कुशल संगठक व हिन्दुस्थान समाचार संवाद समिति को पुनर्जीवित करने वाले श्रीकांत जोशी
8 जनवरी / पुण्यतिथि पर विशेष
मुंबई में बीए की पढ़ाई के दौरान वह संघ के स्वयंसेवक बने। कुछ समय जीवन बीमा निगम में काम करने के बाद वर्ष 1960 में वे तत्कालीन प्रचारक शिवराय तैलंग की प्रेरणा से प्रचारक बने। सर्वप्रथम उन्हें श्री गुरु गोविन्द सिंह की पुण्यस्थली नांदेड़ भेजा गया। तीन वर्ष बाद उन्हें असम में तेजपुर विभाग प्रचारक बनाकर भेजा गया। इसके बाद वे लगातार 25 वर्ष तक असम में ही रहे। वर्ष 1967 में विश्व हिन्दू परिषद ने गुवाहाटी में पूर्वोत्तर की जनजातियों का विशाल सम्मेलन किया। सरसंघचालक श्री गुरुजी तथा विश्व हिन्दू परिषद के महासचिव दादासाहब आप्टे भी कार्यक्रम में आये थे। कुछ समय बाद विवेकानंद शिला स्मारक (कन्याकुमारी) के लिए धन संग्रह हुआ। असम में इन दोनों कार्यक्रमों के संयोजक श्रीकांत जी ही थे। उनकी संगठन क्षमता देखकर वर्ष 1971 में उन्हें असम का प्रांत प्रचारक बनाया गया। वर्ष 1987 तक उन्होंने इस जिम्मेदारी को निभाया। इस दौरान उन्होंने जहां एक ओर विद्या भारती के माध्यम से सैकड़ों विद्यालय खुलवाये, वहां सभी प्रमुख स्थानों पर संघ कार्यालयों का भी निर्माण कराया।
आज का पूरा पूर्वोत्तर उन दिनों असम प्रांत ही कहलाता था। वहां सैकड़ों जनजातियां, उनकी अलग-अलग भाषा, बोली और रीति-रिवाजों के बीच समन्वय बनाना आसान नहीं था। पर, श्रीकांत जी ने प्रमुख जनजातियों के नेताओं के साथ ही सब दलों के राजनेताओं से भी अच्छे सम्बन्ध बना लिये। वर्ष 1979 से 85 तक असम में घुसपैठ के विरोध में भारी आंदोलन हुआ। आंदोलन के कई नेता बंगलादेश से लुटपिट कर आये हिन्दुओं तथा भारत के अन्य राज्यों से व्यापार या नौकरी के लिए आये लोगों के भी विरोधी थे। अर्थात क्षेत्रीयता का विचार राष्ट्रीयता पर हावी हो रहा था। ऐसे माहौल में श्रीकांत जी ने उन्हें समझा-बुझाकर आंदोलन को भटकने से रोका। इस दौरान उनकी लिखी पुस्तक ‘घुसपैठ: एक निःशब्द आक्रमण’ भी बहुचर्चित हुई।
वर्ष 1987 से 96 तक तृतीय सरसंघचालक बालासाहब देवरस के निजी सचिव रहे। अंतिम दो-तीन वर्षों में उन्होंने एक पुत्र की तरह रोगग्रस्त बालासाहब की सेवा की। वर्ष 1996 से 98 तक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख माधव गोविंद वैद्य के सहायक तथा फिर 2004 तक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख रहे। इस दौरान उन्होंने आपातकाल में सरकारी हस्तक्षेप के कारण मृतप्रायः हो चुकी ‘हिन्दुस्थान समाचार’ संवाद समिति को पुनर्जीवित किया। वर्ष 2001 में जब उन्होंने यह बीड़ा उठाया, तो न केवल संघ के बाहर, इसे समर्थन नहीं मिला। पर श्रीकांत जी अपने संकल्प पर डटे रहे। आज ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के कार्यालय सभी राज्यों में हैं। अन्य संस्थाएं केवल एक या दो भाषाओं में समाचार देती हैं, पर यह संस्था संस्कृत, सिन्धी और नेपाली सहित भारत की प्रायः सभी भाषाओं में समाचार देती है।
श्रीकांत जी ने भारतीय भाषाओं के पत्रकार तथा लेखकों के लिए कई पुरस्कारों की व्यवस्था कराई। इसके लिए उन्होंने देश भर में घूमकर धन जुटाया तथा कई न्यासों की स्थापना की। एक बार विदेशस्थ एक व्यक्ति ने कुछ शर्तों के साथ एक बड़ी राशि देनी चाही, पर सिद्धांतनिष्ठ श्रीकांत जी ने उसे ठुकरा दिया। वे बाजारीकरण के कारण मीडिया के गिरते स्तर से बहुत चिंतित थे। वर्ष 2004 के बाद वे संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी के सदस्य के नाते प्रचार विभाग के साथ ही सहकार भारती, ग्राहक पंचायत, महिला समन्वय आदि को संभाल रहे थे। 8 जनवरी, 2013 की प्रातः मुंबई में हुए भीषण हृदयाघात से उनका निधन हुआ।