लिवइन और समलैंगिक जोड़ों को नहीं मिलेगी किराए की कोख

लिवइन और समलैंगिक जोड़ों को नहीं मिलेगी किराए की कोख

प्रमोद भार्गव

लिवइन और समलैंगिक जोड़ों को नहीं मिलेगी किराए की कोखलिवइन और समलैंगिक जोड़ों को नहीं मिलेगी किराए की कोख

केंद्र सरकार ने लिवइन और समलैंगिक युगलों को किराए की कोख (सरोगेसी) के जरिए माता-पिता बनने का अधिकार देने से साफ मना कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक याचिका का उत्तर देते हुए सरकार ने कहा है कि ऐसे जोडों को सरोगेसी एक्ट के दायरे में लाना कानून के दुरुपयोग को बढ़ावा देना होगा। साथ ही ऐसे मामलों के संदर्भ में इस कोख से जन्मे बच्चे के उज्जवल और सुरक्षित भविष्य को लेकर भी शंकाएं बनी रहेंगी। सरकार ने अविवाहित और एकल महिला को भी इस कानून के लाभ से बाहर रखने के अपने निर्णय को सही ठहराया है। वर्तमान कानून के अनुसार केवल दो ही स्थितियों में एकल महिला को किराए की कोख की अनुमति है- या तो वह विधवा हो और समाज के डर से स्वयं बच्चा पैदा न करना चाहती हो अथवा वह तलाकशुदा होने के बावजूद पुनर्विवाह करने की इच्छुक न हो। इन दोनों स्थितियों में महिला की आयु 35 साल से अधिक होने की बाध्यकारी शर्त लागू है। भारत सरकार और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने यह शपथ-पत्र किराए की कोख संबंधी कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के उत्तर में प्रस्तुत किया है। केंद्र ने स्पष्ट किया है कि यह कानून, कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त विवाहित स्त्री-पुरुष को ही अभिभावक के रूप में मान्यता देता है। जबकि अभी तक लिवइन और समलैंगिक युगलों को साथ रहने की कोई कानूनी मान्यता प्राप्त नहीं है। परिणामस्वरूप किराए की कोख से उत्पन्न बच्चे का भविष्य आजीवन प्रश्नों के घेरे में रहेगा। ऐसे उपायों से किराए की कोख का अनैतिक और अवैध व्यापार भी बढ़ सकता है। ऐसे व्यापार पर अंकुश के लिए ही भारत सरकार ने 2016 में किराए की कोख से संबंधित कानून बनाया था।    

वर्तमान कानून के अनुसार, किसी अन्य महिला की कोख के प्रयोग की अनुमति तब मिलती है, जब कानून के अनुसार विवाहित जोड़ा शारीरिक रूप से अक्षम हो या फिर गर्भधारण करने में पत्नी की जान को खतरा हो। कानून के अनुसार यह भी बाध्यकारी शर्त है, कि किराए की कोख देने वाली महिला एक तो विवाहित होनी चाहिए और दूसरे कम से कम उसका एक बच्चा भी हो। साथ ही पति की आयु 26 से 55 वर्ष और पत्नी की आयु 23 से पचास वर्ष के बीच होना आवश्यक है। नियमों के अनुसार सरोगेट मदर के हितों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने लिवइन एवं समलैंगिक विवाह के मामले की सुनवाई करते हुए शादी को लेकर की गई टिप्पणी में कहा कि इस मूल तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि विवाह स्वयं संवैधानिक संरक्षण का हकदार है, क्योंकि यह केवल वैधानिक मान्यता का मामला नहीं है। इसलिए यह कहना दूर की कौड़ी होगी कि शादी करने का अधिकार संवैधानिक अधिकार नहीं है। सरोगेसी कानून में संशोधन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई मुख्य न्यायाधीष सतीश चंद्र शर्मा और न्यायामूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद ने की। 

किराए की कोख को कानून के दायरे में इसके बढ़ते व्यापार पर अंकुश लगाने की दृष्टि से किया गया था। अब वर्तमान कानून के अनुसार, किराए की कोख का प्रयोग व्यापार के लिए नहीं होगा। ऐसे निसंतान दंपति जो बच्चे पैदा करने में शारीरिक रूप से अक्षम हैं, वे अपने किसी करीबी रिश्तेदार की सहायता ले सकते हैं। इस सुविधा को कानूनी भाषा में अल्ट्रस्टिक सर्जरी सरोगेसीकहा जाता है। इस विधेयक को लाना इसलिए आवश्यक हो गया था, क्योंकि भारत दुनिया के दंपतियों के लिए किराए की कोख का एक बड़ा व्यावसायिक नाभिकेंद्र बनता जा रहा था। जो सुविधा वास्तविक जरूरतमंदों के लिए शुरू की गई थी, वह अमीर दंपतियों के लिए शौक में बदलती जा रही थी। सूचना तकनीक के बाद भारत में प्रजनन का कारोबार तेजी से बढ़ रहा था। इसमें किराए पर कोख दिए जाने का धंधा भी शामिल था। चिकित्सा पर्यटन के बहाने विदेशी पर्यटक भारत प्रसूति पर्यटन के लिए भी आ रहे थे। भारतीय उद्योग महासंघ के 2015 में किए एक अघ्ययन के अनुसार भारत में किराए की कोख का कारोबार 2.3 अरब डॉलर हो गया था। लेकिन यह धंधा अंततः प्रकृति की प्रतिरूप महिला की कोख पर टिका था, ठीक उसी तरह, जिस तरह, उदारवादी अर्थव्यस्था प्रकृति के गर्भ में समाई खनिज संपदाओं के दोहन पर टिकी है। इस धंधे की भारी कीमत उन महिलाओं को चुकानी पड़ी है, जिन्हें अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए हर हाल में धन की आवश्यकता थी। अतएव 2016 में प्रजनन सहायक तकनीक विधेयक लाकर केंद्र सरकार ने इस गोरखधंधे पर अंकुश लगाने की पहल कर दी थी। जो एक सही कदम रहा है। लेकिन इस कानून से उन्हें परेशानी है, जिन्होंने स्त्री की आर्थिक कमजोरी को वस्तु में ढालकर उसकी कोख को बाजार के हवाले कर दिया है। वे यह भी दलील दे रहे हैं कि कठोर कानून से विदेशी मुद्रा का आगमन रुक जाएगा। अब शायद यही लोग लिवइन और समलैंगिकों को मां-बाप का दर्जा देने के बहाने इस कानून में बदलाव के प्रयास में लगे हैं।

नए विधेयक के ड्राफ्ट में प्रावधान है कि यह तकनीक सिर्फ निसंतान विवाहित दंपतियों या ऐसे ही दंपतियों के लिए उपलब्ध रहेगी, जिनमें या तो दोनों भारतीय हों या दोनों में एक भारतीय हो। एकाकी अभिभावकों को यह सुविधा नहीं मिलेगी। विवाहितों को भी शादी के 5 साल बाद यह सुविधा मिल सकेगी। 23 से 55 वर्ष की महिला की ही कोख का उपयोग केवल निशुल्क रूप में लेना होगा। किसी भी महिला को सिर्फ एक बार सरोगेट मां बनने का अधिकार प्राप्त होगा। समलैंगिक या अविवाहित रहते हुए या सह जीवन के रूप में रह रहे युगलों को इस सुविधा का लाभ नहीं मिलेगा। इस विधेयक के ड्राफ्ट में स्पष्ट उल्लेख है कि सरकार द्वारा पारित इस कानून के अनुसार निसंतान दंपति किसी भी स्थिति में कोख किराए से नहीं ले सकते हैं। नए कानून के अनुसार विदेशी और प्रवासी भारतीयों को भी इस सुविधा से वंचित कर दिया गया है। 

दरअसल पुराना कानून कई खामियों के साथ अप्राकृतिक भी था। सरोगेसी मां बनने के लिए महिला को इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन की प्रक्रिया से गुजरना होता है। इसके लिए जैविक माता-पिता के शुक्राणु और अंडाणु को परखनली में निषेचित करने के बाद जब भ्रूण पनप जाता है, तब उसे अन्य स्त्री की कोख में प्रत्यारोपित किया जाता है। गर्भाधान का यही एक मात्र उपाय है। इसका शरीर पर विपरीत असर पड़ता है, इसके गर्भपात होने की 80 प्रतिशत आशंका रहती है। ऐसी 90 प्रतिशत प्रसूति शल्य क्रिया के माध्यम से होती हैं। ऐसे में महिला की जान का संकट भी बना रहता है। इस स्थिति में कोख किराए से देने वाली महिला का न तो कोई बीमा होता थान ही उसके पति और बच्चों की कोई गारंटी लेता था। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी बड़ा प्रश्न था कि जैविक अविभावक यदि जन्मे बच्चे को  छोड़कर नौ दौ ग्यारह हो जाते हैं तो उसके पालन-पोषण का उत्तरदायित्व किसका था? यदि नवजात शिशु विकलांग या किसी लाइलाज बीमारी के साथ पैदा होता है और जैविक माता-पिता उसे लेने से इंकार कर देते हैं तो उस बच्चे की जिम्मेदारी कौन लेगा? ऐसी स्थिति में उन महिलाओं को और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ता था, जो किश्तों पर कोख किराए पर देती थीं। ऐसी ही सुविधाओं के चलते भारत किराए की कोख की वैश्विक राजधानी बन गया था।

इस हेतु एक स्वंयसेवी संगठन के अध्ययन ने कुछ चौंकाने वाले प्रश्न भी उठाए थे। विशेष तौर पर विदेशी धनवान जब किराए की कोख से संतान पाने के इच्छुक होते हैं तो वे भारत आकर एक साथ कई महिलाओं को गर्भधारण करा देते हैं। इनमें से कुछ महिलाओं में यह प्रयोग सफल हो जाता है तो वह किसी एक महिला को छोड़, बाकी का गर्भपात करा देते हैं। गर्भपात कराई गई महिलाओं को कोई धन भी नहीं दिया जाता था। यह सरासर अन्याय व अनैतिकता थी। इसी अध्ययन से खुलासा हुआ था कि कोख की कीमत 10 हजार से लेकर 30 हजार डॉलर के बीच थी। कभी-कभी इससे भी ज्यादा धनराशि दी जाती थी। लेकिन इस राशि में से सरोगेसी मां को महज 1 या 2 प्रतिशत धनराशि ही मिलती थी, बाकी अस्पताल के चिकित्सक और बिचौलिये हजम कर जाते थे।

अप्रवासी भारतीयों में सरोगेसी की मांग बहुत अधिक थी। यदि स्त्री स्वस्थ व सुंदर होने के साथ उच्च जाति और उत्तम पारिवारिक पृष्ठभूमि से होती थी तो उसे अधिक पैसा दिया जाता था। अप्रवासी दंपति भारत आकर किराए की कोख द्वारा बच्चा पैदा करना इसलिए भी अच्छा मानते थे, क्योंकि वे मनौवैज्ञानिक स्तर पर अपने को भारत से जुड़ा पाते थे, परिणामस्वरूप भारत में सरोगेसी की मांग तेजी से बढ़ रही रही थी। फिल्म अभिनेता आमिर खान और शाहरुख खान द्वारा सरोगेसी से बच्चा पैदा करने का समाचार आया तो इस धंधे में एकाएक उछाल आ गया था। लेकिन इन्होंने शौक के लिए किराए की कोख से संतान पैदा की थी, इसलिए लैंगिक अधिकार को मानवाधिकार के हनन से जोड़ने की बहस भी तेज हो गई थी और एआरटी को संसद से परित कराने का दबाव भी सरकार पर बढ़ा था। इस बहस की परिणति नए कानून के रूप में नरेंद्र मोदी सरकार ले आई थी।

इस क्रम में एक प्रश्न यह भी था कि यदि किराए की कोख लेने के दौरान पति-पत्नी में तलाक हो जाए तो वह बच्चा किसे दिया जाए? यदि दोनों ही बच्चा लेने से इनकार कर दें तो बच्चे के लालन-पालन का दायित्व किसका होगा? क्योंकि 2009 में जापान से अहमदाबाद आए एक दंपति तलाक की स्थिति से गुजर चुके थे। ऐसे में बच्चे की जैविक मां ने उसे लेने से इनकार कर दिया। हालांकि पिता बच्ची गोद लेने को तैयार थालेकिन हमारा कानून पुरुष को बच्ची गोद लेने की इजाजत विशेष परिस्थितियों मे ही देता है। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद से विदेशी नागरिक भारत आकर कोख का प्रयोग कर ही नहीं सकते हैं, इसलिए ऐसी शंकाओं पर पूर्ण विराम लग गया है। किंतु अब यदि लिवइन और समलैंगिकों को किराए की कोख से संतान पैदा करने का अधिकार मिल गया तो इस ओट में किराए की कोख से बच्चा पैदा करने का अवैध कारोबार फिर बढ़ जाएगा

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