वैज्ञानिक काल गणना पर आधारित है नव संवत्सर
वैज्ञानिक काल गणना पर आधारित है नव संवत्सर
जयपुर। कवि रामधारी सिंह ने दिनकर लिखा था-
”ये नव वर्ष हमें स्वीकार नहीं
है अपना यह त्यौहार नहीं
है अपनी यह तो रीत नहीं
है अपना यह व्यवहार नहीं…..
तब चैत्र शुक्ल की प्रथम तिथि
नव वर्ष मनाया जाएगा।”
भारतीय नववर्ष का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होता है। भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि अति प्राचीन काल से सृष्टि प्रारंभ की भी पावन तिथि रही है। वसंत ऋतु में आने वाले वासंतिक नवरात्र का प्रारंभ भी सदा इसी तिथि से होता है। विक्रमादित्य ने भारत की इन अनेक कालगणनापरक सांस्कृतिक परंपराओं को ध्यान में रखते हुए ही चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि से अपना नया संवत् शुरू किया था। समूचा भारत इस तिथि का प्रतिवर्ष अभिवंदन करता है। इतना ही नहीं श्रीराम एवं युधिष्ठिर का राज्याभिषेक दिवस, मां दुर्गा की साधना, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशवराव हेडगेवार का जन्म दिवस, आर्य समाज का स्थापना दिवस, संत झूलेलाल जयंती जैसे विशेष अवसर भी इसी दिन आते हैं, जो वास्तव में कुछ नया करने की प्रेरणा देते हैं।
भारत के ‘राष्ट्रीय पंचांग’ यानी ‘भारांग’ की शुरुआत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से होती है। इसलिए हम इस दिन को भारतीय नववर्ष के रूप में मनाते हैं। हालांकि यह कोई नई बात नहीं है, जब कुछ हद तक अनभिज्ञता और कुछ सीमा तक पश्चिमी संस्कृति को अपनाए जाने की मानसिकता से ग्रसित जन यह कहते हैं कि 1 जनवरी से ही नए वर्ष की शुरुआत होती हैं। नवसंवत्सर तो हिन्दुओं द्वारा मनाया जाने वाला महज एक उत्सव है। दूसरी ओर यह स्थिति भी दु:खद है, जब भारत के ही लोग हिन्दू नववर्ष के दिन शुभकामनाएं देने से भी हिचकिचाते हैं, शायद इसलिए कि कहीं हम पर रूढ़िवादी होने का ‘टैग’ न लग जाए? जबकि अपनी संस्कृति और संस्कारों का अनुसरण करना रूढ़िवादी होना नहीं है। यह तो वह बहुमूल्य धरोहर है जिससे पूरा विश्व प्रेरणा ले रहा है और हम इसे बिसरा रहे हैं।
नक्षत्र व कालगणना तय करते हैं तिथि
भारतीय नववर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होता है, ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह तिथि अलग अलग दिनांक को आती है। प्रतिपदा वाले दिन कौन सी तारीख होगी, यह नक्षत्रों और कालगणना के आधार पर तय होता है। इसका निर्धारण पंचांग गणना प्रणाली यानी तिथियों के आधार पर सूर्य की पहली किरण के उदय के साथ होता है, जो प्रकृति के अनुरूप है। सरल शब्दों में इसे समझें तो यह पतझड़ की विदाई और नई कोंपलों के आने का समय होता है। इस समय वृक्षों पर फूल नजर आने लगते हैं जैसे प्रकृति किसी बदलाव की खुशी मना रही हो। मान्यता है कि भारतीय नव संवत्सर यानी गुड़ी पड़वा संसार का पहला दिन है। इसी दिन ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसी दिन संसार में सूर्य देव का उदय हुआ था। इतना ही नहीं भगवान श्रीराम ने बालि वध भी इसी दिन किया था।
नव संवत्सर के रूप विविध
भारतीय नववर्ष यानी नव संवत्सर का उत्सव अलग-अलग नाम से देश के विभिन्न हिस्सों में मनाया जाता है। राजस्थान, मप्र, महाराष्ट्र और दक्षिण पश्चिम भारत में इसे गुड़ी पड़वा उत्सव के रूप में तो कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के लोग उगादी उत्सव के रूप में मनाते हैं। तमिलनाडु में पुथंडु, असम में बिहू, पंजाब में वैसाखी, उड़ीसा में पना संक्रांति और पश्चिम बंगाल में नबा वर्षा के नाम से जाना जाता है। इन दिनों पूजा-पाठ, व्रत किया जाता है और घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाए जाते हैं। साथ ही पारंपरिक नृत्य, गीत, संगीत आदि कार्यक्रम होते हैं।
‘पार्टी’ नहीं, रंगोली बनाकर मनाया जाता है उत्सव
अंग्रेजी नववर्ष का सेलीब्रेशन जहॉं नाइट पार्टी, डिस्को और शराब का पर्याय बन गया है, वहीं भारतीय नववर्ष चारों ओर सुख—शांति व अपनेपन के साथ सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। नव संवत्सर के दिन घरों में सुंदर रंगोलियां बनाई जाती हैं। घर, आंगन को सजाया जाता है। शाम को दीप प्रज्जवलित होते हैं।
नव संवत्सर के दिन की शुरुआत अनुष्ठानिक तेल-स्नान और उसके बाद प्रार्थना से होती है। इस दिन तेल स्नान और नीम के पत्ते खाना शास्त्रों द्वारा सुझाए गए आवश्यक अनुष्ठान हैं। नववर्ष की धार्मिक मान्यता को लेकर ज्योतिषाचार्य सुधाकर पुरोहित बताते हैं कि, विक्रम नव संवत्सर चैत्र माह की शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। यह परंपरा राजा विक्रमादित्य के समय से प्रारंभ हुई थी, इसलिए इसे विक्रम संवत कहा जाता है।
भारत में आज कोई चाहे कितना भी पाश्चात्य सभ्यता में क्यों न ढल गया हो, लेकिन शुभ कार्य के समय भारतीय कालगणना का ही सहारा लेता है फिर चाहे वह गृह प्रवेश का कार्यक्रम हो, वैवाहिक कार्यक्रम हो या नए व्यवसाय की शुरुआत।
इसी प्रकार हमारे त्यौहार भी प्रकृति और ग्रह नक्षत्रों पर ही आधारित होते हैं। वर्ष प्रतिपदा पूर्णत: वैज्ञानिक और प्राकृतिक नववर्ष है। विचारना होगा कि “हम जड़ों से जुड़े रहना चाहते हैं या फिर जड़ बनकर पश्चिम के पीछे भागना चाहते हैं।”
अप्रतिम है हमारी सांस्कृति
बहुत जानकारी पूर्ण आलेख है। ऐसे आलेखों का इंतजार रहता है।
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