सम्मान
हमें अपने अधिकारों की कितनी चिंता रहती है, परंतु जब बात कर्तव्य की आती है तब हम अपने कर्तव्य क्यों नहीं निभाते? जबकि देश को इस समय आम नागरिक के सहयोग की ज्यादा जरूरत है।
शुभम वैष्णव
क्या हुआ असलम मियां, आज इतने उदास क्यों हो? आवाज में कड़की भी नजर नहीं आ रही। सब खैरियत तो है ना? कहीं भाभी जी से लड़ाई तो नहीं हो गई, जो इतने गुमसुम से हो?
कुछ भी खैरियत नहीं है अब्दुल मियां, देखो ना कोरोना का प्रकोप देश में दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है और कुछ लोग इस समय में भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं। सब की सेवा में लगे पुलिसकर्मियों चिकित्सकों पर लगातार हमले किए जा रहे हैं। इन हमलों को अंजाम देने वाले असामाजिक तत्वों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। इसी कारण तो इनके हौसले बुलंद हो रहे हैं। इन लोगों की अलगाववादी मानसिकता कोरोना के कहर से भी ज्यादा घातक है।
मुझे एक चश्मे से तो कोरोना के सम्मान में ताली और थाली बजाते लोग नजर आ रहे हैं, वहीं दूसरे चश्मे से कुछ लोग कोरोना योद्धाओं को गालियां देते नजर आ रहे हैं। एक चश्मे से तो कोरोना योद्धाओं पर हर्ष पूर्वक पुष्प वर्षा करते हुए लोगों का हुजूम नजर आ रहा है वहीं दूसरे चश्मे से देखूं तो कुछ लोगों का हुजूम कोरोना योद्धाओं पर पत्थर बरसाता नजर आ रहा है।
एक सोच देश के लिए काम कर रही है और एक सोच देश के खिलाफ काम कर रही है। लोग क्यों भूल जाते हैं कि हम सब सर्वप्रथम भारतवासी हैं। हमें अपने अधिकारों की कितनी चिंता रहती है, परंतु जब बात कर्तव्य की आती है तब हम अपने कर्तव्य क्यों नहीं निभाते? जबकि देश को इस समय आम नागरिक के सहयोग की ज्यादा जरूरत है।
हमारे कोरोना योद्धा अपने परिवार से दूर हम सब की सेवा में तत्पर हैं। वह लगातार अपनी जान की परवाह किए बिना हम सबको कोरोना के कहर से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं और बदले में उन्हें क्या मिल रहा है पत्थर और गालियां। अक्सर संविधान की बात करने वाले लोग आज संविधान की मूल भावना को कुचलने का प्रयास कर रहे हैं। यह सब ओछी मानसिकताओं के व्यक्तियों की ही तो देन है।
तब तो असलम मियां न आपके चश्मे का कसूर है ना ही आपकी नजरों का, यह कसूर है उन लोगों की नजरों का जिनकी नजरों पर धर्मांधता की काली पट्टी बंधी है।