वैश्विक बाजारी शक्तियां सनातन भारतीय संस्कृति को प्रभावित करने का प्रयास कर रही हैं
प्रहलाद सबनानी
वैश्विक बाजारी शक्तियां सनातन भारतीय संस्कृति को प्रभावित करने का प्रयास कर रही हैं
सनातन भारतीय संस्कारों के अनुसार भारत में कुटुंब को एक महत्वपूर्ण इकाई के रूप में स्वीकार किया गया है। भारत में संयुक्त परिवार इसकी परिणति के रूप में दिखाई देते हैं। जबकि, पश्चिमी आर्थिक दर्शन में संयुक्त परिवार लगभग नहीं के बराबर हैं। विकसित देशों में सामान्यतः बच्चे 18 वर्ष की आयु प्राप्त करते ही अपना अलग घर बसा लेते हैं। इस चलन के पीछे संभवत आर्थिक पक्ष इस प्रकार जुड़ा हुआ है कि जितने अधिक परिवार होंगे, उतने ही अधिक मकानों, कारों, टीवी, फ्रिज आदि की आवश्यकता होगी। यह आवश्यकता अंततः मांग में वृद्धि के रूप में दिखाई देगी। इससे इन वस्तुओं का उत्पादन बढ़ेगा। अधिक वस्तुएं बिकने से बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की लाभप्रदता में भी वृद्धि होगी। कुल मिलाकर इससे आर्थिक वृद्धि दर तेज होगी। विकसित देशों में इस प्रकार की मान्यताएं समाज में अब सामान्य हो चली हैं।
अब बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारत में भी प्रयासरत हैं कि किस प्रकार भारत में संयुक्त परिवार की प्रणाली को तोड़ा जाए ताकि परिवारों की संख्या बढ़े और इससे विभिन्न उत्पादों की मांग व इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों की बिक्री बाजार में बढ़े। इसके लिए बहुराष्ट्रीय कम्पनियां इस प्रकार के विभिन्न सामाजिक सीरियलों को बनवाकर प्रायोजित करते हुए टीवी पर प्रसारित करवाती हैं, जिनमें संयुक्त परिवार के नुकसान बताए जाते हैं एवं छोटे छोटे परिवारों के लाभ दिखाए जाते हैं। सास बहू के बीच छोटी छोटी बातों को लेकर झगड़े दिखाए जाते हैं, जिनका अंत परिवार की टूट के रूप में बताया जाता है।
भारत एक विशाल देश एवं विश्व में सबसे बड़ा बाजार है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियां यदि अपने इस कुचक्र में सफल हो जाती हैं तो उनकी सोच के अनुसार भारत में उत्पादों की मांग में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है। इससे बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को सीधे सीधे लाभ होगा। इसी के चलते आज जॉर्ज सोरोस जैसे कई विदेशी नागरिक अन्य कई विदेशी संस्थानों एवं बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के साथ मिलकर भारतीय संस्कृति पर हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं एवं भारतीय संस्कृति को नष्ट करने का प्रयास कर रहे हैं।
आज यदि भारत विभिन्न क्षेत्रों में आत्मनिर्भर बन जाता है, तो इसका सबसे बुरा असर इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर होने वाला है। क्योंकि, इससे इन कम्पनियों द्वारा निर्मित उत्पादों की मांग भारत में कम हो जाएगी और आज केवल भारत ही पूरे विश्व में सबसे अधिक तेज गति से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था बन गया है। यदि भारत में इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के उत्पादों की मांग कम हो जाती है तो ये कम्पनियां अपने उत्पादों को बेचेंगी कहां एवं कैसे अपनी लाभप्रदता में वृद्धि दर्ज करेंगी? इसलिए इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों ने भारत की महान संस्कृति पर अपने हमलों को तेज कर दिया है।
