रानी हाड़ा का बलिदान
राम गोपाल पारीक
उस नई नवेली दुल्हन की
मेहंदी भी सूख ना पाई थी
राणा को संदेश मिला
मुगलों की सेना आई थी।
क्षत्रिय धर्म के पालन को
हाड़ा रानी ने विदा किया
नहीं भूल सका वह रानी को
सौ बार उसे ही याद किया।
दिन-रात घूमता आंखों में
हाड़ा रानी का बंधन था
शत्रु से लड़ना भूल गया
मन भीतर ऐसा क्रंदन था।
भेजा था राव रतन सिंह ने
निशानी लेकर आने को
सिर काट दिया छत्राणी ने
रजपूती शान बचाने को।
रानी का कटा शीश देखा
आंखों में खून उतर आया
उस क्षत्राणी के दम पर ही
मुगलों को धूल चटा पाया।