सनातन संस्कृति की विरासत को सहेजने में भारतीय परिवार व्यवस्था की भूमिका महत्वपूर्ण है

अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस पर विशेष

भारत में सामाजिक मूल्यों और सनातन संस्कृति की विरासत को सहेजने में परिवार व्यवस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तेजी से बढ़ रहे भौतिकतावाद ने एकल परिवार के चलन को बढ़ावा दिया है जिससे कहीं ना कहीं इस व्यवस्था को चोट अवश्य पहुंची है, फिर भी भारत ने अपनी परिवार व्यवस्था को सदियों बाद भी जीवित रखा हुआ है।

– कौशल अरोड़ा

दुनिया भर में भारतीय परिवार भारत की महानता और यहां की बंधुत्वपूर्ण सामाजिक संरचना के परिचायक रहे हैं। भारत में सामाजिक मूल्यों और सनातन संस्कृति की विरासत को सहेजने में परिवार व्यवस्था ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यही कारण है कि संसार भर में भारत की परिवार व्यवस्था पर अनेक शोध हुए हैं। भारत की परिवार नाम की इस सामाजिक संरचना का आज संसार भर में अभाव महसूस किया जा रहा है। तेजी से बढ़ रहे भौतिकतावाद ने एकल परिवार के चलन को बढ़ावा दिया है जिससे कहीं ना कहीं इस व्यवस्था को चोट अवश्य पहुंची है, फिर भी भारत ने अपनी परिवार व्यवस्था को सदियों बाद भी जीवित रखा हुआ है।

विश्व को समाज शास्त्र का ज्ञान देने वाला एक सुखद संयोग है कि पूरे विश्व का आध्यात्मिक गुरु हमारा भारत है। यहाँ के निवासी सबसे ज्यादा भावना प्रधान होते हुए प्रेम, मोह, परिवार आदि से स्वयं को मुक्त नहीं कर पाते।

परिवार शब्द हम भारतवंशियों के लिए अत्यंत ही आत्मीय, सम्मान व गौरव का प्रतीक है।
एक छत के नीचे रहने वाले व्यक्तियों का समूह जो एक दूसरे की चिंता करते हुए एक दूसरे का सम्मान करते हैं और अपनी मर्यादा को बनाए रखते हैं, परिवार कहलाता है। सम्मान और मर्यादा का पालन भारतीय परिवारों का महत्वपूर्ण घटक है। यद्यपि भारत में प्रशासनिक और व्यापारिक गतिविधियों के कारण एकल परिवार व्यवस्था का प्रचलन तेजी से बढ़ा है फिर भी देश के अनेक राज्यों और हिस्सों में संयुक्त परिवार की व्यवस्था अभी तक बनी हुई है।

महर्षि अरविन्द के तपोज्ञान में परिवार की भारतनिष्ठ परिभाषा – किसी के पास रहने और उसके साथ चलने वाले लोगों का वैचारिक जुड़ाव परिवार ही है यानि एक प्राकृत व नैसर्गिक विचार का अनुसरण करने वाला भी परिवार है ।

विश्व में लोगों के मध्य परिवार की महत्ता बताने के लिए प्रत्येक वर्ष 15 मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस’ मनाने की औपचारिक घोषणा
वर्ष 1995 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने की। तभी से प्रत्येक वर्ष संयुक्त परिवार की महत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर किया जाने लगा। ठीक वैसे, जैसे वर्ष 2015 से योग दिवस को भारतीय मनीषियों ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित किया।

अथर्ववेद में आता है:
अनुव्रतः पितुः पुत्रो मात्रा भवतु संमनाः।
जाया पत्ये मधुमतीं वाचं वदतु शन्तिवाम्॥

परिवार, परिजनों के साथ रहने से नहीं अपितु साथ जीने से बनता है। जहाँ एक-दूसरे की रक्षा, सुरक्षा के प्रयास होते हैं। जहाँ सभी का दायित्व उसकी गरिमा को बनाए रखना होता है, जो हमारी संस्कृति में पीढ़ी-दर-पीढ़ी संस्कार के रूप में पल्लवित होते हैं। यही परंपरा परिवार को एक संसाधन की तरह समाजोपयोगी उत्पादक कार्य में सहयोगी भी मानती है ।

भारतीय मान्यताओं में, परिवार मानव की प्रथम पाठशाला और माता प्रथम गुरु है। आज के दिन भारतीय परिवारों को सुसंस्कृत और सुदृढ़ करने के लिये भारतीय मनीषियों ने सामूहिक परिवारिक भोज मंत्रोचार के साथ, कल्याण मंत्र, सभी सदस्यों के महत्व की चर्चा, पारिवारिक शाखा व उसके कार्यक्रम यथा सूर्य नमस्कार, बौद्ध कथा व ईश वंदन सम्बन्धी संस्कार निर्धारित किये थे।

वर्तमान प्रतिस्पर्धा वाले युग में, एक-दूसरे से आगे निकलने की अंधी दौड़ व विज्ञापन के
बढ़ते प्रभाव (कर लो दुनिया मुट्ठी में तथा तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफ़ेद क्यों) से कोई जीवित रख सकता है तो वह है परिवार। भारतीय और गैर-भारतीय मनोविज्ञानियों ने अपने शोध व अध्ययन में यह स्वीकारा है कि वे व्यक्ति अवसाद ग्रस्त नहीं होते जो परिवार में रहते हों। वे व्यक्ति व्यसन, दुराचार, घरेलू हिंसा का शिकार नहीं होते जो प्रायः पारिवारिक मान्यताओं का पालन करते हैं।

भारत सरकार तथा न्यायालयों ने अपने निर्णयों में भी समय-समय पर परिवार की परिभाषा में संशोधन किये हैं। परिवार में आश्रित, जीविकोत्पार्जन तथा नाबालिग के अधिकार व आधार पर मूल परिभाषा में जुड़ाव होते रहे हैं जो स्वीकार्य भी हैं। जी पी मुरडॉक समाजशास्त्री ने विश्व के 250 समाजों का अध्ययन कर निष्कर्ष निकाला कि भारतीय परिवार सार्वभौमिक हैं।

हम सभी को सनातन धर्म की प्राचीन परंपरा “वसुधैव कुटुम्बकम्” जिसके अनुसार धरती ही परिवार है, को मानना चाहिये। इस संक्रमण-काल में अनेक व्यक्ति व संस्थाएं गरीब, असहायों तथा अक्षमजनों की सेवा में इसी उद्देश्य से आगे आयी हैं।

आइए विश्व परिवार दिवस के अवसर पर हम संकल्प लें कि भारत की प्राचीन और वैज्ञानिक सामाजिक संरचना परिवार व्यवस्था को दृढ़ और मजबूत बनाने के लिए अपना योगदान देंगे और इसी सामाजिक संरचना के आधार पर देश को एक नई ऊंचाई पर ले जाएंगे।

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