राजस्थान में घुमंतू समाज के बच्चों के लिए चल विद्यालय योजना

राजस्थान में घुमंतू समाज के बच्चों के लिए चल विद्यालय योजना
राजस्थान सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए घुमंतू समाज के बच्चों को मुख्यधारा की शिक्षा से जोड़ने के लिए चल विद्यालय शुरू करने की घोषणा की है। यह निर्णय ऐसे समय में आया है, जब राज्य में प्रति वर्ष लगभग 10 हजार बच्चे अपनी पढ़ाई अधूरी छोड़ रहे हैं, जिनमें बड़ी संख्या घुमंतू समाज के बच्चों की है। स्वाधीनता के सात दशक बीत जाने के बाद भी यह समाज आज खानाबदोशों का जीवन व्यतीत कर रहा है। घुमंतू परिवारों का कोई स्थाई निवास नहीं होता। ये परिवार आजीविका की खोज में एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते रहते हैं। इस प्रवास के चलते स्कूलों में नामांकन के बाद भी बच्चों की पढ़ाई छूट जाती है और कुछ समय बाद वे ड्रॉपआउट हो जाते हैं और प्रतिस्पर्धा के इस दौर में पिछड़ने लगते हैं फिर बाल श्रम या अन्य असुरक्षित कामों की ओर चले जाते हैं।
ऐसे में सरकार की चल विद्यालय खोलने की पहल अभिनंदनीय है। इस योजना के अंतर्गत घुमंतू जातियों के बच्चे स्थायी विद्यालय के बिना भी शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे। ये ऐसे चलते-फिरते विद्यालय होंगे, जो घुमंतू बस्तियों में जाकर शिक्षा देंगे। बच्चों का प्राथमिक स्तर पर नामांकन होगा ताकि शिक्षा की नींव मजबूत हो। सरकार का प्रयास है कि कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रह जाये।
कैसे कार्य करेगा चल विद्यालय? (संभावित कार्यप्रणाली):
चल विद्यालय में शिक्षक प्रवासरत घुमंतू परिवारों के पास जाकर उनके बच्चों को पढ़ाई करवाएंगे।
ये स्कूल वाहनों, टेंट या अन्य मोबाइल साधनों के माध्यम से संचालित हो सकते हैं। सरकारी व निजी सहयोग, विशेषकर भामाशाहों (दानदाताओं) की सहायता से इनका संचालन किया जाएगा। इन विद्यालयों के लिए अभी स्पष्ट गाइडलाइन नहीं आई है, लेकिन सरकार जल्दी ही योजना की संरचना जारी करेगी।
सरकार चाहती है, इस योजना से अधिक से अधिक भामाशाह जुड़ें। राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने चेन्नई दौरे के दौरान प्रवासी राजस्थानियों से इस योजना में भागीदारी का आह्वान भी किया। उन्होंने कहा कि सरकार और प्रशासन का उद्देश्य है कि कोई बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। प्रवासी राजस्थानियों को चल विद्यालय योजना में भामाशाह की भूमिका निभानी चाहिए।
दो दशक पूर्व बीकानेर सहित राजस्थान के कुछ जिलों में ऐसी ही एक योजना शुरू हुई थी, जिसमें शिक्षक बसों में जाकर बच्चों को पढ़ाते थे, लेकिन यह योजना आगे नहीं बढ़ सकी।
इस बार सरकार ने घुमंतू समाज के बच्चों के उत्थान का बीड़ा उठाया है। इसमें चुनौतियां बहुत हैं, लेकिन यदि इस योजना का गम्भीरता से क्रियान्वयन हो तो यह राजस्थान में शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी पहल साबित हो सकती है। इससे हजारों घुमंतू बच्चों का भविष्य संवर सकता है और वे भी समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित हो सकते हैं।