परिवारों में सकारात्मक ऊर्जा एवं उत्साह का वातावरण बनाने के लिए स्वयंसेवकों के प्रयास
विश्व परिवार दिवस : 15 मई पर विशेष
हिंदू परिवार परंपरा संपूर्ण मानव जाति के लिए एक अनुपम देन है। आदर्श परिवार ही संस्कारवान, श्रेष्ठ एवं समृद्ध हिंदू संस्कृति के आधार रहे हैं। जब जब परिवार भाव में कमी आई है तब तब भारत ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में अशांति एवं असंतुलन भी रहा है। अतः परिवारों में विघटन को रोकने एवं सनातन जीवन मूल्यों के स्थायित्व की आवश्यकता को समझते हु्ए स्वयंसेवकों द्वारा समाज की सज्जन शक्ति के साथ मिलकर परिवार प्रबोधन की गतिविधि प्रारम्भ की गई, जो आज, कोविड काल में नकारात्मक व निराशा के वातावरण को मात देकर असीम आशा का संचार करती है। नागपुर निवासी सेवा निवृत्त प्राध्यापक डॉ. रवीन्द्र जोशी इस गतिविधि के अखिल भारतीय सह-संयोजक हैं। राजस्थान में यह कार्य वरिष्ठ प्रचारक नंदलाल की देख रेख में चलता है। कुटुम्ब प्रबोधन में परिवार को एक सूत्र में बांधने वाली अनेक गतिविधियां संचालित होती हैं। सामान्य दिनों में परिवार मिलन के कार्यक्रम भी होते हैं परंतु आज की परिस्थितियों में एक दूसरे का सम्बल बनने व हौंसला देने के लिए परिवार के सभी सदस्य साथ रहते हैं तो आपस में, साथ नहीं रहते हैं तो ऑनलाइन जुड़कर भी अनेक प्रकार के आयोजन कर सकते हैं।
जैसे- सब मिलकर ईश वंदना करें। अपने इष्ट देव का ध्यान, जप, कीर्तन, पाठ आदि कुछ भी कर सकते हैं। पिछले दिनों राजस्थान में कई परिवारों ने एक साथ सामूहिक रूप से श्री हनुमान चालीसा का पाठ किया था।
प्रतिदिन सात्त्विक एवं पौष्टिक आहार बनाने के बाद भगवान को भोग लगाकर प्रसाद के रूप में सब सामूहिक रूप से उस भोजन को स्नेहपूर्वक ग्रहण करें। सहभोज प्रभु का धन्यवाद करते हुए यथासंभव छत या खुले स्थान पर हो।
परिवार के साथ बैठकर युगानुकूल व शाश्वत विषयों पर चर्चा करें। जिसमें बच्चों को भी खुलकर बोलने का अवसर दिया जाए। वार्ता में महिलाओं का भी सहभाग हो। बातचीत का प्रारम्भ प्रशनोत्तरी से हो सकता है या परिवार के मुखिया द्वारा अपने पूर्वजों की यशोगाथा की चर्चा की जा सकती है। विगत पांच- सात पीढ़ियों की जानकारी देने, हिन्दू तिथि, वार, पक्ष, माह (चैत्र, वैशाख आदि) की चर्चा करने, किसी महापुरुष या धर्म ग्रंथ के किसी प्रसंग आदि पर बातचीत की जा सकती है। सार रूप में यह संवाद अपने परिवारों में गुणों को बढ़ावा देने व दोषों को दूर करने वाला होना चाहिए।
इन तीन के अलावा परिवार प्रबोधन में अन्य कार्यक्रम भी होते हैं, जो कोरोनाकाल में भी परस्पर किए जा सकते हैं। जैसे – कमरे में बैठकर खेले जाने वाले खेल खेलना, श्री राम एवं श्री कृष्ण के जीवन के प्रेरणादायक कथानक सुनाना, संयुक्त परिवार का महत्व व उदाहरण स्वरूप किसी संयुक्त परिवार की चर्चा करना, बच्चों में अतिथि सत्कार का भाव जगाते हुए उसका महत्व समझाना आदि।
चर्चा में इनके अलावा भी अनेक बातें सम्मिलित की जा सकती हैं जैसे घर का नामकरण हमारे देवी-देवताओं, गुरुजनों, पूर्वजों, मांगलिक प्रतीकों आदि पर हो; तुलसी का पौधा घर के द्वार पर या योग्य स्थान पर रखा जाना चाहिए। घर में प्रेरक महापुरुषों के चित्र, धार्मिक, आध्यात्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक ग्रंथ हों, बड़े उन्हें पढ़ें व उनके प्रसंग बच्चों को सुनाएं ताकि बच्चों की भी उन ग्रंथों को पढ़ने में रुचि बने। परिवारजनों की जागने से सोने तक की व्यवस्थित दिनचर्या हो, ताकि बच्चे भी उनका अनुसरण करें। आपसी संवाद यथासंभव मातृभाषा में करें। सभी आपस में एक दूसरे का सम्मान करें, एक दूसरे की बात को महत्व दें। ईश स्मरण के साथ शयन करें। परिवार बोध कथाएं पढ़ें एवं मनन-चिंतन करें।
इन गतिविधियों को अपने परिवार से प्रारम्भ कर आस पास के परिवारों को जोड़कर इन्हें आगे बढ़ाया जा सकता है।इसके लिए परिवार प्रबोधन गतिविधि से जुड़े कार्यकर्ताओं की सहायता भी ली जा सकती है।