भाषाओं के माथे पे जगमग सी जो बिंदी… (कविता)

सभी भाषाओं के माथे पे जगमग सी जो बिंदी है,
वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है।

अ से कोई अज्ञानी जो हिंदी को है अपनाता,
ज्ञ से ज्ञान पाकर वह निखर जाता संवर जाता।
मानव को करें जो व्याकरण में श्रेष्ठ पारंगत,
वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है।।

व्यक्त करने को सब रिश्ते हजारों शब्द हैं इसमें,
आंटी और अंकल से भी बढ़कर भाव हैं जिसमें।
कराए चाची ताई बुआ मौसी मामी से अवगत,
वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है।।

मेरे पुरखों की रचनाएं सहज हिंदी का सागर है,
भरे हैं छंद लय और ताल यह अमृत की गागर है।
हर एक पहलू से है जो अब तलक शालीन और शाश्वत,
वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है।।

सभी माता सभी भाषा तभी गर्वोक्त होती हैं,
नई नव पीढ़ियां जब प्रेम से उसको संजोती हैं।
मेरी बहनों तुम्हें लहराना है जिस भाषा का परचम,
वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है वो हिंदी है।।

                                                -तृप्ति

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