गुठली लड्डू : विभेद का पुराना राग

गुठली लड्डू : विभेद का पुराना राग

डॉ. अरुण सिंह

गुठली लड्डू : विभेद का पुराना रागगुठली लड्डू : विभेद का पुराना राग

हिंदी सिनेमा दशकों से जाति भेद और वंचित वर्ग से शोषण का विमर्श चलाता आया है। समाज उत्तरोत्तर बदल रहा है; वंचित वर्ग अपने अधिकारों के प्रति सजग हो रहा है और उन्हें अपने अधिकार मिल भी रहे हैं। पर हिंदी सिनेमा का दृष्टिकोण क्यों नहीं बदल रहा है? यह 1960, 70 या 80 का दौर नहीं है। विद्यालय सरकारी हो अथवा निजी, प्रवेश सभी जाति के विद्यार्थियों को मिलता है। अब वह दौर नहीं रहा जहां किसी वंचित वर्ग के शिक्षार्थी को कोई शिक्षक उसकी जाति के आधार पर दुत्कार दे। इस क्षेत्र में जितने सामाजिक सुधार हुए हैं, वे सिनेमा के कैमरा की दृष्टि से बाहर क्यों हैं? जातीय समरसता स्थापित करने के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रयास और उपलब्धियां अद्वितीय हैं। स्वातंत्र्यवीर सावरकर अपने समकालीन वंचित वर्ग के लोगों के साथ सहभोज आयोजित करते थे। इन उपलब्धियों को सिनेमा कब दिखायेगा?

अक्टूबर 2023 में आई फिल्म “गुठली लड्डू” बॉलीवुड का वही विभेदवादी एजेंडा स्थापित करना चाहती है। फिल्म के निर्देशक इशरत आर खान हैं। फिल्म में गुठली एक वंचित वर्ग (हरिजन) का बालक है, जिसे तथाकथित उच्च जाति के लोग एक निजी विद्यालय में प्रवेश नहीं देते। इस निजी विद्यालय का नाम निर्देशक ने ‘ सरस्वती विद्या मंदिर’ रखा है। इसके पीछे का मंतव्य समझा जा सकता है। गुठली के गांव में सरकारी विद्यालय बंद हो चुका है।

भारत का ऐसा कौनसा गांव अथवा शहर है, जहां किसी जाति विशेष के आधार पर किसी बच्चे को प्रवेश नहीं मिलता। तथ्य यह है कि मुद्दा जाति नहीं होता, आर्थिक स्तर होता है। देश के बड़े नगरों में तथाकथित बड़े स्कूल लाखों का शुल्क वसूलते हैं। उन्हें जाति से प्रयोजन नहीं है, धन से है। वहां किसी गुठली को ढेर सारे धन की अवश्यकता होती है, जाति की नहीं।

अवसर हैं, हर जाति के लिए शिक्षा के अवसर हैं इस देश में। आरक्षण व्यवस्था पूरे प्रभाव से लागू है। गांव गांव में खुले सरकारी विद्यालय इसके प्रमाण हैं। इन सरकारी विद्यालयों में सभी जातियों के बच्चे एक साथ पढ़ते हैं। वहां किसी जाति विशेष के बच्चे से शौचालय नहीं धुलवाए जाते, जैसा कि गुठली को दिखाया गया है। कोई विधायक अपना निजी विद्यालय खोलकर प्रवेश में भेदभाव नहीं कर सकता और न ही इस विषय में किसी हरिशंकर को किसी गुठली के प्रति सहानुभूति रखने की आवश्यकता है।

तर्क यह नहीं कि समाज में पूर्ण समानता स्थापित हो गई है। अपवाद अब भी हैं, पर ऐसा अपवाद कतई नहीं। असली मुद्दा पूंजीवाद और अंग्रेजी पद्धति की शिक्षा है, जाति नहीं। फिल्म के निर्माता और निर्देशक को पटकथा पर पुनः विचार करने की आवश्यकता है। संजय मिश्रा और बाल कलाकार धन्य का अभिनय अच्छा है। सुब्रत दत्ता और कल्याणी मुलाय का प्रभावी अभिनय फिल्म के झूठे विमर्श को और प्रभावी बनाता है।

Share on

1 thought on “गुठली लड्डू : विभेद का पुराना राग

  1. जी, बिलकुल सही लिखा है आपने ये इस प्रकार का विषय प्रसारित कर समाज में समरसता के वायुमंडल में दुर्गंध फैलाने का कार्य कर रहे है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *