पुस्तक समीक्षा- राष्ट्रीयता की प्रखर अग्नि भगिनी निवेदिता
राष्ट्रीयता की प्रखर अग्नि भगिनी निवेदिता डॉ. मधु शर्मा द्वारा संकलित लघु पुस्तिका वास्तव में अति प्रेरणादायी पुस्तक है। यह आवश्यक नहीं कि महान चरित्र उद्घाटन के लिए बड़ी-बड़ी पुस्तकें ही लिखी जाएं, हम विद्यार्थियों की प्रेरणा के लिए ऐसी लघु पुस्तकें भी प्रयोग में ला सकते हैं। भगिनी निवेदिता का जीवन हम भारतीयों के लिए अति प्रेरणादायी है कि कैसे अपने गुरु स्वामी विवेकानंद के एक आह्वान पर उन्होंने विदेशी होते हुए भी भारत के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। स्वामी जी का मार्गरेट (निवेदिता) पर विश्वास ही उन्हें भारत खींच लाया।इनका समर्पण और कार्य देखकर ही स्वामी जी ने इनका नाम निवेदिता (समर्पित) रखा। जब निवेदिता ने भारत को अपनी कर्मभूमि बनाया तब यहां के अंधविश्वास और कुरीतियों से घिरे लोगों ने उन्हें सहज ही नहीं अपना लिया। निवेदिता तो आई ही संघर्ष के लिए थीं, उन्होंने विरोधी तत्वों से अपने को विचलित ना होने दिया और निरंतर भारत उत्थान के लिए कार्य करती रहीं। मार्च 1899 में जब कोलकाता में प्लेग फैला तो वे बिना किसी संकोच के गंदी गलियों और शौचालयों की सफाई में लग गईं। उन्हें देखकर कई लोग लज्जित हुए, उन्हें लगा कि वह विदेशी होकर जब सेवा कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं, इस प्रकार कई लोग उनके साथ सेवा में लग गए। सिस्टर निवेदिता भारतीयों को उनकी महान संस्कृति का स्मरण समय-समय पर कराती रहती थीं। उन्हें यह देखकर दुख होता था कि भारतीय अपनी संस्कृति को भूलकर पश्चिम की ओर उन्मुख हैं। विदेशों में भी भारत की छवि धूमिल थी। निवेदिता ने अमेरिका में भी जाकर वहां के लोगों को यह अनुभव कराया कि लंबे समय से विदेशी शासन का शिकार रहने के कारण भारत की यह दुर्दशा हुई है। बालिका शिक्षा के लिए विद्यालय खोलने से ले कर राष्ट्रीय आंदोलन, पुस्तक लेखन आदि सेवा कार्यों में निवेदिता का समय व्यतीत होता था। 1905 में बंगाल विभाजन के समय अकाल एवं बाढ़ पीड़ितों की सहायता एवं सेवा की।
इस पुस्तक में उल्लेखित विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से भगिनी निवेदिता के चरित्र का उद्घाटन किया गया है। वे ममतामयी, दयालु, सेवाभावी एवं स्पष्टवादी थीं।
वस्तुतः पुस्तक आकार में लघु होते हुए भी दीर्घ प्रभाव छोड़ती है और प्रत्येक मनुष्य की आत्मा को झकझोरती है कि जब एक विदेश में जन्मी महिला भारत भूमि की महानता से अभिभूत होकर जन्म स्थान के कार्य कर सकती है तो हम भारतीय क्यों नहीं। आज पुन: भारत को अपनी संस्कृति की रक्षा करनी है। युवाओं से ऐसी अपेक्षा की जाती है कि वे अपने देश की महानता को समझें और निरंतर इसकी प्रगति के लिए लिए कार्य करते रहें।
मीनू भसीन