अवैध बजरी खनन एक बड़ी समस्या

Illegal gravel mining

अमित झालानी

Illegal gravel mining

आज अवैध बजरी खनन एक बड़ी समस्या बन चुका है। इससे राजस्व की हानि तो है ही, नदियों का पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित हो रहा है। बजरी कई जलीय तथा उभयचर प्राणियों के लिये आवास तथा प्रजनन का स्थान प्रदान करती है। इसके अनियंत्रित, बेहिसाब तथा अवैध खनन से जल जीव तो प्रभावित होते ही हैं, कई बार यह नदी के क्षरण का कारण भी बन जाता है। जलधारा के तल के गहरा हो जाने से नदी के तटों का कटाव बढ़ जाता है। यही कारण है कि एक महीने पहले जहाँ पीने के पानी की भी किल्लत थी, वहाँ थोड़ी-बहुत बारिश होने पर ही बाढ़ जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। नदियों में रेत-पत्थरों के कई मायने होते हैं। इनकी गति के नियंत्रण और भूमिगत जल की आपूर्ति में इनका बड़ा योगदान होता है।

पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव को देखते हुए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 को आधार मानकर 5 अगस्त 2013 को पूरे देश में बजरी खनन पर रोक लगा दी थी। राजस्थान में नियमों की अनदेखी होने पर हाई कोर्ट ने 16 नवंबर 2017 को बनास सहित 82 स्थानों पर फिर से बजरी के खनन पर प्रतिबंध लगा दिया। तब से प्रदेश में अवैध बजरी के खनन और व्यापार का काम जोरों पर है।

राजस्थान प्रदेश के ट्रक ऑपरेटर वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष नवीन शर्मा ने वैध बजरी खनन के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में आरोप लगाया गया कि सरकार के कई नेता और अधिकारियों की मिलीभगत से लीगल माइनिंग शुरू नहीं हो पा रही है और अवैध व्यापार को पनपाया जा रहा है। इस पर सुनवाई करते हुए 18 फरवरी 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने 8 सदस्यीय सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी का गठन किया और एक माह में जांच रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया। समिति की पहली बैठक 4 मार्च 2020 को दिल्ली में हुई।

शीर्ष कोर्ट द्वारा गठित इस समिति के समक्ष राजस्थान खनन विभाग के मुख्य सचिव कुंजी लाल मीणा और निदेशक गौरव गोयल ने राजस्थान में चल रहे अवैध बजरी खनन और इसमें सक्रिय माफिया की भूमिका को स्वीकार किया। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीनों से उपभोक्ता 3-4 गुना दाम देकर बजरी खरीद रहे हैं। अवैध खनन के कारण इतनी महंगी बजरी होने पर भी सरकार के खाते में एक फूटी कौड़ी भी नहीं जाती जिससे लाखों करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। फरवरी के बजट सत्र में खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अवैध बजरी खनन पर चिंता व्यक्त की थी। मुख्यमंत्री ने इस बात को स्वीकार किया था कि उपभोक्ता को 15000-20000 रुपए में मिलने वाली एक ट्रॉली बजरी अवैध व्यापार के कारण 60000 रुपए तक में बिक रही है।

आश्चर्यजनक है कि मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती सरकार पर इसका दोष मढ़कर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। आखिर अब प्रशासन और सरकार उनकी है तो वे किस दबाव में कठोर कार्यवाई करने से हिचकिचाते हैं? ऐसे कौन लोग हैं जिनके प्रभाव में गहलोत झिझक रहे हैं? यदि भाजपा सरकार के लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं तो उनकी धरपकड़ क्यों नहीं हो रही? एक रिपोर्ट के अनुसार खुद तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट (टोंक विधायक) के विधानसभा क्षेत्र टोंक में अवैध खनन का कारोबार सबसे अधिक फला फूला है। लॉकडाउन के दौरान भी अवैध खनन पर किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं हो पाया।

एक रिपोर्ट के अनुसार रात भर बजरी का खनन जारी रहता है और रोजाना पांच सौ से अधिक ट्रॉली बजरी खनन तो सिर्फ सवाई माधोपुर के बनास नदी के पेटे से होता है। खनन एवं भूविज्ञान विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 अप्रैल से 15 जून तक 60 से अधिक मामले अवैध बजरी के पकड़े गए जिस पर 30 लाख रुपए का जुर्माना भी वसूला गया लेकिन यह सफलता हाथी पकड़ने गए दल के द्वारा हाथी की पूंछ के बाल पकड़ने जितनी ही है क्योंकि सरकार को राजस्व की हानि लाखों करोड़ रुपए में है।

