श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ होगा नए युग का प्रारम्भ

श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ होगा नए युग का प्रारम्भ 

अवधेश कुमार

श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ होगा नए युग का प्रारम्भ श्रीराम विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा के साथ होगा नए युग का प्रारम्भ 

पौष, शुक्ल द्वादशी, विक्रम संवत 2080, सोमवार, 22 जनवरी, 2024 का दिन इतिहास के ऐसे अध्याय में अंकित होगा जो सामान्यत: वर्तमान इतिहास लेखन की परंपरा से गायब है। इस दिन अयोध्या के श्रीराम मंदिर के गर्भगृह में रामलला के विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा की जाएगी। इसमें सात हजार विशिष्ट श्रेणी के अतिथियों, लगभग चार हजार साधु-संतों, 50 देशों और सभी राज्यों से लगभग 20 हजार अतिथियों के उपस्थित रहने की संभावना है। कुछ समय पहले तक सामान्य कस्बे की तरह दिखने वाले अयोध्या धर्मक्षेत्र में इतनी संख्या में अतिथि आ सकते हैं, इतना बड़ा समारोह हो सकता है, इसकी कल्पना नहीं की गई थी। यह आमूल रूप से बदल चुके अयोध्या का प्रमाण है। प्रधानमंत्री ने महर्षि वाल्मीकि हवाई अड्डे से रोड शो करके बता दिया कि यह बदली हुई अयोध्या है। कुछ समय पहले तक बिल्कुल सीमित क्षेत्र में सिमटी तथा संकरी सड़कों व गालियों वाली अयोध्या जैसी जगह में प्रधानमंत्री के रोड शो पर तो विचार भी नहीं किया जा सकता था। शानदार हवाई अड्डा, अत्यंत भव्य एवं विशाल रेलवे स्टेशन, इसी तरह चारों ओर की आधुनिक सड़कें किनके सपने में रहे होंगे? शहर में लगाये गये 25 राम स्‍तंभ, 40 सूर्य स्‍तंभ के साथ रामायण के 180 प्रसंगों के भित्ति चित्रों से कोरिडोर को सजाकर अयोध्या को उसकी मूल संस्कृति व चरित्र देने के प्रयास किए गए हैं। हवाई अड्डे के प्रवेश द्वारों, मेडिकल कॉलेज, अस्पतालों आदि के नाम रामायण काल से ही लिए गए हैं। यानी अयोध्या के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक अतीत को आधुनिक संदर्भ में दृष्टिगोचर करने के सारे यत्न किए जा चुके हैं। आने वाले श्रद्धालु और भक्त अपने अनुसार अनुष्ठान पूरा कर सकें उसका ध्यान रखते हुए भी काफी कुछ किया जा रहा है। उदाहरणार्थ ,परिक्रमा मार्ग का चौड़ीकरण तथा उसके दोनों ओर आवश्यक सेवाएं विकसित की जा रही हैं। पर्यटन की दृष्टि से भी ये सारी सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं। आने वाले समय में अयोध्या पूरी तरह ग्रीन सिटी और हेरिटेज स्थल के रूप में विकसित हो जाएगी।

कुल मिलाकर संपूर्ण निर्माण व परिवर्तन बता रहे हैं कि अगर सरकार के पास सपने हों और उसे उतारने की संकल्पबद्धता तो समय सीमा के अंदर किसी भी स्थान का ऐसा कायाकल्प किया जा सकता है जिसके बारे में किसी ने स्वर्णिम सपने में भी नहीं सोचा हो। यह बिना बड़ी कल्पना तथा उसके अनुरूप योजनाबद्ध तरीके से फोकस करके काम किए बिना संभव नहीं था।

लगभग 500 वर्षों के संघर्ष के बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर के निर्माण और उसमें प्राण प्रतिष्ठा का यह महान अवसर है तो उसके कार्यक्रम को इस रूप में व्यापक स्वरूप देना ही चाहिए। राम मंदिर आंदोलन केवल एक मंदिर का नहीं, बल्कि भारत की जो आध्यात्मिक सांस्कृतिक अंत:शक्ति और पहचान थी तथा इसके आधार पर यह संपूर्ण विश्व के लिए एक आदर्श और आकर्षक राष्ट्र था उसकी पुनर्प्राप्ति की दिशा का आंदोलन था। अयोध्या में बाबर के सेनानी मीर बाकी ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर को ही चुनकर क्यों ध्वस्त किया होगा? मध्यकाल के चरित्र वाले मजहबी कट्टरपंथी साम्राज्यवाद का लक्ष्य केवल शासन करना ही नहीं बल्कि संपूर्ण राष्ट्र का भौतिक और सांस्कृतिक रूप से इस्लामीकरण था। यह तभी संभव होता जब ऐसे पवित्र केंद्र, जो संपूर्ण भारत की अंतश्चेतना को जागृत और सतर्क रखते थे, जहां से निकली हुई आभा से आध्यात्मिक भारत हर संकट के सामने खड़ा होता था, उन‌ सबको ध्वस्त कर दिया जाए। कारण, उनके घृणित और उन्मादित मजहबीकरण के रास्ते की ये स्थल ही मुख्य बाधा थे। इसीलिए भारत के हजारों धर्मस्थल निर्दयतापूर्वक ध्वस्त किए गए। ऐसे धर्मस्थल का पुनर्निर्माण निश्चय ही वर्तमान समय में फिर से वैसे ही भारतीय राष्ट्र राज्य के पुर्नउद्भव तथा संपूर्ण विश्व के लिए आदर्श बनने का आधार साबित होगा।

