राम जन्मभूमि आंदोलन : कारसेवकों के जोश के सामने मुलायम की क्रूरता भी हार गई
राम जन्मभूमि आंदोलन संस्मरण – सत्य नारायण गुप्ता
राम जन्मभूमि आंदोलन : कारसेवकों के जोश के सामने मुलायम की क्रूरता भी हार गई
दीपावली के दो दिन बाद से पूरे देश से कारसेवक अयोध्या जाने लगे थे। किन्तु 22 अक्टूबर को आडवाणी जी की गिरफ्तारी के पश्चात 23 तारीख को भारत बन्द रहा और हिंसात्मक दंगों के चलते 24 तारीख को जयपुर में कर्फ्यू लगा दिया गया। परिणामस्वरूप इस दिन शहर की चारदीवारी में रहने वाले कारसेवकों का जाना सम्भव नहीं हो पाया। 25 को जयपुर शहर से हम 14 कारसेवक रवाना हुए। 8 और 6 कारसेवकों के हमने दो गुट बना लिये। हम 26 तारीख की सुबह दिल्ली पहुँचे। वहां से काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस द्वारा दोपहर 2 बजे लखनऊ के लिए रवाना हुए। 6 कारसेवकों को एक डिब्बे में बैठाकर हम 8 लोग अलग डिब्बे में बैठ गये। हम लोगों ने तय कर लिया था कि चाहे कितनी ही मुश्किलों का सामना करना पड़े, पर अयोध्या पहुंचना है। हमने केसरिया दुपट्टा दिल्ली में ही त्याग दिया, जिसके कारण अक्सर कारसेवक पकड़े जाते थे। पहले हमने मुरादाबाद तक का टिकट लिया। जैसे ही गाड़ी ने उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश किया, तो थोड़ा पहले जंगल में गाड़ी को रोक कर कारसेवकों की तलाशी ली जाने लगी और दुपट्टा पहने कारसेवकों को गाड़ी से नीचे उतारा जाने लगा। हमारे समूह के 5 लोगों को यहीं गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में मुरादाबाद स्टेशन पर लगभग 100 – 150 पुलिस वालों ने कारसेवकों को पकड़ना शुरू किया, उनमें मेरा भी नम्बर आ गया। मुझे सामान सहित नीचे उतार कर पुलिस के घेरे के बीच पहुंचा दिया गया। मुझे बड़ा दुःख हुआ कि मेरे अयोध्या पहुंचने का अब अर्थ ही क्या रहा?
ईश्वर की कृपा से बातचीत करते हुए पुलिस वालों की साइड से रवाना होकर मैं गाड़ी के पीछे की ओर से प्लेटफार्म के विपरीत साइड में जाकर मैं अपने पूर्व डिब्बे में जाकर बैठ गया। गाड़ी चली। अब हम सभी ने एक तरकीब अपना ली थी ज्यों ही गाड़ी धीरे होती हम प्लेटफार्म की विपरीत साइड में उतर जाते और जब गाड़ी रवाना होती तो वापस चढ़ जाते। हमें ज्ञात हो गया कि लखनऊ पर तगड़ी चैकिंग है, अतः हमने लखनऊ से लगभग 4- 5 किलोमीटर पहले रात्रि 2 बजे गाड़ी की चेन खींचकर गाड़ी रोक दी और भाग खड़े हुए। पुनः गाड़ी रवाना होने के पश्चात एक अधूरे बने मकान में सुबह 5 बजे तक विश्राम किया। अब हम सबने बैठकर विचार किया कि अयोध्या जाने वाली बसें, ट्रेनें बन्द हैं। ऐसे में हम अपने लक्ष्य तक कैसे पहुंच सकते हैं। विचार करने के बाद हमने पैदल ही अपनी यात्रा तय करने का सोचा और अपना सारा सामान यहीं पर छोड़ दिया। सिर्फ पहने हुए कपड़े थे। पिनहट से बाराबंकी की दूरी 20 किमी है, लेकिन इस मार्ग पर पुलिस बैरियर कई जगह बने हुए थे। इसलिए बजाय एक साथ टोली बनाकर चलने के हमने 200 – 300 गज की दूरी पर अलग अलग चलने का क्रम बनाया और ज्यों ही पुलिस का बैरियर हमें सड़क पर दिखता हम बगल के खेत में होकर बैरियर से आगे निकल जाते थे। बाराबंकी पहुंचने पर मेरे और मेरे साथी महावीर जी के पीछे एक सीआईडी का आदमी लग गया। हमने उससे पीछा छुड़ाने के लिए एक रिक्शा पकड़ा और गलियों में उल्टे सीधे घूमते हुए वहां के सरस्वती बाल मन्दिर में पहुंचे। उससे नजर चुराकर हम सभी सामने के कैलाश आश्रम में पहुंचे और वहां अन्दर खड़े एक महाशय को प्रणाम कर अपनी