रामलला विग्रह : कहॉं मिली वह चट्टान

रामलला विग्रह : कहॉं मिली वह चट्टान

रामलला विग्रह : कहॉं मिली वह चट्टानरामलला विग्रह : कहॉं मिली वह चट्टान

राम मंदिर में रामलला विराजमान हो चुके हैं। बहुत से लोगों को यह जानने की उत्सुकता होगी कि आखिर विग्रह को तराशने के लिए पत्थर कहॉं से लिया गया। इसके पीछे एक पूरी कहानी है।

मैसूर तालुका के हारोहल्ली-गुज्जेगौडनपुरा में रवि नाम का एक किसान परिवार खेती करता था। उसके ही खेत के बीच में बहुत समय पहले की एक विशाल चट्टान थी, जो रवि परिवार की खेती में बाधा थी। रवि हमेशा अपना दुख व्यक्त करते थे कि यह चट्टान हमारे लिए अभिशाप बन गई है। हमारी खेती के लिए यह बेहद असुविधाजनक है।

एक बार उन्होंने अपने दोस्त श्रीनिवास, जो पत्थर काटने का काम करते हैं, से कहा, किसी तरह इस चट्टान को इस खेत के बीच से हटाओ और इसे बाहर ले जाओ। फिर खेत को समतल करेंगे और यहां जुताई कर के हम कुछ फसल उगाएंगे। श्रीनिवास खेत पर आए, चट्टान निकालनी शुरू की। लेकिन चट्टान वैसी नहीं थी जैसी उन्होंने सोची थी। वह बहुत बड़ी थी। खैर, श्रीनिवास ने जुताई के लिए जितने खेत की आवश्यकता थी, देख कर पत्थर को तीन हिस्सों में काटा, उसे बाहर निकाला और खेत के बगल में रख दिया। तत्पश्चात् खेत को समतल कर दिया।

एक दिन रवि ने श्रीनिवास से कहा, यह चट्टान किसी ऐसे व्यक्ति को दे दो जो पत्थर तराशता हो। श्रीनिवास ने अपने मित्र मानय्या बडिगार को यह बात बतायी। बडिगार अयोध्या में पत्थर तराशने का काम करते हैं। एक दिन मानय्या बडिगार अपनी टीम के साथ रवि की भूमि पर गए। चट्टान का अच्छी तरह से निरीक्षण किया, तो उन्हें आश्चर्य हुआ, यह चट्टान कृष्ण पत्थर थी। काला पत्थर, जो मूर्तियों को तराशने के लिए बहुत पसंद किया जाता है। वह और उनकी टीम बहुत प्रसन्न थे। इसका एक टुकड़ा कोलार में सरकारी स्वामित्व वाली IIRMD यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रॉक मैनेजमेंट विभाग को भेजा गया। इसकी अभ्रक गुणवत्ता, यानी इस चट्टान को मूर्ति में परिवर्तित करने के बाद कैसे रहेगा। यह पता लगाने के लिए कहा गया कि यह मूर्ति किसी भी मौसम में कैसे बदल जाएगी और विभिन्न प्रकार के पदार्थों और रसायनों के साथ इस मूर्ति पर अभिषेक किया जाता है, तब इस पर क्या परिणाम होगा। जांच के बाद बताया गया कि यह पत्थर मूर्तियां बनाने के लिए बहुत उपयुक्त है। यह तथ्य पता पड़ने पर इन चट्टानों को प्रसन्नता पूर्वक भारत में सैकड़ों वर्षों से हिन्दुओं के सपनों के केंद्र, श्री राम मंदिर के श्री रामलला व सीता माता की मूर्ति बनाने के लिए ले लिया गया। फिर मानय्या बडिगार की टीम कुछ दिनों के बाद वापस आई, बाकी चट्टानें भी ले ली गईं।

इस प्रकार वह चट्टान जो भूमि मालिक के क्रोध का निशाना बनी, हजारों वर्षों तक अनछुयी पड़ी रही, बाद में श्रीराम, सीता माता, लक्ष्मण की दिव्य शक्ति के रूप में मंदिर में स्थापित हो रही है।

उत्तर प्रदेश कहां है, अयोध्या कहां है, राम मंदिर कहां है, श्रीराम कहां हैं… और मैसूर, हारोहल्ली-गुज्जेगौदनपुर कहां है, अनाथ चट्टानें कहां हैं, सब कुछ भाग्य द्वारा लिखा गया है।

हारोहल्ली-गुज्जेगौड़नपुरा में रवि के खेत और चट्टान की कहानी इस कहावत का उदाहरण है कि अगर अच्छा समय आए तो पत्थर भी भगवान बन जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह कहानी लोगों के मन में एक किंवदंती बनकर रह जाएगी, एक हजार वर्ष बाद भी।

#SabkeRam   #रामरामसा

Print Friendly, PDF & Email
Share on

1 thought on “रामलला विग्रह : कहॉं मिली वह चट्टान

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *