होली आई रे..
धर्मेंद्र कुमार
होली आई रे..
होली आई रे
फागुन की मस्ती छायी रे
कि होली आई रे॥
श्रीराम प्रभु की जन्मभूमि पर,
मन्दिर भव्य बनाया है,
वर्षों के संघर्षों ने ही,
यह शुभ दिन दिखलाया है।
राम-शपथ खाई थी,
पूरी कर दिखलाई रे,
कि होली आई रे॥1॥
रामलला निज धाम पधारे,
समरसता का भाव जगाने,
केवट का सम्मान बढ़ाने,
मॉं शबरी के बेर खाने।
ऊॅंच नीच का भेद मिटा,
पाटेंगे भेदभाव की खाई रे,
कि होली आई रे॥2॥
स्वर्णमयी लंका नहीं चाही,
अवधपुरी की धूल है प्यारी,
जननी और जन्मभूमि की, महिमा अपरम्पार है न्यारी।
स्वदेशी, स्वदेश प्रेम की,
बात सिखाई रे,
कि होली आई रे॥3॥
पॉलिथीन के बढ़ जाने से,
धरती हुई निढाल है,
चहुं ओर बढ़ रहा प्रदूषण,
सिर मंडराता काल है।
पर्यावरण की रक्षा करनी है
बड़ी चुनौती आई रे,
कि होली आई रे॥4॥
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा,
रामराज अब आएगा,
व्यक्ति व्यक्ति दायित्व समझ कर्तव्य नियम अपनाएगा।
अनुशासन पालन करने की,
शपथ है सबने खायी रे,
कि होली आई रे॥5॥
मातृशक्ति और वरिष्ठ जनों का मान करें,
सम्मान करें,
भोजन, भाषा, भवन, भ्रमण में, हिन्दू रीति का ध्यान करें।
मज़हबियों की चाल से बचना,
बहनों भाई रे,
कि होली आई रे॥6॥