उच्चतम न्यायालय की कड़ी फटकार और दिशानिर्देशों के बाद जिला प्रशासन हरकत में आया और 16 जून को अवैध खनन के स्थान पर जाकर भौतिक सत्यापन कर स्थिति का जायजा लिया। 16 जून को 4 लीज धारकों की लीज निरस्त की और 5 करोड़ से अधिक की पेनल्टी भी लगाई। राजनैतिक संरक्षण के चलते प्रशासन इस अवैध कारोबार को बंद करवाने में पूर्णतः असमर्थ सिद्ध हो रहा है। यदि कहीं कोई इस पर कार्यवाही करने का प्रयास भी करता है तो खनन माफियाओं द्वारा विरोध करने वाले आम-इंसान के साथ-साथ पुलिसकर्मियों तक को ट्रक-ट्रॉली से कुचलवाने में भी संकोच नहीं होता है। अवैध खनन रोकने की घटनाओं में माफिया द्वारा आम आदमी, पुलिस और प्रशासन पर जानलेवा हत्या के अनेकों वाकये सामने आए हैं।

अवैध बजरी खनन के कारोबार का यह बड़ा खेल तब प्रकाश में आया जब अगस्त 2013 में उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गौतम बुद्ध नगर की एसडीएम दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया था। उल्लेखनीय है कि बिना शासन के दबाव में आए दुर्गा शक्ति नागपाल ने बजरी माफियाओं पर कठोर कार्रवाई कर खुद के जिले को अवैध बजरी खनन से मुक्त करा दिया था। इससे नाराज अखिलेश यादव ने श्रीमती नागपाल को यह आरोप लगाकर निलंबित कर दिया था कि उन्होंने अवैध रूप से निर्मित हो रही एक मस्जिद की दीवार को ढहा दिया (जबकि वह निर्माण भी अवैध था)। अफसर को प्रताड़ित करने के लिए अखिलेश यादव ने नागपाल के पति आईएएस अधिकारी अभिषेक सिंह को भी निलंबित कर दिया था।

एनजीटी बार एसोसिएशन की याचिका पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस घटना (दुर्गा शक्ति नागपाल का निलंबन) पर संज्ञान लिया। एनजीटी चेयरपर्सन स्वतंत्र कुमार ने बजरी के अवैध खनन की समस्या की गंभीरता को समझते हुए बिना पर्यावरणीय मंजूरी के बजरी खनन पर देशव्यापी रोक लगा दी थी।

हालांकि देश के विकास और नए निर्माणों के लिए बजरी अति आवश्यक है, परंतु बजरी खनन के कारण नदियों के निकटवर्ती क्षेत्रों का भू-जल स्तर बुरी तरह प्रभावित होता है। साथ ही भू-जल प्रदूषित भी होता है। खनन से नदी के दोनों और के वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचता है। इसमें भू-कटाव, भूस्खलन की समस्याओं के साथ बाढ़ के हालात बनते हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट भी अपने निर्णय में इसको जैव विविधता के लिए खतरा बता चुकी है और इसलिए खनन में पर्याप्त निगरानी और नीति की आवश्यकता पर बल दिया है। अवैध बजरी के खनन के दौरान सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं होने के कारण मजदूरों की भी लगातार मौत हो रही है जिसकी कोई भी सुध लेने वाला नहीं है।

नदियाँ जीवनदायिनी है। नदियों की सुरक्षा, हमारी अपनी सुरक्षा है। सरकार और समाज को एकजुट होकर इस हेतु संकल्पबद्ध होना चाहिए। अपने तुच्छ स्वार्थों को त्यागकर प्रत्येक व्यक्ति, राजनेता या नौकरशाह को अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर कल देने के लिए प्रयासरत होना होगा और वह बेहतर कल अनीतिपूर्वक कमाई हुई संपत्ति से नहीं वरन शुद्ध जल, वायु और मिट्टी से ही संभव होगा।

(लेखक ऊर्जा संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण पर शोध कर रहे हैं)

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