अखंड भारत का स्वप्न सजाओ

प्रबल प्रचंड अद्भुत अभंग, सोने की चिड़ियाँ फिर बसाओ
भारती के लाल हो, अखंड भारत का स्वप्न सजाओ ।

आंसू की निराशा नहीं, जवानी का आक्रोश दिखाओ
शस्त्र के साथ शास्त्र भी, कलम के साथ कृपाण उठाओ
जन शक्ति को साथ कर, नभ चीरती ललकार लगाओ
भारती के लाल हो, अखंड भारत का स्वप्न सजाओ।

पछाड़ कर हर पाखंड को, सनातन की अब बात बताओ
जगा संस्कृति का गौरव, अपना पराया फर्क मिटाओ
जात पात का भेद छोड़, सागर सा गहरा ह्रदय बनाओ
भारती के लाल हो, अखंड भारत का स्वप्न सजाओ।

विश्व गुरु का वैभव चमके, ऐसा भगवा ध्वज लहराओ
आलस्य निद्रा त्याग कर, भीतर सोया प्रताप जगाओ
भोग स्वार्थ भूलकर, गुरु गोविंद सा त्याग दिखाओ
भारती के लाल हो, अखंड भारत का स्वप्न सजाओ।

लक्ष्य ना हासिल हो जब तक, थक बैठ टूट न जाओ
होगा अधूरा सपना पूरा, तन मन धन से कर्म निभाओ
पिछड़ों को साथ मिलाकर, जन सेवा की ज्योत जलाओ
भारती के लाल हो, अखंड भारत का स्वप्न सजाओ।

कुनाल

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1 thought on “अखंड भारत का स्वप्न सजाओ

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