हिंदुत्व पर हमला, बड़े षड्यंत्र का हिस्सा

हिंदुत्व पर हमला, बड़े षड्यंत्र का हिस्सा

बलबीर पुंज

हिंदुत्व पर हमला, बड़े षड्यंत्र का हिस्साहिंदुत्व पर हमला

कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद द्वारा ‘हिंदुत्व’ की इस्लामी आतंकवाद से तुलना, राहुल गांधी द्वारा ‘हिंदुत्व’ का दानवीकरण, प्राचीन राम मंदिर का विध्वंस कराने वाले क्रूर मुगल बाबर का मणिशंकर अय्यर द्वारा महिमामंडन, ‘जय श्रीराम’ कहने वालों को राशिद अल्वी द्वारा ‘निशाचर’ (राक्षस) बताना और मोदी विरोध के नाम पर वर्तमान भारत को ‘हिंदू-तालिबान’ कहना- एक ही असाध्य रोग के लक्षण हैं।

यही नहीं, भारत सहित शेष विश्व में इस्लाम के नाम पर हो रही हिंसा में मजहब नहीं देखने वाले कुनबे द्वारा भ्रामक ‘हिंदू/भगवा आतंकवाद’ का उपयोग, पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी सहित कई फिल्म अभिनेताओं द्वारा देश में असहिष्णुता और मुस्लिमों में ‘असुरक्षा की भावना’ का अलाप, विकृत “डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” का आयोजन और ‘किसान आंदोलन’ के नाम पर अराजक तत्वों का समर्थन भी उसी लाइलाज बीमारी के संकेत है।

पूर्व केंद्रीय मंत्री (कानून-विदेश प्रभार) और अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने अपनी नई पुस्तक ‘सनराइज ओवर अयोध्या: नेशनहुड इन आवर टाइम्स’ में हिंदुत्व आंदोलन को इस्लामी आतंकवादी संगठनों- आई.एस.आई.एस. और नाइजीरियाई बोको-हरम का समकक्ष बताया है। इन दोनों जिहादी संगठनों ने ‘काफिर-कुफ्र’ अवधारणा से प्रेरणा लेकर और इस्लाम के नाम पर 60,000 से अधिक लोगों को मौत के घाट उतारा है। हजारों गैर-मुस्लिम महिलाओं को अपना ‘सेक्स-स्लेव’ बनाया है और लाखों का जबरन मतांतरण किया है। यह दोनों भी अपने समकक्ष संगठनों (तालिबान सहित) की भांति विश्व में एक ऐसी व्यवस्था चाहते हैं, जो खालिस शरीयत द्वारा संचालित हो- जिसमें सभी गैर-इस्लामी प्रतीकों, सभ्यताओं और संस्कृतियों को नष्ट कर दिया जाए। सोचिए, इस प्रकार की पृष्ठभूमि वाले जिहादी संगठनों से खुर्शीद ने ‘हिंदुत्व’ की तुलना की है।

क्या अयोध्या में भव्य राम मंदिर की पुनर्स्थापना, कश्मीरी पंडितों की घाटी में सकुशल वापसी हेतु सहिष्णु वातावरण बनाने का प्रयास, लोकतांत्रिक-संवैधानिक व्यवस्था में हिंदू-हितों की भी बात और शेष विश्व में मजहबी अत्याचारों के शिकार हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन आदि अनुयायियों को अपने स्वाभाविक घर ‘भारत’ में नागरिक संशोधन अधिनियम के माध्यम से बसाना- आतंकवाद है?

देश का वाम-जिहादी-सेकुलर वर्ग सोचता है कि ‘हिंदुत्व’ पर विषवमन करके वे भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर हमला कर रहे हैं। यह विशुद्ध मूर्खता है। इस समूह को सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक खंडपीठों के उन पूर्ववर्ती निर्णयों को दोबारा पढ़ना चाहिए, जिसमें ‘हिंदुत्व’ की व्याख्या की गई है। 11 दिसंबर 1995 को शीर्ष अदालत में न्यायामूर्ति जे.एस. वर्मा की खंडपीठ ने कहा था- ‘हिंदुत्व’ का विस्तृत अर्थ है, जो समावेशी है, लेकिन मजहब नहीं है। ‘हिंदुत्व’ भारतीयों की जीवनशैली, लोकाचार और संस्कृति है।

बात केवल 1995 में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक निर्देश तक सीमित नहीं है। दशकों पुरानी न्यायिक प्रक्रिया है, जिसमें ‘हिंदू’, ‘हिंदुत्व’ और ‘हिंदूवाद’ को सहिष्णु बताया गया है। 14 जनवरी 1966 को स्वामीनारायण मामले में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश पी.बी. गजेंद्रगडकर की खंडपीठ ने कहा था- “दुनिया के अन्य मजहबों की भांति हिंदू किसी एक पैगंबर का दावा नहीं करता, यह केवल किसी एक भगवान की पूजा नहीं करता, यह किसी एक सिद्धांत के अनुरूप नहीं चलता… इसे मोटे तौर पर जीवन के एक तरीके के रूप में वर्णित किया जा सकता है।”

इसी तरह 1976 में अदालत से यह निर्धारित करने हेतु हिंदू दर्शन की न्यायिक जांच का आह्वान किया गया था कि क्या एक हिंदू परिवार, जिसमें एक ईसाई पत्नी और बच्चे शामिल हैं- उसे हिंदू अविभाजित परिवार माना जा सकता है? तब तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन.एन.रे की खंडपीठ ने फैसला देते हुए कहा था- “हिंदू दर्शन किसी के चयन या उन्मूलन के बिना अपने भीतर कई विश्वासों, प्रथाओं और विविध पूजा के रूपों को समाहित करता है। यह केवल मजहब तक सीमित नहीं, इसके अविभाजित परिवार में ईसाई सदस्य भी हो सकते हैं।” इसी तरह 1994 में अयोध्या संबंधित मामले पर अदालत के निर्देश में भी यही भाव प्रकट होता है।

‘हिंदुत्व’ पर शीर्ष अदालत के उपरोक्त निर्णय को दो बार असफल चुनौती दी गई थी। वर्ष 2016 में पहला प्रयास स्वयंभू वाम-उदारवादी तीस्ता सीतलवाड़ ने किया था, तो 2019 में दूसरी कोशिश उन्हीं सलमान खुर्शीद ने थी, जो अब न्यायिक पटल पर पराजित होने के बाद अपनी पुस्तक में ‘हिंदुत्व’ आंदोलन की तुलना इस्लामी आतंकवादी संगठनों की जिहादी विचारधारा से कर रहे है। क्या यह खुर्शीद का ‘हिंदुत्व’ पर हमला है या अदालत पर, जो दशकों से ‘हिंदुत्व’ पर अपना निर्णय पलट नहीं रही?

कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गांधी के लिए हिंदू ‘अच्छा’ और हिंदुत्व ‘बुरा’ है। संभवत: उन्होंने अपने परदादा और देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू के उन विचारों को नहीं पढ़ा है, जो बाद में वामपंथ से निकटता के कारण बदल गए थे। 1934-35 में ‘ग्लीम्सेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में उन्होंने लिखा था- “हिंदू राष्ट्रवाद और सच्चे राष्ट्रवाद के बीच एक रेखा खींचना आसान नहीं। दोनों अतिव्यापन (ओवरलैप) करते हैं, क्योंकि हिंदुओं का एकमात्र घर भारत है।”

इस देशविरोधी श्रृंखला में असंवैधानिक राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (2004-14), जो कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी के अधीन था- उसके द्वारा तैयार विषैला ‘सांप्रदायिक हिंसा विधेयक’ भी शामिल था। कांग्रेस इसे संसद से पारित कराना चाहती थी, जिसके अनुसार- किसी सांप्रदायिक हिंसा में इस विधेयक के प्रावधान तभी लागू होंगे, जब हमले अल्पसंख्यकों पर हो। ऐसे ही यौन दुर्व्‍यवहार तभी दंडनीय होगा, जब वह अल्पसंख्यक समुदाय के किसी सदस्य के खिलाफ हो। इस बहुसंख्यक हिंदू-विरोधी विधेयक को वर्ष 2013 में भाजपा के जोरदार विरोध के पश्चात वापस ले लिया गया था।

यह कोई संयोग नहीं कि दिल्ली में 10 नवंबर को हिंदू-विरोधी पुस्तक के विमोचन पर खुर्शीद के साथ दिग्विजय सिंह और पी.चिदंबरम भी उपस्थित थे। हिंदुत्व को कलंकित करने से पहले सलमान खुर्शीद इस्लामी आतंकी संगठन- सिमी (इंडियन मुजाहिद्दीन) से सहानुभूति रखते हुए उस पर लगे प्रतिबंधों के खिलाफ अदालत में पैरवी कर चुके हैं, तो उन्हें सितंबर 2008 में दिल्ली स्थित बटला हाउस एनकाउंटर में मारे आतंकियों के शोक में सोनिया गांधी के आंसू दिख चुके हैं।

अगस्त 2010 में तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री पी.चिदंबरम ने मिथक “भगवा आतंकवाद” शब्द का सबसे पहले उपयोग किया था, जिसे सुशील कुमार शिंदे ने, बतौर गृहमंत्री- जनवरी 2013 में झूठे “हिंदू आतंकवाद” में बदल दिया। दिग्विजय सिंह इन भ्रामक शब्दावलियों के रचयिता थे। इसके लिए उन्होंने 2008 के भीषण 26/11 मुंबई आतंकी हमले में पाकिस्तान को क्लीन-चिट देने हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कटघरे में खड़ा कर दिया था। यह सब इसलिए किया गया था, ताकि इस्लामी आतंकवाद की वास्तविकता को ‘इस्लामोफोबिया’ घोषित किया जा सके।

सच तो यह है कि ‘हिंदुत्व’ पर भ्रम फैलाकर मुस्लिम लीग ने ब्रितानियों और वामपंथियों के सहयोग से भारत का एक तिहाई हिस्सा काटकर 1947 में पाकिस्तान को जन्म दिया था। अंग्रेज जा चुके हैं, किंतु पाकिस्तान का सृजन करने वाला वैचारिक चिंतन, वामपंथ और पाकिस्तान-चीन रूपी देशविरोधी शक्तियों के समर्थक- खंडित भारत में आज भी सक्रिय है। कहीं ‘हिंदुत्व’ पर सतत हमला- दूसरे पाकिस्तान की तैयारी का हिस्सा तो नहीं?

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