विकसित देशों में आज सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न हो गया है। शादी शुदा जोड़ों के बीच तलाक की दर लगभग 50 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जिससे छोटे छोटे बच्चे केवल अपने माता अथवा पिता के साथ रहने को विवश हैं। यदि माता अथवा पिता में से कोई एक पुनः विवाह कर लेता है तो उस बच्चे को सौतेले पिता अथवा सौतेली माता के साथ रहना होता है, जहां उसकी पर्याप्त देखभाल नहीं हो पाती है तथा उस बच्चे का मानसिक विकास ठीक तरीके से नहीं हो पाता है। ये बच्चे अक्सर मानसिक तनाव के दौर से गुजरते हैं और इसका पूरा असर इन बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ता है। आज अमेरिका में अमेरिकी मूल के नागरिकों के बच्चे विज्ञान एवं गणित जैसे विषयों में बहुत कम रुचि ले रहे हैं। पूरे विश्व में डॉक्टर एवं इंजीनियर के साथ साथ प्रबंधन के क्षेत्र में भी एशियाई मूल के नागरिकों के बच्चे आगे बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। इसी प्रकार, विकसित देशों में विवाह पूर्व बच्चियों का गर्भ धारण करना भी आम रिवाज होता जा रहा है तथा बगैर विवाह किए लिव इन रिलेशनशिप में साथ रहना भी आम बात हो गई है। लिव इन रिलेशनशिप के दौरान पैदा हुए बच्चों को न केवल कई प्रकार की कानूनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है बल्कि इन बच्चों की देखभाल भी ठीक तरीके से नहीं हो पाती है। विकसित देशों में बच्चों का सही लालन पालन नहीं होने के चलते इन बच्चों में हिंसा की प्रवृति पैदा हो रही है।
सामाजिक तानाबाना छिन्न भिन्न होने के चलते आज अमेरिका में सबसे अधिक खर्च सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर करना पड़ रहा है। वृद्ध नागरिक, चूंकि अपने बच्चों से अलग रहते हैं एवं वृद्धावस्था में उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है। अतः इनकी देखभाल पर सरकार को भारी भरकम राशि खर्च करनी होती है। इसी प्रकार जेलों के रख रखाव एवं इनमें निवास कर रहे कैदियों पर भी भारी भरकम राशि खर्च करनी होती है। इस प्रकार के खर्च उत्पादकता के श्रेणी में नहीं होने के चलते व्यर्थ खर्च ही माने जाते हैं। इससे कुल मिलाकर विशेष रूप से अमेरिका आज गम्भीर वित्तीय संकट के दौर से गुजर रहा है।
इसके ठीक विपरीत भारतीय सनातन संस्कृति में कुटुंब व्यवस्था को ईश्वर प्रदत्त उपहार माना गया है। संयुक्त परिवार में बच्चों के रहने के चलते उनकी बचपन में देखभाल ठीक तरह से होती है, उनमें हिंसा की प्रवृत्ति लगभग नहीं के बराबर पाई जाती है। इन बच्चों का मानसिक विकास भी उच्च स्तर का होता है। बुजुर्गों की देखभाल भी संयुक्त परिवार में बहुत अच्छी तरह से हो जाती है एवं सरकारों को किसी विशेष प्रकार की सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर खर्च करने की आवश्यकता ही नहीं रहती। परंतु, पश्चिमी देशों द्वारा सनातन भारतीय संस्कृति पर प्रहार किए जा रहे हैं। इस प्रकार के प्रयासों से भारतीय नागरिकों को आज जागरूक करने की आवश्यकता है। पश्चिमी संस्कृति तो अपने आप में असफल सिद्ध होती दिखाई दे रही है। अब केवल सनातन भारतीय संस्कृति ही विकसित देशों में फैल रही अशांति को दूर करने में सक्षम दिखाई दे रही है। इस प्रकार, सनातन भारतीय संस्कृति को अपनाकर पूरे विश्व में शांति स्थापित की जा सकती है।