इस प्रक्रिया के लिए आप चाहे जो भी शब्दावली प्रयोग करें, भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में अधिकतर मनीषियों का यही सपना था। इतने महान स्वप्न के साकार होने के कार्यक्रम को उसी अनुरूप आभा देना और जन-जन तक पहुंचा है ऑ ना आवश्यक है। संपूर्ण देश ही नहीं सारे विश्व में फैले भारतवंशी इसके साथ स्वयं को भावात्मक रूप से जोड़ें, यह आंदोलन के कार्यक्रमों में भी निहित था और प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भी। प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के लिए 20 दिसंबर से अक्षत वितरण अभियान चल रहा है। परंपरागत कर्मकांडीय विधि से 100 क्विंटल चावल में एक क्विंटल हल्दी मिलाकर निमंत्रण के लिए तैयार अक्षत को मंत्रों से पूजित किया गया है। कार्यकर्ता अक्षत वितरण के साथ लोगों को रामलला के दर्शन का न्योता भी दे रहे हैं, इस आग्रह के साथ कि 25 जनवरी के बाद अयोध्या आयें। 15 जनवरी तक ये पीले अक्षत संघ की दृष्टि से 45 प्रांतों के पांच लाख गांवों के 62 करोड़ लोगों के बीच वितरित करने का अभियान चल रहा है। न्योते के लिए तैयार आमंत्रण गीत की पंक्तियां देखिए, रघुवरजी के अवधपुरी में प्राण प्रतिष्ठा होना है, निमंत्रण को स्वीकार करो अब सबको अयोध्या चलना है। जय बजरंगी, जय हनुमान। वंदे मातरम, जय श्रीराम। श्रीराम जय राम जय जय राम। वंदे मातरम, जय श्री राम। इस गीत में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के लिए दिए गए बलिदान और संघर्ष की बातें हैं। पूरे देश की पवित्र नदियों और कुंडों से लाए जल से रामलला का अभिषेक होगा। 15 से 24 जनवरी के बीच पूजा-पाठ के विशेष अनुष्ठान होंगे। 22 जनवरी, 2024 को पूरा देश राममय रहे इसके लिए हर परिवार ।ऐसे अपने घरों पर दीप प्रज्वलित करने का आग्रह किया गया है। स्वयं प्रधानमंत्री ने अयोध्या के अपने भाषण से इसकी अपील की। लोगों को घरों से अपने चैनलों पर लाइव प्रसारण देखने का आग्रह भी है। देश के पांच लाख से ज्यादा मंदिरों में प्राण-प्रतिष्ठा का सीधा लाइव स्ट्रीमिंग किया जाएगा, जिसे कम से कम 8 करोड़ लोगों द्वारा देखे जाने की संभावना है। स्वाभाविक ही इन मंदिरों में समारोह के दौरान भजन-कीर्तन सहित अन्य कार्यक्रम किए जाएंगे। प्राण-प्रतिष्ठा पूजन के बाद 48 दिन की मंडल पूजा होगी। इन्हीं 48 दिनों तक श्रीराम मंदिर में रागोत्सव का आयोजन किया जाएगा। सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और राज्यपालों के लिए 26 जनवरी से 22 फरवरी के बीच दर्शन,पूजा और सरयू आरती के लिए भी तिथियां तय की गईं हैं।

आप मंदिर निर्माण कर उसमें विग्रह की सामान्य तरीके से प्राण प्रतिष्ठा कर दें उससे न तो वैसा वातावरण बनेगा जैसा बनना चाहिए न उसका संदेश ही उस रूप में जाएगा। सच कहा जाए तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर का संपूर्ण कानूनी प्रक्रिया का पालन करते हुए निर्माण तथा स्वतंत्रता पूर्वक आध्यात्मिक अनुष्ठान से प्राण प्रतिष्ठा के साथ भारत की दृष्टि से अत्यंत ही दारुण और त्रासदी भरे युग का अंत और नए स्वर्णिम युग की शुरुआत की संभावना बलवती हो रही है। अभी तक के इतिहास लेखन ने जब धर्मस्थलों के ध्वस्त के विवरणों को अध्याय में शामिल नहीं किया तो वह इसे शामिल करेंगे ऐसा मानना बेमानी है। पर समय बदल चुका है अब इतिहास इसके एक-एक पल का गवाह बनकर अध्याय में शामिल करेगा ताकि आने वाली पीढ़ियां जब तक सृष्टि है इससे अवगत होती रहें। एक-एक व्यक्ति का उससे भावनात्मक जुड़ाव हो और सभी तक वहां के दृश्य और समाचार लंबे समय तक पहुंचें।

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