समस्या बताई। उन्होंने कारसेवक का परिचय पत्र देखकर अपनी तसल्ली की। फिर पीछे की ओर बने ऊपर वाले कमरे में हमें भेज दिया। वहां पर बाराबंकी जिले के अन्य संघ प्रचारक व कार्यकर्ता मिले। तब लोगों ने बड़े प्रेम से हमारे लिए चाय भोजन आदि की व्यवस्था की। रात्रि को वहीं विश्राम किया। जब पुलिस की गाड़ियां चली गईं तो बड़ी सावधानी से आश्रम से गलियों में चक्कर काटते हुए आगे रेलवे लाइन पहुँच गये। स्थिति यह थी के रेलवे लाइन के दोनों तरफ कोई पगडंडी नहीं थी। इस कारण हमें रोड़ी पर ही चलने को मजबूर होना पड़ा जो समतल नहीं होने के कारण कष्टप्रद था। चलते चलते सुबह के 9 बज गए लगभग 10 बजे एक गांव के रेलवे फाटक के पास चाय आदि की दुकान मिली। हम लोग वहां गये तो पता चला कि चाय बनाने वाला तथा अन्य जो 4-5 व्यक्ति थे, वे सभी मुस्लमान हैं। हमारी स्थिति देखने लायक हो गई। एक तो शरीर को पानी व चाय की आवश्यकता और दूसरी तरफ यह भय कि हम चाय पियें तो ये कुछ गलत न पिला दे या पुलिस को न पकड़वा दे। लेकिन उनमें से एक मुल्लिम बन्धु ने कहा कि आप कारसेवक हैं तो यहां आयें तथा चाय बिस्कुट लें। हम आपके स्थानीय कार्यकर्ता साथी को भी बुला देते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि हम लोगों को बड़े सम्मानजनक तरीके से उन मुस्लिम बन्धुओं ने चाय पानी पिलाया तथा अपने स्थानीय कार्यकर्ता के साथ गांव के आश्रम में भिजवा दिया। जहां 2-3 संत रहते थे। उन संतों ने स्वयं भोजन बनाकर बड़े प्रेम से हम लोगों को खिलाया। वहां से खेतों के रास्ते छोटे छोटे कई गांवों में होते हुए रात्रि को एहोरा गांव में पहुंचे। प्रत्येक गांव के लोग पलक पांवड़े बिछाये कारसेवकों की टोली की प्रतीक्षा करते मिलते और ज्योंही कोई टोली गांव के अन्दर पहुंचती चारों ओर जय श्री राम” जय श्री राम के घोष लगने शुरू हो जाते। लगभग हर गांव के बीच पेड़ों की छांव में 5 – 10 खाटें बिछी होतीं, जहां कारसेवक बैठकर अपना पसीना सुखाते और फिर उन्हें कुछ मीठा व पानी दिया जाता। गांव में घुसते ही, कुछ लोग हमें बड़े प्रेम से उस स्थल पर भी ले गये, जहां कारसेवकों के रुकने की व्यवस्था थी। रास्ते में जिस भी गांव से गुजरते जगह जगह वो ही आदर सत्कार। लोग यह कहते थे कि क्या करें हमारे राज्य में पापी मुख्यमन्त्री है जिसने आप लोगों को इतनी तकलीफ दी है। हम आपका सत्कार करके उसके पापों का प्रायश्चित कर रहे हैं।
इस तरह 5 दिन लगभग 250 किमी पैदल चलकर शाम होते होते हम अयोध्या पहुंच गये। अयोध्या के अंदर पहुंचाने में भी यूपी पुलिस ने सहयोग किया। अयोध्या में पहुंचते ही लगा मानो राम की नगरी कारसेवकों का सत्कार करने के लिए उमड़ पड़ी हो। जगह जगह चाय भोजन की व्यवस्था। चारों तरफ कारसेवक ही कारसेवक नजर आ रहे थे। रात्रि को भोजन कर एक आश्रम में विश्राम किया तथा 30 तारीख की हुई कार्यवाही की जानकारी ली। 1 नवम्बर को सुबह मनीराम छावनी में कई लोगों के भाषण प्रवचन का श्रवण किया। 5 दिन पश्चात दोपहर में सरयू नदी के पवित्र जल में स्नान किया। जयपुर से आये समस्त कारसेवक गोलाघाट रुके हुए थे। उनके पास जाकर भोजन कर वहीं विश्राम किया। तीर्थस्थलों से भरा यह उत्तर प्रदेश एक तरफ तो हिरण्यकश्यप रूपी मुलायम सिंह के अत्याचारों से आतंकित था, लेकिन दूसरी तरफ इसका उज्ज्वल परिवेश जिसका मैं वर्णन कर चुका हूँ से ओत प्रोत था तथा अत्याचारों को मात दे रहा था।
