राम का प्रेम और भरत का भरोसा ही रामकथा का संदेश है- कृष्ण गोपाल
राम का प्रेम और भरत का भरोसा ही रामकथा का संदेश है- कृष्ण गोपाल
लखनऊ। चैत्र नवमी के पावन अवसर पर राम जन्मोत्सव अर्थात रामनवमी को देश भर में हर्ष के साथ मनाया गया। इसी संदर्भ में लखनऊ के गोमतीनगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के सभागार में वेदांत भारत परिवार की ओर से ‘श्री रामजन्मोत्सव 3.0’ का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने राम के जीवन आदर्शों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि समय के साथ पीढ़ियां बदलती रहती हैं, लेकिन राम के जीवन का संदेश वही रहता है। राम ‘धर्म’ के रूप में सदैव विद्यमान रहेंगे।
श्रीराम जन्मोत्सव के पावन अवसर पर विगत वर्षों की भांति ‘मर्यादा पुरुषोत्तमम श्रीराम : भारतीय जीवन के आदर्श’ विषय पर आधारित सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि दूसरे धर्म के लोग और विदेशी भी कहते हैं कि भारतीयों के साथ कोई दिक्कत है क्या, वे हर रोज एक ही कहानी क्यों सुनते रहते हैं? इसका उत्तर है कि राम जी का पूरा जीवन हमें जीने के आदर्श देता है। हमारे जीवन में आने वाली हर तरह की दुविधा का उपचार रामायण में है। राम अपने लिये कभी नहीं जीते। वे तो सदा दूसरों के लिए ही जीते रहे हैं। दूसरों के लिए जीने वाला ही वास्तविक सुखी होता है, जो अपने लिए जीता है, भावनाओं के बंधन में रहता है। वही दुख का मूल कारण है। राम हमें सिखाते हैं कि खुशी में भावावेश में नहीं आना चाहिये और शोक में हमें धैर्य नहीं खोना चाहिये। हर परिस्थिति में एक समान भाव रखने का संदेश ही श्रीरामचन्द्र का जीवन का उद्देश्य है। राम का जीवन शोक और सुख के भावों से मुक्त था। उनका राज्याभिषेक होना था, सारी तैयारियां हो चुकी थीं। इसी बीच मात्र एक दिन पहले उन्हें पता चलता है कि कुछ बदल गया है। माता कैकेयी उन्हें सारी बात बताती हैं। वह अगले ही क्षण वनगमन के लिए तैयार हो जाते हैं। उनके मन में कोई शोक नहीं था। वे खुशी-खुशी चल दिये। राम के जीवन का संदेश है कि, जीवन में हर तरह के क्षण आएंगे, मगर छोटी बातों में भी बिखरना नहीं चाहिये। राम स्थिर रहना सिखाते हैं।
डॉ. कृष्णगोपाल ने कहा कि राम का प्रेम और भरत का भरोसा ही तो रामकथा का संदेश है। अन्तत: भरत राज्य तो स्वीकार कर लेते हैं, लेकिन वे महल नहीं जाते। नंदीग्राम में एक कुटिया बनाकर रहने लगते हैं। वे अपने बड़े भाई के समान ही कंद-मूल खाते हैं। जमीन में गड्ढा बनाकर सोते हैं, मगर भाई से किया वादा निभाते हैं। लोभ को त्यागकर जीने का संदेश हमें राम जी देते हैं।
राम जीवन में एक वचन पर जीने का संदेश देते हैं। वनगमन के समय ही कहा था कि वे 14 बरस तक वनवास करेंगे और यही किया। वे न तो सुग्रीव के राज्याभिषेक में गये और न ही रावण वध के बाद विभीषण का राजतिलक देखने गये। जीवन में अपने वचन की रक्षा के लिए सब कुछ न्योछावर करने का संदेश ही राम का जीवन है।