एक प्रधान, एक विधान व एक निशान के प्रणेता डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
देश में एक प्रधान, एक विधान व एक निशान के प्रणेता, भारतीय जनसंघ के संस्थापक व इसके पहले अध्यक्ष डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की आज 119वीं जन्मजयंती है।
उनका जन्म 6 जुलाई 1901 को कलकत्ता के अत्यन्त प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। वे 1926 में इंग्लैण्ड से बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौटे। 33 वर्ष की अल्पायु में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने समाजसेवा करने के उद्देश्य से राजनीति में प्रवेश किया। जिस समय मुस्लिम लीग की राजनीति से बंगाल का वातावरण दूषित हो रहा था और साम्प्रदायिक लोगों को ब्रिटिश सरकार प्रोत्साहित कर रही थी, तब डॉ. मुखर्जी ने यह सुनिश्चित करने का बीड़ा उठाया कि बंगाल के हिन्दुओं की उपेक्षा न हो।
विभाजन के कट्टर विरोधी
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी मजहब के आधार पर विभाजन के कट्टर विरोधी थे। वह मानते थे कि विभाजन सम्बन्धी उत्पन्न हुई परिस्थिति ऐतिहासिक और सामाजिक कारणों से थी।महात्मा गांधी और सरदार पटेल के अनुरोध पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी भारत के पहले मन्त्रिमण्डल में शामिल हुए। उन्हें उद्योग जैसे महत्वपूर्ण विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी। संविधान सभा और प्रान्तीय संसद के सदस्य और केन्द्रीय मन्त्री के नाते उन्होंने शीघ्र ही अपना विशिष्ट स्थान बना लिया। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रवादी चिन्तन के चलते अन्य नेताओं से उनके मतभेद बराबर बने रहे इसलिए उन्होंने मन्त्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया। उन्होंने एक नई पार्टी बनायी जो उस समय विरोधी पक्ष के रूप में सबसे बड़ा दल था। अक्टूबर, 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की गयी।
जब नेहरू ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी से माफी मांगी
आम चुनाव के तुरंत बाद की बात है, दिल्ली के नगरपालिका चुनाव में कांग्रेस और जनसंघ में कड़ी टक्कर थी। इस माहौल में संसद में बोलते हुए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस पार्टी पर आरोप लगाया कि वह चुनाव जीतने के लिए वाइन और मनी का इस्तेमाल कर रही है।” इस आरोप का नेहरू ने काफ़ी विरोध किया। बीबीसी के एक लेख के अनुसार “जवाहरलाल नेहरू समझे कि मुखर्जी ने वाइन और वुमेन कहा है। उन्होंने खड़े होकर इसका बहुत ज़ोर से विरोध किया।”
“मुखर्जी साहब ने कहा कि आप आधिकारिक रिकॉर्ड उठा कर देख लीजिए कि मैंने क्या कहा है। ज्यों ही नेहरू ने महसूस किया कि उन्होंने ग़लती कर दी। उन्होंने भरे सदन में खड़े होकर उनसे माफ़ी मांगी। तब मुखर्जी ने उनसे कहा कि माफ़ी मांगने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं बस यह कहना चाहता हूँ कि मैं ग़लतबयानी नहीं करूँगा।”
एक प्रधान, एक विधान और एक निशान के प्रणेता
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जम्मू-कश्मीर को भारत का पूर्ण और अभिन्न अंग बनाना चाहते थे। उस समय जम्मू-कश्मीर का अलग झण्डा और अलग संविधान था। वहाँ का मुख्यमन्त्री (वजीरे-आज़म) प्रधानमन्त्री कहलाता था। संसद में अपने भाषण में डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने धारा-370 को समाप्त करने की भी जोरदार वकालत की। अगस्त 1952 में जम्मू की विशाल रैली में उन्होंने अपना संकल्प व्यक्त किया था कि या तो मैं आपको भारतीय संविधान प्राप्त कराऊँगा या फिर इस उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपना जीवन बलिदान कर दूँगा। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी अपने संकल्प को पूरा करने के लिये 1953 में बिना परमिट लिये जम्मू-कश्मीर की यात्रा पर निकल पड़े। वहाँ पहुँचते ही उन्हें गिरफ्तार कर नज़रबन्द कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी ।