मृत्युभोज न कर राशि बालिका छात्रावास निर्माण के लिए दान कर दी
पाली। समाज में ऐसी कितनी ही परम्पराएं हैं जो कभी समय की आवश्यकता रही होंगी लेकिन आज कुरीति बन गई हैं। उन्हीं में से एक है मृत्युभोज। मृत्युभोज के कारण कई गरीब परिवार कर्ज के बोझ तले दब जाते हैं तो दूसरी तरफ कई सम्पन्न परिवारों के लिए यह स्टेटस सिम्बल होता है। लेकिन समय के साथ इसको लेकर लोगों की सोच बदल रही है। अब वे मृत्युभोज न करके उसमें खर्च होने वाली राशि सामाजिक कार्यों पर लगा रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण प्रस्तुत किया है साेजत तहसील के नया गांव निवासी भैराराम, कानाराम और जयराम ने। उन्होंने अपनी मॉं राजू देवी की मृत्यु पर मृत्युभोज व अफीम सभा करने से मना कर दिया और इसमें खर्च होने वाली राशि पाली में बालिका छात्रावास निर्माण के लिए राईका एजुकेशन चैरिटेबल ट्रस्ट को दान कर दी। उन्होंने कहा, हमारी मॉं की यादें हमारे लिए अविस्मरणीय हैं लेकिन इस छात्रावास के रूप में वे समाज के लिए भी अमिट रहेंगी।
उन्होंने मृत्यु के बाद चुकली की रस्म पर सिर्फ बहन बेटियों व नजदीकी रिश्तेदारों काे बुलाकर दाल राेटी की व्यवस्था की। इस अवसर पर मांगीलाल देवासी, रामलाल देवासी, अनाराम देवासी, दीपाराम देवासी, पुकाराम चौधरी, गोपाराम धिनावास, गंगाराम चंदासनी, घेवरराम, भुण्डाराम, सूजाराम, भाकरमल, मांगीलाल, गोपाराम खटाना, ढलाराम, अणदाराम, धोकलजी आसंडा, भंवरा शिवपुरा, संत घीसाराम जाट आदि ने उनकी इस पहल का स्वागत किया और लाेगाें से भी सीख लेते हुए इस परंपरा काे जड़ से मिटाने का आग्रह किया।