भारतीय संस्कृति विश्व की सर्वश्रेष्ठ संस्कृति है और दुनिया को सुख शांति की और अग्रेषित करने बाली है
इस प्रकार के ऐड़ देने से हमारी युवा पीढ़ी पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।इस प्रकार के कुत्सित षडयंत्र बर्दास्त नहीं किये जा सकते हैं।
विश्व की शांति के लिए भारतीय परिवार व्यवस्था अति आवश्यक है
भारत की संयुक्त परिवार व्यवस्था में धैर्य संयम संस्कार एक महान व्यक्तित्व को गढ़ने के हर प्रकार के गुण विद्यमान थे, उसे बाहर जाकर किसी व्यक्तित्व सम्बंधित सलाह लेने की आवश्यकता महसूस नही होती थी, जबकि पश्चिमी भौतिकवादी सोच ने आत्मा शरीर व मन से फूहड़ बना दिया है।
शुद्ध सात्विक प्रवृति के व्यक्ति भारतीय संस्कृति के तल्लीन मानव श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम पुरुषार्थ को धारण किए हुए हैं।
स्वदेशी उपयोग करें।संस्कृति रक्षा में सहयोग करें।
हमें अगर यह बात अच्छी तरह समझ में आ गई है तो हमें वापिस परिवार की ओर दृड़ता से मुड़कर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के मंसूबों को नाकाम करना होगा।
ये भारतीय संस्कृति के विपरीत षडयंत्र रचा जा रहा है और हम सभी लोगो को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए। हमे भारतीय संस्कृति को बनाए रखने के लिए त्योहार मांगलिक कार्य विवाह समाज की बैठक अन्य समारोह आदि में भारतीय परिधान पहनकर जायेंगे तो भारतीय परिधानो की मांग बढ़ेगी जिसके चलते आप अपनी संस्कृति को बचा सकते है
बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दुष्चक्र में फंसकर कई भारतीय परिवार दुःखी हो रहे हैं । परिवार में माता-पिता काम काजी होने के कारण बच्चों का भविष्य अंधकारमय हो रहा है ।
इन सब विग्यापनों को व नाटकों को तुरन्त ओ्रभाव से बन्द करना चाहीये सरकार इन ओर तुरन्त कार्यवाही करके बन्द करें।
वैदिक काल से ही भारत संयुक्त परिवार के पक्ष में रहा है। संयुक्त परिवार में शिशु के उचित पालन पोषण के साथ संस्कार भी मिलते हैं। आज के मनोवैज्ञानिक भी स्वीकार करते हैं कि अकेले बालक सर्वाङीण विकास नहीं हो सकता है। इसलिए हमारे पूर्वजों ने संयुक्त परिवार को महत्व दिया है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के स्वार्थ कभी भी पूरे नहीं हो पायेंगे। क्योंकि संयूक्त परिवार का चलन अब वापस बढ़ने लगा है।
भारतीय संस्कृति में संयुक्त परिवार समाज की रीढरज्जु है, इसमें सबका साथ और सबका विकास निहित है।। अतः संगठित रहो और सुरक्षित रहो ।।
जड़ों की ओर लोटना ही पड़ेगा नहीं तो सब बर्बाद हो जाएगा
भारतीय परिवार व्यवस्था एक उच्च श्रेणी की संस्थागत व्यवस्था है जिसमे रहकर मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है यही भारती ताकत भी है भारती कमजोर करना ही वैश्विक बाजारी ताकतों का एकमात्र उद्देश्य है हमे परिवार व्यवस्था को पुनः सुदृढ़ तथा संस्कारक्षम करने की महती आवश्यकता है।
इन विज्ञापनो का पूरे जोर विरोध करते है।
एकदम सही
संयुक्त परिवार सनातन संस्कृति की देन है जो सभी तरह से मानव समाज के लिए उपयोगी है। संयुक्त परिवार में भाईचारा ,सहयोग की भावना आदि मानवीय गुणों का विकास होता है।