महाकाल की नगरी उज्जैन और आयरलैंड की नगरी तारा में हैं अद्भुत समानताएं

महाकाल की नगरी उज्जैन और आयरलैंड की नगरी तारा में हैं अद्भुत समानताएं

मेजर सुरेन्द्र नारायण माथुर  (से.नि.)

महाकाल की नगरी उज्जैन और आयरलैंड की नगरी तारा में हैं अद्भुत समानताएंमहाकाल की नगरी उज्जैन और आयरलैंड की नगरी तारा में हैं अद्भुत समानताएं

महाकाल की नगरी उज्जैन तथा आयरलैंड की नगरी तारा में अद्भुत समानताएं हैं। आयरलैंड का तारा नगर हूबहू उज्जैन से मेल खाता दिखाई देता है।

उज्जैन भारत के मध्य प्रदेश राज्य का एक प्रमुख शहर है। यह मंदिरों की नगरी है। पुण्य सलिला क्षिप्रा के दाहिने तट पर बसे इस नगर को भारत की मोक्षदायक सप्तपुरियों में एक माना गया है। भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक महाकाल इसी नगरी में स्थित है। यहाँ हर 12 वर्ष में सिंहस्थ महाकुंभ मेला लगता है। यह महान सम्राट विक्रमादित्य के राज्य की राजधानी थी। उनके नाम से विक्रम संवत् भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित हिन्दू पंचांग है। विक्रमादित्य के उस सिंहासन के किस्से प्रसिद्ध हैं, जहॉं बैठकर वह न्याय करते थे। महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों में से एक थे। पुराणों व महाभारत में उल्लेख आता है कि वृष्णि-वीर कृष्ण व बलराम यहाँ गुरु संदीपनी के आश्रम में विद्या प्राप्त करने हेतु आये थे। आज भी विश्व में उज्जयिनी का धार्मिक-पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ ही ज्योतिष क्षेत्र में भी महत्व है। भगवान परशुराम जी का जन्मस्थल उज्जैन के पास इंदौर में जनापाव नामक पहाड़ियां हैं। जनापाव एक सुन्दर तीर्थस्थल है। यहाँ पर उनके पिता ऋषि जमदग्नि का आश्रम था। उनका जन्म अक्षय तृतीया के दिन हुआ था। एक बहुत ही महत्वपूर्ण बिंदु यह भी है, कि महाकाल की नगरी उज्जैन से कर्क रेखा गुजरती है। यहाँ अनेक धार्मिक और ज्योतिष विज्ञान के ज्ञानी निवास करते थे। इन्हीं कारणों से जयपुर के राजा ने जंतर-मंतर तथा एक खगोल विज्ञान प्रयोगशाला का निर्माण उज्जैन में करवाया था।

तारा नगरी से समानताएं

आयरलैंड का तारा नगर केल्टिक समुदाय के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है। उज्जैन और तारा की समानताएँ एक अद्भुत संजोग है। लेकिन सब कुछ समान होना संजोग नहीं हो सकता है। तारा में एक विशाल शिवलिंग है जो उज्जैन के महाकाल के समान है। यह केल्टिक समुदाय के लिए अति पौराणिक और पवित्र स्थान है। यहाँ पौराणिक काल में सबसे महत्वपूर्ण और विशाल द्विजों का एक आश्रम होता था, जैसे भारत में ऋषि-मुनियों के आश्रम होते थे। इस आश्रम का प्रभाव संपूर्ण आयरलैंड पर होता था। राजा का चयन, राज्याभिषेक और उसकी घोषणा भी यही से होती थी। यहाँ का राजा ल: (रुह्वज्,रुद्ग) कहलाता था, जो इंद्र के समान माना जाता था। ल: का अर्थ संस्कृत में इंद्र ही होता है। केल्टिक इतिहास में एक प्रसिद्ध नायक हुए जिनका नाम था ब्रायन बोरू। उनकी लोक कथाएँ तारा से जुड़ी हैं। तारा में ब्रायन का सिंहासन और उज्जैन में सम्राट विक्रमादित्य की प्रचलित कथाएँ लगभग समान हैं। उज्जैन की तरह तारा में भी पौराणिक खगोल विज्ञान प्रयोगशाला है। केल्टिक के आठ प्रमुख पर्व का पंचांग यहीं से तय किया जाता है। इन आठ पर्वों पर स्थानीय द्विज उत्सव मनाने यहाँ एकत्रित होते हैं। ये आठों पर्व सनातन संस्कृति के पर्वों से मेल खाते हैं। अगर दोनों में समानताएँ हैं तो यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह भी कि ये लोग भगवान परशुराम जी के समय वहां गये लोग हैं।

आयरलैंड की लोक कथाओं में यह उल्लेख हमेशा आता है कि भगवान परशुराम जी ने अक्षय तृतीया के दिन ही आयरलैंड पर विजय प्राप्त की थी। अक्षय तृतीया भगवान परशुराम जी का जन्मदिन है और अक्षय तृतीया के दिन सूर्य कर्क रेखा पर होता है, जो उज्जैन से गुजरती है। इतनी सारी समानताएँ क्या एक संयोग हैं? इन सभी पहलुओं का विश्लेषण करते हुए उज्जैन की महत्ता समझ में आने लगती है।

क्या तारा में स्थित आश्रम और खगोल विज्ञान प्रयोगशाला का संबंध उज्जैन के विद्वानों से रहा होगा, क्या ये विद्वान, भगवान परशुराम जी के समय के गये लोग थे, जो बड़े ज्ञानी थे? क्या इन्हीं ज्ञानी विद्वानों ने तारा जाकर खगोल विज्ञान प्रयोगशाला को तारा में स्थापित किया? इन प्रश्नों का गहराई से अध्ययन करना अति आवश्यक है। जिन विशेष बिंदुओं व समानताओं पर आकर्षण होता है, उनमें भगवान परशुराम जी, सम्राट विक्रमादित्य जैसा सिंहासन, द्विज विद्वानों का आश्रम, इंद्र का स्थान, खगोल विज्ञान प्रयोगशाला, आठ महत्वपूर्ण पर्व में समानताएँ और उज्जैन से गुजरने वाली कर्क रेखा आदि हैं। आठ में से दो ऐसे पर्व हैं जिनके मनाए जाने के समय सूर्य की स्थिति कर्क रेखा पर होती है अर्थात् उज्जैन स्थित महाकाल मंदिर की महत्ता बढ़ जाती है।

1884 में, ग्रीनविच को सार्वभौमिक रूप से प्रधान मध्याह्न रेखा के रूप में स्वीकार किया गया, 0० देशांतर के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक, जहां से पूरे विश्व के समय की गणना की जाती है। इससे पहले, उज्जैन को भारत में समय के लिए केंद्रीय मध्याह्न रेखा माना जाता था। यही कारण है कि उज्जैन को भारत का ग्रीनविच कहते हैं। आज भी, आप कहीं भी पैदा हुए हों, जब हिंदू पंचांग के अनुसार पंचांग या राशिफल बनाया जाता है, तो वह हमेशा उज्जैन के समय (आईएसटी से लगभग 29 मिनट पीछे) पर आधारित होता है।

आज तारा और उज्जैन के तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता है। इससे विश्व में उज्जैन की महत्ता भी सिद्ध होगी।

(विस्तृत जानकारी लेखक की पुस्तक ‘हिन्दू के केल्टिक स्वजन’ से प्राप्त की जा सकती है। लेखक अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के विश्व विभाग प्रमुख हैं)

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