारे में बोलते हैं, सेतुबंध को उपग्रह से प्रदर्शित करते हैं, तो भारत सहित संपूर्ण विश्व में इसका संदेश जाता है। इससे विश्व समुदाय के अंदर यह भी स्थापित होता है कि एकता के ही विविध रूप के साथ भारत समृद्ध प्राचीन विरासत के साथ आधुनिक विकास विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में भी समृद्धतम बन रहा है। ऐसे देश का ही भावनात्मक सम्मान विश्व समुदाय करता है उसी की विश्वसनीयता भी स्थापित होती है।

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