2 नवम्बर की घटना मैंने अपनी आंखों से देखी यह ऐसा काला पृष्ठ है मानो मुलायम सिंह ने जनरल डायर व बाबर, औरंगजेब को भी बहुत पीछे छोड़ दिया हो। इतना क्रूर व्यक्ति भी कोई हो सकता है ऐसा स्वतंत्र भारत में किसी ने सोचा भी न होगा।
2 नवम्बर को बिल्कुल स्पष्ट योजना थी कि दो जुलूस बनाकर अलग अलग रास्तों से जन्मभूमि की तरफ जायेंगे। निःहत्थे रामधुनी करते हुए जाना है। यदि किसी के हाथ में छोटी लकड़ी भी थी तो वह ले ली गयी थी। जहां जुलूस को रोक दें, वहीं सबको बैठ जाना है और रामधुनी करते रहना है। यह सब तब तक करते रहना है जब तक कि सरकार हमें जन्मभूमि के दर्शनों को नहीं जाने दे। सावधानी के तौर पर सब गीला कपड़ा अपने साथ रखें ताकि यदि आंसू गैस छोड़ी जाए तो आंखों का बचाव किया जा सके। हम सभी लोग हनुमान गढ़ी वाली तरफ जाने वाले जुलूस में थे। दूसरा जुलूस उमा भारती के नेतृत्व में गया था। प्रत्येक तरफ के जुलूस में लगभग 20 हजार कारसेवक थे। लगभग 9:45 पर हमारा जुलूस जन्मभूमि से लगभग डेढ़ किलोमीटर पहले पुलिस द्वारा यह कहकर रोक लिया कि आप आगे नहीं जा सकते। हम लोग वहीं पर बैठकर रामधुनी करने लगे। किसी प्रकार का कोई नारा नहीं लगाया, ना ही आगे बढ़ने की जबरदस्ती की, ना ही पुलिस पर पत्थर फेंके। लेकिन कारसेवकों के बैठते ही पुलिस ने आंसू गैस के कई गोले एक साथ छोड़ दिए, लाठियां बरसानी शुरू कर दीं। एल०एम०जी स्टेनगन से गोलियां बरसने लगीं। मुलायम सिंह सरकार ने 30 तारीख की अपनी पराजय का बदला लेने की ठान रखी थी। इसी कारण पुलिस वेश में कुछ पेशेवर गुंडे तथा मुस्लिम समाज के क्रूर पुलिस वालों को उन्होंने बंदूकें देकर मकानों की छतों पर तैनात कर रखा था। जुलूस रोकने के लिए तो केवल 40 – 50 पुलिस वाले थे। थोड़ी देर में चारों तरफ भगदड़ मच गई और गोलियों की दनदनाती आवाज अयोध्या नगरी का हृदय विदीर्ण करने लगी। सारे नियम कायदे ताख पर रख दिए गए। मौत का यह नंगा नाच 10 – 20 मिनट नहीं बल्कि पूरे पौने दो घंटे चलता रहा। भागते हुए कारसेवकों को गोलियों से भून दिया गया। मरे हुए को उठाने वालों को भी गोलियां मार दी गईं। इसी कारण शुरू में कुछ 8- 10 कारसेवकों की पार्थिव देहें ही लाई जा सकीं, बाकी समय जितने जीवन लाशों में बदले, उनकी टांग पकड़कर ट्रक में डालकर गायब कर दिया गया। उनका आज तक पता नहीं चला। इतने से भी उनके कलेजे को ठंडक नहीं मिली, घरों में छिपे कारसेवकों को निकाल निकाल कर मार डाला गया। जिन लोगों ने उन्हें छिपाया, उन्हें भी मारा पीटा गया, बेइज्जत कर उनका कीमती सामान लूट लिया गया तथा अन्य सामान बिखेर दिया। कितनों की हत्या कर दी होगी इसके अलग अलग अनुमान हैं। लेकिन मेरे अनुमान से पांच सौ से हजार के बीच तो हत्याएं हुई ही थीं।
उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार आडवाणी जी के रामरथ को तो रोकने में सफल हो गई, लेकिन हिन्दुओं के जनरथ को रोकने में सफल नहीं हो सकी। रामजन्मभूमि का निर्माण चाहने वाले हिन्दू लगातार अयोध्या पहुंच रहे थे। निर्धारित तिथि तक सभी बाधाओं को पार करते हुए लाखों की संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुंच भी गये। यह देख मुलायमसिंह घबरा गये, उन्होंने अयोध्या में कर्फ्यू लगा दिया। लेकिन यह केवल समाचार पत्रों में था। देखने को कहीं भी कर्फ्यू नहीं मिला। चारों तरफ कारसेवक ही कारसेवक नजर आते थे। जो मुलायम सिंह कह रहा था कि जन्मभूमि की इस तरह सुरक्षा व्यवस्था की गई है कि कोई परिन्दा भी नहीं घुस सकता, जोशीले कारसेवकों ने वहीं कूच कर कारसेवा प्रारम्भ कर दी। भगवा ध्वज लहरा दिया और बाबर के उस कलंक को ढहा दिया।