अक्षय आस्था का पर्व : अक्षय तृतीया

अक्षय आस्था का पर्व : अक्षय तृतीया

तृप्ति शर्मा

अक्षय आस्था का पर्व : अक्षय तृतीयाअक्षय आस्था का पर्व : अक्षय तृतीया

अक्षय अर्थात् जिसका क्षय ना हो, जो चिरस्थायी हो। ईश्वर प्रदत्त इस जीवन में हम उन सभी शुभ विचारों के चिरस्थायी रहने की कामना करते हैं, जो प्रत्येक प्राणी के लिए कल्याणकारी एवं सुख-समृद्धि दायक हैं। इसी मंगल कामना से शुभकार्य आरम्भ करने का पर्व है अक्षय तृतीया। इस बार यह पर्व शुक्रवार 10 मई 2024 को मनाया जाएगा। बैसाख महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तिथि कहा गया है। भारतवर्ष में यह पर्व एक वरदान बनकर आता है। इसे लोक भाषा में आखातीज कहा जाता है। यह दिन हर शुभ कार्य की शुरुआत के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन सूर्यदेव की आराधना करने से अक्षय स्वास्थ्य, अक्षय बल व पुण्य की प्राप्ति होती है।

महाभारत के अरण्य पर्व के अनुसार युधिष्ठिर ने अन्न पाने की इच्छा से भगवान सूर्य की उपासना की थी। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने अक्षय तृतीया के दिन ही युधिष्ठिर को ऐसा पात्र दिया, जिसका अन्न कभी समाप्त नहीं होता था। इसलिए इसे अक्षयपात्र कहा गया। इसी कारण किसान भी अखंड सुख समृद्धि की कामना से अक्षय तृतीया पर फसलों की कटाई करके नया अन्न भगवान को अर्पित करते हैं। अनेक राज्यों में इस दिन खिचड़ी बनाने की परम्परा है। भगवान को खिचड़ी का भोग लगाकर परिवार में सबसे पहले हलोतियों (हल चलने वालों) को घी खिचड़ी खिलाई जाती है क्योंकि धूप वर्षा की परवाह किए बिना खेतों में उनकी वर्ष भर की तपस्या से ही घर परिवार में समृद्धि आती है। यह पर्व हमें अन्न का सम्मान करना भी सिखाता है। भारतवर्ष की पवित्र भूमि पर आदिकाल से यहाँ के युधिष्ठिरों की तपस्या व शुद्ध आचरण के कारण अन्नपूर्णा देवी की कृपा बनी रही है। इसलिए भारतवर्ष ना केवल स्वयं के लिये बल्कि पूरे विश्व के लिये अक्षय पात्र बना रहा है।

अक्षय तृतीया के दिन सर्वाधिक विवाह होते हैं। इस दिन अबूझ शुभ मुहूर्त बनता है, जो सभी नाम राशि के लिए उत्तम होता है। नई दुकान, मकान, वाहन आदि लेने का भी यह उत्तम दिन है। इस दिन आयी हुई समृद्धि अक्षय रहती है, ऐसा जनमानस का विश्वास है।

विष्णु भगवान के छठे अवतार भगवान परशुराम की जन्मतिथि भी अक्षय तृतीया ही है। जन्माष्टमी और रामनवमी के समान ही अक्षय तृतीया भी हमारा एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। परशुराम के नाम में भी राम है। जब भगवान शिव ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए इनको दिव्य अस्त्र परशु दिया, तब से इनका नाम परशुराम प्रसिद्ध हुआ।

प्रयागराज में संगम तट पर ब्रह्मा जी ने एक वट वृक्ष का रोपण किया, जो विधर्मियों के द्वारा अनेकों बार काटने-जलाने के असफल दुष्प्रयासों के बाद भी आज तक हरा भरा है। इसलिए इसका नाम अक्षय वट वृक्ष है। अक्षय का सनातन भाव है- अक्षय राष्ट्र, अक्षय संस्कार- संस्कृति, अक्षय सुविचार, अक्षय वाणी, अक्षय विद्या, अक्षय कर्तव्यनिष्ठा, अक्षय अन्नधन, अक्षय परिवार- समाज, अक्षय राष्ट्रबोध, अक्षय गौ संवर्धन, धर्म की रक्षा का अक्षय संकल्प, जिसके लिए भगवान ने परशु उठाया, राम ने धनुष और कृष्ण ने सुदर्शन चक्र उठाया। हमारे पर्वत, नदियाँ समुद्र, वृक्ष- लता कृषि, समृद्धि ऐश्वर्य, चिंतन मनन, पराक्रम, शौर्य, दिव्यास्त्र-शस्त्र अक्षय हों। हमारा सनातन संकल्प अक्षय हो। हमारे देश की विश्वगुरुता,विचारों की श्रेष्ठता अक्षय हो।

Share on

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *