आपकी दिनचर्या पर निर्भर करता है आपका स्वास्थ्य

स्वास्थ्य के लिए आदर्श दिनचर्या

वैद्य चन्द्रकान्त गौतम

स्वास्थ्य के लिए आदर्श दिनचर्या

उत्तम स्वास्थ्य एवं संस्कार निर्माण की दृष्टि से जीवन में दिनचर्या का महत्वपूर्ण स्थान है। दिनचर्या में जागरण, शौच विसर्जन, शारीरिक स्वच्छता, आहार-विहार, व्यायाम, स्वास्थ्य आदि शामिल होते हैं। इसलिए हमारी दिनचर्या सन्तुलित और नियमित होनी चाहिए। एक नियमित आदर्श दिनचर्या के कुछ बिन्दु निम्न हैं:-

प्रातः जागरण

हमें सूर्योदय से पूर्व – ब्रह्म मुहूर्त में ही उठ जाना चाहिए। यह दीर्घायु देने वाला माना जाता है। हमारे मनीषियों के अनुसार-ब्राह्मो मुहूर्त उतिष्ठेत् स्वस्थो रक्षार्थ मानुष:। अर्थात् दीर्घ जीवन एवं स्वास्थ्य के लिए मनुष्य को ब्रह्म मुहूर्त में उठना चाहिए। एक अंग्रेजी कहावत भी इसी बात को प्रतिपादित करती है: Early to bed and early to rise, makes a man healthy, wealthy and wise.
प्रातः उठकर भगवान का स्मरण करना चाहिए तथा अपने माता-पिता व बड़ों को प्रणाम करना चाहिए।

उषापान

प्रातः काल उठने के पश्चात पर्याप्त मात्रा में जल पीना चाहिए। यदि ताम्र पात्र में रात्रि का रखा हुआ जल पिया जाए तो अधिक श्रेष्ठ रहता है। इसे उषापान कहते हैं। यह मल विसर्जन में सहायक रहता है।

मल विसर्जन

उषापान के पश्चात मल त्याग करना चाहिए। जिसका हाजमा ठीक है, उसका स्वास्थ्य ठीक रहता है। मल विसर्जन ठीक से न होने से शरीर में कई बीमारियां घर कर लेती हैं।

भ्रमण

प्रातः काल की शुद्ध हवा में घूमना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है। इससे शरीर को ताजगी व स्फूर्ति मिलती है। घूमते समय श्वास लंबा और गहरा लेना चाहिए। जो व्यक्ति व्यायाम नहीं कर सकते उनके लिए प्रातः काल घूमना बहुत अच्छा रहता है।

मुख शुद्धि

जीभ तथा दांतों पर रात भर में मैल जमा हो जाता है। जिसको साफ करना जरूरी होता है। दातुन, मंजन अथवा ब्रश व टूथपेस्ट से दांतों और मुख की सफाई करनी चाहिए। नीम व बबूल के दातुन उपलब्ध हो सकें तो अति उत्तम, इनसे मुंह एवं दांतों का व्यायाम भी हो जाता है।

तेल मालिश

तेल मालिश से शरीर में जीवनी शक्ति का संचार होता है। रोम-कूपों द्वारा शरीर में पहुंचकर तेल अंग-प्रत्यंग को सुंदर, सुडौल, चमकीला एवं सुगठित बनाता है। कम से कम सप्ताह में एक बार तो तेल मालिश कर ही लेनी चाहिए।

व्यायाम-आसन-प्राणायाम

जीवित रहने के लिए भोजन का जितना महत्व है, उतना ही महत्व स्वास्थ्य के लिए व्यायाम, आसन और प्राणायाम का है। आयु और आवश्यकता व अनुकूलता के अनुसार व्यायाम और आसन करना चाहिए।  जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, प्राणायाम का समय बढ़ाते रहना चाहिए। नियमित व्यायाम आदि करने से शरीर में चेतना, शक्ति व उत्साह जागृत होता है और शरीर की कार्य क्षमता बढ़ती है।

स्नान

स्नान नित्य करना चाहिए। स्नान शरीर को स्वस्थ और शुद्ध रखने के लिए एक सर्व सुलभ साधन है। स्नान ठंडे पानी से करना चाहिए। नित्य प्रति ठंडे पानी से स्नान करने से स्नायु तंत्र मजबूत होता है, शरीर में बल तथा शक्ति का संचार होता है, मन प्रसन्न रहता है, आलस्य और चिंता दूर होती है।

ईश वंदना

स्नान के पश्चात अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए उनकी वंदना, प्रार्थना पाठ आदि करना चाहिए।

अल्पाहार

प्रातः कालीन अल्पाहार हल्का होना चाहिए। इसमें दूध का सेवन भी किया जाए तो अधिक श्रेष्ठ रहता है।

अध्ययन (विद्यार्थियों के लिए)

ईश वंदना व अल्पाहार के पश्चात अध्ययन करना चाहिए। प्रातः काल का समय अध्ययन के लिए अति श्रेष्ठ रहता है। इस समय नियमित रूप से मन लगाकर पढ़ना, मनन, स्मरण करना चाहिए।

स्वाध्याय

क्रियाशील दिनचर्या में कुछ समय निकालकर, सद्-साहित्य व ग्रन्थों का अध्ययन, मनन, चिन्तन, जप, ध्यान आदि भी करना चाहिए।

संतुलित आहार

अच्छे स्वास्थ्य के लिए पौष्टिक एवं संतुलित भोजन आवश्यक है। भोजन शारीरिक दृष्टि के साथ-साथ मानसिक दृष्टि से भी बहुत महत्व रखता है। भोजन स्वादिष्ट हो, सुपाच्य एवं प्रिय हो, शरीर को स्थिरता एवं हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देने वाला होना चाहिए। ऐसा भोजन सात्विक प्रकृति की श्रेणी में आता है। कड़वे, खट्टे, अति गर्म, तीक्ष्ण, रूखे एवं दाहकारक पदार्थों वाला भोजन राजसी प्रकृति की श्रेणी में आता है। अधपका, बासी, रस-रहित, उच्छिष्ट एवं अपवित्र पदार्थों वाला भोजन तामसी प्रकृति की श्रेणी में आता है। कहा भी गया है, जैसा खाए अन्न वैसा होय मन। इसलिए सात्विक भोजन ही सर्वोत्तम है।

शयन

शयन में सिरहाना उत्तर दिशा की ओर नहीं होना चाहिए। दक्षिण और पूर्व दिशा सिरहाने की दृष्टि से अधिक ठीक रहती है। शयन हमेशा बांयी करवट करना चाहिए।

(लेखक आयुर्वेद विभाग, राजस्थान सरकार में कार्यरत हैं)

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