विश्व मृदा दिवस पर विशेष: मृदा प्रदूषण एक वैश्विक चुनौती
जयपुर। भारत में मिट्टी धरती मां के रूप में पूजनीय है। हर भारतीय का इसके साथ एक भावनात्मक नाता हैं। और जब बात अपनी मिट्टी की आती है तो सीधे तौर पर ये देश प्रेम के साथ भी जुड़ जाती है। किंतु आज मृदा प्रदूषण कृषि उत्पादकता, खाद्य सुरक्षा और मानव स्वास्थ्य के लिए एक चिंताजनक खतरा बनता जा रहा है। जो पूरे विश्व के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। एक आंकड़े के अनुसार मृदा प्रदूषण में नगरपालिका और औद्योगिक अपशिष्टों का सबसे अधिक 38 प्रतिशत व औद्योगिक क्षेत्र का लगभग 34 प्रतिशत योगदान है। जो एक बुरा संकेत है।
इस बात को कभी नहीं नकारा जा सकता कि स्वस्थ्य जीवन को बनाए रखने के लिए मिट्टी सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन है। लेकिन विडंबना है कि इस संबंध में बहुत कम जागरूकता है। हालांकि अब वैश्विक स्तर पर इसके बचाव पर काम किए जाने की एक बड़ी आवश्यकता जरूर महसूस की जाने लगी है। जहां तक भारत की बात है, तब यहां जगतगुरू सद्गुरु ‘सेव सॉइल’ नाम से न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी मिट्टी बचाव को लेकर एक वैश्विक अभियान चला रहे हैं। जिसका उद्देश्य मृदा स्वास्थ्य के लिए दुनिया भर के लोगों को एक साथ लाकर मृदा संकट का समाधान करना है, और खेती योग्य मिट्टी में जैविक सामग्री को बढ़ाने की दिशा में राष्ट्रीय नीतियों और कार्यों को स्थापित करने के लिए सभी देशों के नेताओं का समर्थन करना है। इससे लोगों के मन में भी मिट्टी को बचाने के प्रति एक सोच और जागरूकता पैदा हो रही है।
आज मिट्टी की बात इसलिए हो रही है क्योंकि आज “विश्व मृदा दिवस” है। इस साल ये दिवस “मिट्टी और पानी, जीवन का एक स्रोत” पर केंद्रित है। यह विषय इस तथ्य पर ध्यान आकर्षित करने के लिए है कि मिट्टी में खनिज, जीव और जैविक घटक होते हैं जो मनुष्यों और जानवरों को भोजन प्रदान करते हैं। यदि उनकी गुणवत्ता और बचाव पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह संपूर्ण विश्व के लिए हानिकारक हो सकता है।
पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के प्रांत संयोजक अशोक कुमार शर्मा कहते हैं, ”हम अलग- अलग आयामों की मदद से राजस्थान के लोगों तक पहुंच रहे हैं और उन्हें अपनी जमीन और मिट्टी की कीमत के बारे में समझा रहे हैं। मृदा प्रदूषण के जो प्रमुख कारण है वो है पॉलिथीन का अत्यधिक प्रयोग, जो जमीन के भीतर पहुंचकर उसे बंजर बनाती है। इस वजह से मिट्टी पानी को सोख नहीं पाती। जबकि मिट्टी में नमी होना बेहद जरूरी है। खेतों की जमीनों पर फैक्ट्रियां और कारखाने लग रहे हैं जिनका अपशिष्ट मिट्टी को दूषित कर रहा है। यदि हमें मिट्टी को बचाना है तो पेड़ काटने से भी बचना होगा। किंतु ये बड़ी दुखद स्थिति है कि आज बिना जानें ही पेड़ काटे जा रहे हैं। किसी को भी इस बात की सही और पूरी जानकारी नहीं कि, जिस पेड़ को काटा जा रहा है उसकी उपयोगिता छाया देने के अलावा कुछ और भी है क्या? कईयों को पेड़ का साइंस नहीं पता। ऐसे में राजस्थान के कुछ क्षेत्रों से कनेर और सप्तवर्णी जैसे पेड़ बेवजह ही काटे जा रहे हैं। जबकि इसी ही तरह के अन्य पेड़ों से नाइट्रोजन मिलता है। जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसमें लगभग 78 प्रतिशत नाइट्रोजन होती है, इसलिए यह आमजन का समझना बेहद जरूरी है। ऐसे सभी कारणों के प्रति लोगों के सामने बेहद छोटे—छोटे और रोचक उदाहरण प्रस्तुत कर उन्हें जागरुक कर रहे हैं। ये अच्छी बात है कि अब गांवों के साथ ही शहरों की महिलाएं भी रसोई घर से निकलने वाले कचरे को जैविक खाद के रूप में इस्तेमाल कर रही हैं।”
जानने के लिए तथ्य—
— मिट्टी पौधों की जड़ों को आधार प्रदान करती।
— पौधों के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व देती।
— वर्षा जल को फ़िल्टर करना व अतिरिक्त जल निकास को नियंत्रित करना, जिससे बाढ़ को रोका जा सके।
— बड़ी मात्रा में कार्बनिक कार्बन का भंडारण करने में सक्षम।
— यह कार्बन का सबसे बड़ा स्थलीय भण्डार।
— वनस्पति की तुलना में तीन गुना अधिक कार्बनिक कार्बन।
— वायुमंडल में मौजूद कार्बन की तुलना में दोगुना कार्बन।
दिवस मनाने का उद्देश्य—
इस दिन का मुख्य उद्देश्य उन महत्वपूर्ण पर्यावरणीय समस्याओं के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना है जो मिट्टी के क्षरण का कारण बन सकते हैं, जैसे मिट्टी का कटाव, कार्बनिक पदार्थों की हानि और मिट्टी की उर्वरता में गिरावट, रासायनिक पदार्थों का उपयोग आदि। साथ ही टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना, मृदा संरक्षण नीतियों के परिप्रेक्ष्य में तर्क रखना भी इसका लक्ष्य है।