अपना अपना आसमान : नब्बे के दशक का जनप्रिय टीवी धारावाहिक (समीक्षा)

अपना अपना आसमान : नब्बे के दशक का जनप्रिय टीवी धारावाहिक (समीक्षा)

डॉ. अरुण सिंह

अपना अपना आसमान : नब्बे के दशक का जनप्रिय टीवी धारावाहिक  (समीक्षा)

अस्सी व नब्बे के दशक में दूरदर्शन पर प्रदर्शित धारावाहिक लोकप्रिय मनोरंजन का साधन हुआ करते थे। भारतीय इतिहास, समाज व संस्कृति की एक ज्ञानवर्धक और सौंदर्यबोधक धारा बहती थी इन धारावाहिकों में। महाभारत और रामायण की लोकप्रियता तो बुलंदियों पर थी ही। इनके अतिरिक्त बुनियाद, हम लोग, चाणक्य इत्यादि अन्य धारावाहिक भी बहुत चर्चित एवं जनप्रिय थे। धारावाहिकों की इस कड़ी में अपना अपना आसमान ने भी अपनी जगह स्थापित की।

कैलाश तुली द्वारा निर्मित एवं निर्देशित 13 एपिसोड का यह धारावाहिक भारत छोड़ो आन्दोलन के अल्पज्ञात सेनानियों को समर्पित है। गाँधीवादी स्वतंत्रता सेनानी वैंकट रमैय्या अपना सम्पूर्ण जीवन गाँधीवादी आदर्शों पर जीते हैं तथा इस चुनौतीपूर्ण मार्ग पर अपने परिवार के परित्याग की आहूति भी देते हैं। एक सामान्य मनुष्य के लिए यह सब आसान नहीं है। राष्ट्र सेवा हेतु वैंकट रमैय्या अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध जेल चले जाते हैं। जीवन के इस दुष्कर पथ पर पत्नी कौशल्या भी ससुराल का परित्याग कर देती है। वैंकट रमैय्या का अपने स्वर्गीय अग्रज के बच्चों के प्रति कर्तव्य निर्वहन की उदात्त भावना भारतीय मूल्यों की श्रेष्ठता को दर्शाती है। यद्यपि उनके भतीजे व भतीजी वैंकट रमैय्या के आदर्शों का तिरस्कार करते हैं, परन्तु वैंकट रमैय्या अपने मन में लेशमात्र भी द्वेष अथवा दुर्भावना नहीं पालते। बहन विशाला के स्वार्थपूर्ण एवं अहंकारमय दृष्टिकोण के कारण आनंद पथभ्रष्ट होता है और परिणामतः ज्योति के सौंदर्यपाश में फँस जाता है। उसे पुनः वैंकट रमैय्या ही नैतिक रास्ते पर लाते हैं। रामदास की पुत्री अन्नपूर्णा का आनंद की वधु के रूप में वैंकट रमैय्या द्वारा चयन उनके पारंपरिक भारतीय मूल्यों में गहरे विश्वास को उजागर करता है। वे ज्योति की स्वच्छंदता का चयन नहीं करते। माधवराव अपनी पुत्री ज्योति के लिए उपयुक्त वर के रूप में आनंद का चयन न होने के कारण कुंठित होते हैं, पर इस हेतु ज्योति स्वयं उत्तरदायी है। वह आनंद पर अधिकार जमाकर भी उसे पाने में असफल रहती है।

तिलक का चरित्र आज के नवयुवकों के लिए अनुकरणीय है, जो अपने पारिवारिक व सांस्कृतिक मूल्यों को जीवन दर्शन बनाता है। पिता के गुणों की विरासत को संभालने में वह सफल प्रतीत होता है। मुंशी जी की विवेकपूर्ण राय कौशल्या के लिए लाभकारी ही सिद्ध होती हैं। जानकी परिवार की सबसे छोटी सदस्य है, पर वही अपनी माता का हृदय परिवर्तन करती है। कौशल्या एवं अन्नपूर्णा का स्वाभिमान एवं सतीत्व दोनों ही भारतीय स्त्री के लिए प्रेरक हैं। विशेष रूप से उल्लेखनीय बात यह है कि अस्सी-नब्बे के दौर में, जब वैश्वीकरण-जनित संस्कृतिक प्रदूषण पूरे संसार में पैर पसार रहा था, धारावाहिक निर्माताओं/निर्देशकों को छोटे पर्दे की रचनाधर्मिता का भान था। वे समझते थे कि कला का उद्देश्य समाज को सही दिशा प्रदान करना होना चाहिए।

गिरीश कर्नाड, श्रीराम लागू और बीना का परिपक्व अभिनय धारावाहिक अपना अपना आसमान को बेजोड़ बनाता है।

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