तन्मयता से लिया गया आहार अमृततुल्य होता है
आहार हमारे जीवन का अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है। कहा गया है – आहार संभवं वस्तु रोगश्चाहार संभवः। हमारा शरीर आहार से ही बना है एवं रोग भी आहार से ही उत्पन्न होते हैं। अतः आहार लेते समय हमें विचार करना चाहिये कि हम – क्या खायें? कब खायें ? कितना खायें ? कैसे खायें ?
क्या खायें – प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन्स, वसा, मिनरल्स एवं जल ये सभी घटक तो हमारे भोजन में यथावश्यक मात्रा में होने ही चाहिये, इसके लिये पर्याप्त मात्रा में अन्न, दालें, दूध एवं दूध से बने उत्पाद (प्राथमिकता से गौदुग्ध के उत्पाद), फल, सब्जियॉं इत्यादि का सेवन करना चाहिये। हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिये कि परम्परागत तौर पर हमारी रसोई में उपयोग लिये जाने वाले मसाले यथा – हल्दी, जीरा, धनिया, सौंफ, अजवाइन, लहसुन, दाना मेथी, दालचीनी, इलाइची, सौंठ, कालीमिर्च, तेजपत्ता, जावित्री, जायफल इत्यादि मसालों का भी यथावश्यक रूप से प्रयोग हो रहा है या नहीं। यद्यपि यह विस्तृत विषय है तथापि हमें इतना ध्यान रखना चाहिये कि हमारी दादी नानी द्वारा परम्परागत तौर पर अपनी रसोई में जो पकवान बनाये जाते रहे हैं एवं जिन मसालों का उपयोग होता रहा है उन्हें अवश्य अपनायें। हमें अपने घर की रसोई में पका हुआ भोजन ही करना चाहिये।
कब खायें – इसके लिये सीधा सा नियम है जीर्णमश्नीयात् अर्थात् पहले खाये गये अन्न के पचने के पश्चात् ही दुबारा खायें। इसको और अधिक समझने के लिये जब भूख लगे तब खायें, बिना भूख के नहीं खायें। यदि इसे समय में विभक्त करें तो निम्न नियम लागू होगा:
याममध्ये न भोक्तव्यं यामयुग्मं न लंघयेत् । याममध्ये रसोद्वेगो युग्मातीते वलक्षयम्।।
अर्थात् पहले जो भोजन किया गया है उसके एक याम (तीन घंटे) के भीतर दूसरा भोजन नहीं करें एवं यामयुग्म (छः घंटे) से अधिक भूखे नहीं रहें। किन्तु इस नियम के साथ कितना खायें यह अवश्य ध्यान में रखना होगा।
कितना खायें – मात्राशी स्यात् अर्थात् आप भोजन सही मात्रा में ही करें, अधिक भोजन नहीं करें। मात्रा पुनः अग्निबलापेक्षिणी अर्थात् प्रत्येक व्यक्ति के भोजन की मात्रा उसकी पाचन शक्ति, शारीरिक श्रम इत्यादि पर निर्भर करती है।
कैसे खायें – जो भोजन हम खाते हैं उसका ठीक से पाचन होकर शरीर में अवशोषण होने के उपरान्त ही शरीर द्वारा उसका उपयोग किया जाता है। शुचिता के साथ तन्मयता से किया गया भोजन अमृततुल्य होता है। अतः स्नान करने के पश्चात् ही भोजन करें, तन्मय होकर भोजन करें, अत्यधिक जल्दी अथवा अत्यधिक धीरे भोजन नहीं करना चाहिये।
वैद्य श्रीराम तिवाड़ी
आयुर्वेदाचार्य