मानव तस्करी के आरोप में अलताफ अंसारी, रोसाद आलम व मोहम्मद अजीज गिरफ्तार
24 अगस्त, जयपुर। जहां एक ओर देश नई ऊंचाइयां छू रहा है, वहीं दूसरी तरफ देश के कुछ हिस्सों में बाल श्रम जैसी समस्या से अभी तक निजात नहीं मिल पाई है। सस्ते श्रम के चक्कर में बच्चों के भविष्य व स्वास्थ्य दोनों से खिलवाड़ हो रहा है। पिछले दिनों जालूपुरा थाना पुलिस ने 2 बसों में बिहार से लाए जा रहे 19 बाल श्रमिकों को मुक्त कराया है। साथ ही मानव तस्करी में लिप्त 7 आरोपियों को गिरफ्तार भी किया गया है। पुलिस ने दोनों बसों को जब्त कर मानव तस्करी में लिप्त आरोपियों अलताफ अंसारी, मोहम्मद रोसाद आलम, मोहम्मद अजीज एवं अन्य को गिरफ्तार किया है। फिलहाल सभी आरोपियों से पूछताछ की जा रही है।
ढाबों और फैक्ट्रियों में अक्सर बाल श्रमिकों को काम करते हुए देखा जा सकता है। जयपुर में बाल श्रमिकों को सबसे ज्यादा चूड़ियां बनाने के कारखानों, गहनों और आभूषणों की पत्थर घिसाई के कार्यों के लिए बिहार, बंगाल और झारखंड से लाया जाता रहा है। 2012 की एक रिपोर्ट के अनुसार, केवल राजस्थान में देशभर के दस प्रतिशत बाल श्रमिक हैं, और अकेले जयपुर में 50,000 से अधिक 5 से 14 साल के बाल श्रमिक मौजूद थे।
देखने में आया है कि नाबालिग बच्चों को बहला फुसलाकर उनके घर से दूर ले जाया जाता है और उसके बाद उनसे दिन के 18- 20 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। जिसके कारण उनका बचपन गलियों में खेलने और विद्यालय में पढ़ने की जगह, फैक्ट्रियों और कारखानों में विषैली गैस सूंघकर बीतता है।
एसएमएस मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की छात्रा, अनुष्का जैमन बताती हैं, “कारखानों और बड़ी बड़ी फैक्ट्रियों में काम करने वाले इन बच्चों का केवल जीवन ही खराब नहीं हो रहा, इनका स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है। लंबे समय तक कम रोशनी वाली कोठरियों में काम करने से इनके दिमाग व आंखों पर गलत प्रभाव पड़ता है। कई फैक्ट्रियों में गैस निकलती है, जिसे लंबे समय तक सूंघने से शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां पनप जाती हैं।”
बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ से जुड़े नीलेश बंसल बताते हैं कि, “मैं अभी 20 वर्ष का हूं, और इन छोटे बच्चों को देखकर मुझे मेरा बचपन याद आता है। इस आयु में मेरे पास वो सब सुविधाएं थीं जो इनके पास नहीं हैं। मैंने देखा है कि सभी बच्चों को जबरदस्ती बाल श्रमिक नहीं बनाया जाता, कुछ बच्चे अपने घर की मजबूरियों के कारण भी काम करने लगते हैं। सरकार और प्रसाशन को सबसे पहले ऐसे बच्चों के जीवन को बचाना चाहिए।”
धीरे धीरे ही सही परन्तु यह समस्या अब देश से कम होती जा रही है। लोग इसके प्रति जागरूक होते जा रहे हैं।