हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पूरी दुनिया में फैला हुआ है : प्रो. वसंत शिंदे

हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पूरी दुनिया में फैला हुआ है : प्रो. वसंत शिंदे

हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पूरी दुनिया में फैला हुआ है : प्रो. वसंत शिंदे

हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पूरी दुनिया में फैला हुआ है : प्रो. वसंत शिंदे।

वाराणसी। हड़प्पा संस्कृति में आम जनता की सुविधा की हर व्यवस्था देखने को मिलती है। हड़प्पा संस्कृति में सामाजिक समानता व पंचायत राज की झलक दिखाई देती है। दुनिया की किसी भी सभ्यता की तुलना में हड़प्पा मोहन-जोदड़ो सभ्यता अधिक विकसित और उत्कृष्ट है। पुरातत्व सर्वेक्षण शोध से पता चलता है कि पूरी दुनिया को भारत ने हड़प्पा सभ्यता के माध्यम से एक नई राह दिखाने का कार्य किया। वर्तमान समय में सामाजिक संरचना व नगर की स्थिति को देख कर लगता है कि सब कुछ हड़प्पा सभ्यता से ही हमें विरासत में मिला है। सड़क, मकान, खेती, जल संरक्षण आदि सब कुछ हड़प्पा सभ्यता की उत्कृष्ट देन है। हड़प्पा सभ्यता का ज्ञान पूरी दुनिया में फैला हुआ है। उक्त बातें दक्कन कॉलेज पुणे के पूर्व कुलपति प्रोफेसर वसंत शिंदे ने राष्ट्रीय संगोष्ठी काशी शब्दोत्सव 2024 में रविवार को बीएचयू वैदिक विज्ञान केंद्र सभागार में कहीं।

कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता के रूप में काशी विश्वनाथ मंदिर के कार्यपालक अधिकारी विश्व भूषण ने महामना की ज्ञान की धरती पर युवा एवं विज्ञान विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि आज भारतीय ज्ञान परंपरा का पूरी दुनिया में बोलबाला है। हर भारतीय के लिए यह गौरव का विषय है।

विश्वभूषण ने कहा कि भारत का भविष्य उसके अतीत में निहित है। लेकिन यह सोचने वाली बात है कि यदि हड़प्पा सभ्यता से हम निरंतर सीखते आ रहे हैं तो हड़प्पा की नीति व भाषा वर्तमान में कहां खो गई। अतीत की चर्चाओं में मंत्रमुग्ध होकर हम नई खोज करने से कतरा रहे हैं, जिससे हमारा गौरवशाली अतीत वर्तमान में भटकता प्रतीत हो रहा है। सनातन परंपरा की हर कथा कहानी में नवयुग के नेतृत्व की ओर इशारा मिलता है। हम अपने गौरवशाली अतीत से सीख कर वर्तमान में नए वैज्ञानिक शोध विकसित करें ताकि हमारा भविष्य और भी गौरवशाली बने। 

प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने भारत के मूल निवासी कौन हैं, विषय पर सारगर्भित विचार रखे। उन्होंने कहा कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी हम प्राचीन काल में अत्यंत उन्नत थे। आज जब भी दुनिया में ज्ञान और विज्ञान की बात होती है, भारत के शोध को झुठलाया नहीं जा सकता। प्रथम सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर उपेंद्रनाथ त्रिपाठी ने वेद में जीवन जीने की दृष्टि व नई शिक्षा नीति में भारत के मूल इतिहास और संस्कृति को स्थान मिलने पर जोर देते हुए अध्यक्षीय उद्बोधन दिया। प्रथम सत्र का संचालन डॉ अमित उपाध्याय ने किया।

द्वितीय सत्र भारत की गौरवशाली परंपरा साहित्य और संस्कृति विषय पर विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रोफेसर मीनू अवस्थी ने कहा कि हिन्दी साहित्य की रचना देश को विश्व गुरु के रूप में देखने की है। उन्होंने हिन्दी साहित्य के भक्ति काल से लेकर नवजागरण काल तक की महत्वपूर्ण जानकारी से सभागार में उपस्थित युवा शक्ति का मार्गदर्शन किया। सूफी कवियों ने प्रेम कथाओं के माध्यम से व्यक्तियों में प्रेम व विश्वास बनाया। पूज्य संतों ने हमारी भाषा व संस्कृति को जीवित रखा। हमारी संस्कृति ने उत्थान व पत्तन दोनों देखे। प्रोफेसर सदाशिव द्विवेदी ने मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित श्रोता समूह का मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि भक्तिकाल ने हमारी आस्थाओं को हमारी जड़ों से जोड़े रखने का कार्य किया। उन्होंने कहा कि मूल्यवादी शिक्षा दुनिया को सबसे पहले हमने दी। अध्यक्षता प्रोफेसर हृदय रंजन शर्मा व संचालन डॉ हेमंत सिंह ने किया।

तीसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए पद्म श्री प्रोफेसर राजेश्वरचार्य ने कहा कि अंग्रेजी शब्दों के विद्वानों ने भारतीय शब्दों के स्वरूप को बदलने का बहुत प्रयास किया मगर असफल रहे। आज पुनः अपने शब्दों पर शोध की आवश्यकता है। मुख्य अतिथि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष रश्मि सामन्त ने कहा कि हमारी विचारधारा को आठवीं शताब्दी से तोड़ने का प्रयास चल रहा है। उन्होंने कहा कि आज बौद्धिक विमर्श कर भारतीयता को जन जन में युवा ले जाएं इसकी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विदेशियों ने हिन्दू शब्द की ब्याख्या काला, काफिर और चोर के रूप में की, इसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है।हमारी दिनचर्या को भी गोरों ने अपने ढंग से निर्धारित किया। उन्होंने कहा कि बीएचयू एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहां आज भी भारतीय मूल्य संरक्षित हैं। भारतीय संस्कृति के साथ लगातार षड्यंत्र हुआ है।पाकिस्तान में आज भी रोटियों के लिए तीन किलोमीटर की लाइन लगती है। उससे कई गुना बेहतर भारतीयों का जीवन है।

मुख्यवक्ता मनोजकांत ने कहा कि आज भारत ने दुनिया के सामने वसुधैव कुटुम्बकम का जो सूत्र दिया है दुनिया के लोग आज उसी पथ पर अग्रसर हैं। आज भारतीय ज्ञान परम्परा पर निरन्तर शोध की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विमान की विद्या को दुनिया के सामने भारत ने रखा। आज दुनिया के वैज्ञानिक लक्ष्मण रेखा पर भी शोध कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में संवाद और शास्त्रार्थ की लम्बी परम्परा है। काशी को विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने और अपने स्व को समझने की आवश्यकता है। इस सत्र में प्रोफेसर भारतेंदु सिंह, प्रोफेसर अभयकुमार सिंह ने भी संबोधित किया।

इनके अतिरिक्त प्रोफेसर राणा सिंह, डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्र, डॉ. लहरी राम मीणा, डॉ. सचिन तिवारी, डॉ. सुशील दुबे, डॉ. अवधेश भट्ट, डॉ. राजेश राय, डॉ. वीरेंद्र सिंह, डॉ. प्रमोद मिश्र, दिनेश पाठक, डॉ. अरविंद कुमार आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

तीसरे सत्र की अध्यक्षता करते हुए पदम् श्री प्रोफेसर राजेश्वरचार्य ने कहा कि अंग्रेजी शब्दों के विद्वानों ने भारतीय शब्दों के स्वरूप को बदलने का बहुत प्रयास किया मगर असफल रहे ।कहा कि आज पुनः अपने शब्दों पर शोध की आवश्यकता है। मुख्य अतिथि ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय छात्रसंघ की अध्यक्ष रश्मि सामन्त ने कहा कि हमारी विचार धारा को आठवीं शताब्दी से तोड़ने का प्रयास चल रहा है।उन्होंने कहा कि आज बौद्धिक विमर्श कर भारतीयता को जन जन में युवा ले जाएं इसकी आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि विदेशियों ने हिन्दू शब्द की ब्याख्या काला, काफिर और चोर के रूप में किया जिसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है।कहा कि हमारे दिनचर्या को भी गोरों ने अपने ढंग से निर्धारित किया।सुश्री सामन्त ने कहा कि बीएचयू एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहां आज भी भारतीय मूल्य संरक्षित है।कहा कि भारतीय संस्कृति के साथ लगातार षडयंत्र हुआ है।कहा कि पाकिस्तान में आज भी रोटियों के लिए तीन किलोमीटर की लाइन लगती है। उससे कई गुना बेहतर भारतीयों का जीवन है।

मुख्यवक्ता श्री मनोजकांत ने कहा कि आज भारत ने दुनिया के सामने वसुधैव कुटुम्बकम का जो सूत्र दिया है दुनिया के लोग आज उसी पथ पर अग्रसर है।कहा कि आज भारतीय ज्ञान परम्परा पर निरन्तर शोध की आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि विमान की विद्या को दुनिया के सामने भारत ने लाया है ।आज दुनिया के वैज्ञानिक लक्ष्मण रेखा पर भी शोध कर रहे हैं।उन्होंने कहा कि भारत मे संवाद और शास्त्रार्थ की लम्बी परम्परा है।काशी को विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने की आवश्यकता है।कहा कि आज अपने स्व और मूल्य को समझने की आवश्यकता है।इस सत्र में प्रोफेसर भारतेंदु सिंह,प्रोफेसर अभयकुमार सिंह ने संबोधित किया।

इस अवसर पर प्रोफेसर राणा सिंह, डॉ ज्ञान प्रकाश मिश्र आदि ने भी विचार व्यक्त किये।

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