नाम में क्या रखा है..?
डॉ. शुचि चौहान
नाम में क्या रखा है..? शेर शेरनी के नाम अकबर और सीता रखने पर विरोध प्रदर्शन कर रहे लोग
भारतीय सनातन संस्कृति से वामपंथियों की घृणा का चरम यह है कि वे हर उस चरित्र को भारतीय संस्कृति से जोड़ देते हैं, जिससे उसका अपमान होता हो, उसे किसी न किसी तरह से हेय दिखाया जा सकता हो या जिससे उनका कोई और एजेंडा सधता हो।
हाल ही में सिलीगुड़ी के बंगाल सफारी पार्क में शेर शेरनी के एक जोड़े को प्रजनन हेतु लाया गया है, उनके नाम अकबर और सीता हैं। कुछ सामाजिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। इस विरोध पर कुछ लोग प्रश्नचिन्ह् खड़े कर रहे हैं। ऐसे लोगों से प्रश्न है कि क्या ये नाम शिवाजी और आयशा हो सकते थे? या जिन्हें अकबर और सीता की जोड़ी में गंगा जमुनी तहजीब, भाईचारा, सौहार्द और न जाने क्या क्या दिख रहा है, क्या उन्हें शिवाजी और आयशा नाम होने पर भी यही दिखता? कहा जा रहा है ये तो जानवर हैं, ये न हिन्दू हैं न मुसलमान, क्या तब भी उनका तर्क यही होता? नहीं! दरअसल यह एक माइंड गेम है। छोटी छोटी बातों से आपके दिमाग को ऐसा ट्यून कर देना कि वे आपको साधारण लगने लगें और वामपंथी इसमें कुशल हैं। पाठ्यपुस्तकों, फिल्मों और शहरों के नामों तक में वे बरसों से यही गेम खेलते आ रहे हैं।
एनसीईआरटी (NCERT) की पाँचवीं कक्षा की अंग्रेजी की पुस्तक मैरीगोल्ड के यूनिट आठ में एक अध्याय है द लिटिल बुली, जिसमें हरि नाम का एक बच्चा है, जो लड़कियों को चिकोटी काटता है, उन्हें चिढ़ाता है। सब बच्चे उससे डरते हैं, दूर रहते हैं और घृणा करते हैं। एनिड ब्लाइटन द्वारा लिखित मूल कहानी में इस बच्चे का नाम हेनरी है, जिसे बड़ी कुशलता से हरि बना दिया गया और ‘हरि’ नाम के उस बच्चे की नकारात्मक छवि बनाकर पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाले छोटे बच्चों के मन में हिन्दू संस्कृति के प्रति घृणा के बीज बोए जा रहे हैं।
चौथी क्लास के ईवीएस के पाठ 27 (चुस्की गोज टू स्कूल) में अब्दुल एक भला बच्चा है और अपाहिज लड़की चुस्की की स्कूल जाने में सहायता करता है। इसी पुस्तक के पाठ-19 (अब्दुल इन द गार्डन) में अब्दुल बहुत मेहनती बच्चा है और बगीचे में अपने अब्बू की सहायता करता है।
बॉलीवुड फिल्मों में लगभग हर इंटर-रिलिजन शादी में लड़की हिन्दू नाम वाली होती है और लड़का मुसलमान नाम वाला। फिल्म केदारनाथ में पुजारी की बेटी मंदाकिनी मुस्लिम पिट्ठू (तीर्थयात्रियों को कंधे पर उठाने वाला) मंसूर के लिए परिवार से लड़ती है। फिल्म अतरंगी रे में रिंकू सज्जाद से प्यार करती है। परिवार के विरोध के कारण कई बार सज्जाद के साथ घर से भागने का प्रयास करती है, लेकिन हर बार पकड़ी जाती है। फिल्म तूफान अनन्या (हिन्दू लड़की) और अज्जू (मुस्लिम लड़का) की प्रेम कहानी है। पुराने दौर की फिल्मों की बात करें तो फिल्म छलिया में भारत विभाजन के समय एक गर्भवती हिन्दू महिला को बचाने वाले पात्र का नाम अब्दुल है, जबकि उसे दर दर की ठोकरें देने वाला उसका पति है, जोकि स्वाभाविक तौर पर हिन्दू है।
राजकुमार संतोषी की फिल्म लज्जा में दहेज, घरेलू दुर्व्यवहार और महिलाओं के विरुद्ध यौन अपराधों जैसी सामाजिक बुराइयों से पीड़ित चार हिन्दू महिलाओं की कहानी दिखायी गई है, जिनके नाम रामदुलारी, वैदेही, जानकी व मैथिली (मॉं सीता के दूसरे नाम) हैं और अय्याश पुरुषों के नाम हैं रघु और पुरुषोत्तम। बॉलीवुड में ऐसी फिल्मों की भरमार है।
शहरों के नाम बदलने की शुरुआत भी मुगलकाल में हुई। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जब मुगलों ने कोई क्षेत्र जीता तो उसका नाम बदल दिया। मुहम्मद बिन तुगलक ने जब देवगिरी को राजधानी बनाया, तो उसका नाम बदल कर दौलताबाद कर दिया। यह शहर अब भी इसी नाम से जाना जाता है। वर्ष 1303 में चित्तौड़गढ़ किले पर कब्जा करने के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने अपने बेटे खिज्र खान के नाम पर चित्तौड़गढ़ का नाम खिजराबाद कर दिया था। आगरा का नाम अकबर के नाम पर अकबराबाद कर दिया गया था। बनारस का नाम भी कुछ दिनों तक मोहम्मदाबाद रखा गया था। आमेर का नाम बदलकर मोमीनाबाद रख दिया गया था। गुजरात के शहर अहमदाबाद का नाम पहले कर्णावती था। इलाहाबाद का नाम पहले प्रयाग ही था, इसे फिर से प्रयाग करने में सबसे अधिक शोर वामपंथियों ने ही मचाया था। तो जो लोग यह कह रहे हैं नाम में क्या रखा है, वे जान लें कि नाम भी हमारी अस्मिता के प्रतीक होते हैं। ऐसे लोगों को अब माइंड गेम खेलने बंद कर देने चाहिए, भारत का स्व जाग गया है। इस स्व से खिलवाड़ करोगे तो विरोध होगा और जमकर होगा।