जी हां, यह भारत है..!

लॉकडाउन चालू होने के बाद, तुरंत स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हुईं। पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक चट्टान के भांति खड़े हो गए। प्रारंभ में केरल में संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी। तब वहां के अस्पतालों को साफ करने से लेकर जम्मू और देहरादून में अटके मजदूरों को भोजन देने तक संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा का जबरदस्त नेटवर्क खड़ा किया।

– प्रशांत पोळ

दिनांक 14 अगस्त 2003 को, जब न्यूयॉर्क में दोपहर के 4 बजकर 10 मिनट हो रहे थे, तब अचानक शहर की बिजली चली गई। अमेरिका में बिजली जाने की घटनाएं कभी कभार होती हैं। इसलिए सारे भौचक्के रह गए। सारा शहर मानो थम सा गया। बिजली की समस्या न होने के कारण जनरेटर्स की व्यवस्था नहीं थी। अनेक लोग लिफ्ट में अटक गए। सारी मेट्रो ट्रेन बीच में ही रुक गईं….. ।

कुछ देर बात पता चला, केवल न्यूयॉर्क ही नहीं, यहॉं तो सारा उत्तर-पूर्व अमेरिका अंधेरे में हैं। न्यूजर्सी, मेरिलैंड, कनेक्टिकट, मिशिगन, मॅसेच्युएट, पेनसिल्वानिया…. ऐसे अनेक राज्यों में बिजली गायब थी। ये सारे राज्य अंधेरे में थे। वहाँ की ग्रिड फेल हो चुकी थी।

यह परिस्थिति अमरीकी जनता के लिए अजीब सी थी। उन्हें सूझ ही नहीं रहा था, क्या करें। सभी कुछ तो बिजली पर आधारित था। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, सत्तर / अस्सी मंजिल वाले अपार्टमेंट में अपने घर में जाना, यह एक बड़ी समस्या थी।

खैर, 14 अगस्त की रात तो जैसे तैसे निकली। पर 15 अगस्त को अमरीकी जनता के सब्र का बांध टूट गया। वे चिल्लाने लगे, दुकाने लूटने लगे, बिलबोर्ड्स तोड़ने लगे… अकेले न्यूयॉर्क शहर में उस दिन चालीस हजार की पुलिस फोर्स रास्तों पर उतारनी पड़ी, इस अराजकता को नियंत्रण में लाने के लिए…!

2003 का यह नॉर्थईस्ट ब्लॅकआऊट, अमरीका के इतिहास पर लगा काला धब्बा है। बाद में, 2011 में जब कैलिफोर्निया में ग्रिड फेल हुई, तो वहां पर भी कुछ ऐसा ही अराजकता का नजारा था…!

आज भी न्यूयॉर्क में वही हो रहा है….।

शवों को दफनाने के लिए कब्रगाह कम पड रहे हैं। सवा लाख लोग अकेले इस शहर में संक्रमित हैं। इस शहर में 3,600 से ज्यादा लोगों की वायरस से मौत हो चुकी है।

लोग जबरदस्त डरे हुए है। मदद के लिए सब सरकार पर आश्रित हैं। पूरे अमरीका में व्यवस्था ही सरकार केन्द्रित है। लेकिन इस महामारी में सरकार नाम की व्यवस्था ही चरमरा गई है।

इंग्लैंड भी इससे अछूता नहीं। इसके प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, कोविड-19 से संक्रमित हैं और अस्पताल के आई सी यू में भर्ती हैं। इस छोटे से देश में पचपन हजार से भी ज्यादा लोग संक्रमित हैं और इस महामारी से मरने वालों की संख्या 6,200 के पार हो गई है। सारा देश असमंजस में है।

किसी जमाने में जो रोमन साम्राज्य दुनिया का सबसे ताकतवर साम्राज्य कहलाता था, वही आज टूट चुका है। इटली में हालात इतने ज्यादा खराब हैं, की वर्णन करना कठिन है। एक लाख छत्तीस हजार संक्रमित और सत्रह हजार से ज्यादा मौत…. यही हाल स्पेन का है।

ये सारे विकसित देश हैं। प्रगत देश हैं। ‘मॉडर्न’ देश हैं। कुछ अंशों में विश्व का भाग्य तय करने वाले देश हैं। आज ये सब असहाय हैं। ये टूट चुके हैं। इनको इस परिस्थिति से निकलने का रास्ता नहीं दिख रहा है। इन सारे देशों में सोशल सिक्युरिटी है। सरकार केन्द्रित व्यवस्था है। लेकिन जहां सरकार खुद ही ऑक्सीजन पर होगी, तो देश का क्या होगा..?
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और हमारा भारत…?

अमेरिका में ‘द ग्रेट नॉर्थ ईस्ट ब्लॅकआऊट’ होने के ठीक दो वर्ष बाद, यानि 26 जुलाई 2005 को मुंबई में इतिहास की सबसे बड़ी बाढ़ आयी। निसर्ग का रौद्र और क्रुद्ध रूप, मुंबईकरों ने देखा। सबकुछ ठप्प था।

लेकिन…

मानवता जीवित थी। 26 और 27 जुलाई के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं। अनेक अकेली महिलाएं, युवतियाँ, बच्चे… जो इस बाढ़ में फंस गए थे, उन सब को मुंबईकरों ने अपने अपने घरों में, कार्यालयों में, होटल और अस्पताल में आश्रय दिया। एक भी गलत वारदात नहीं हुई। एक भी चोरी या लूट नहीं। अनेक गरीब परिवारों ने इन फंसे हुए यात्रियों को भोजन दिया, कपड़े दिये और दी हिम्मत..!

यह भारत है…
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मेरे अनेक विदेशी मित्र हैं। उनमें से कुछ फोन कर के पूछ रहे थे, “आपके देश ने ये सब कैसे सम्हाल लिया ? इतना बड़ा, इतना विशाल देश। सघन बसाहट वाला। लेकिन न सिर्फ कोविड – 19 संक्रमितों की संख्या पर आपने नियंत्रण रखा है वरन सारे देश में कानून व्यवस्था बिलकुल चुस्त – दुरुस्त है। इतने बड़े देश में लॉकडाउन करना कैसे संभव हुआ..?”

प्रश्न जायज हैं।

पूरी दुनिया में पंद्रह लाख संक्रमित हैं। चौरासी हजार लोग इस वायरस से मर चुके हैं और भारत में संक्रमितों की संख्या है – नौ हजार और मरने वालों की संख्या 308. (यदि ‘तब्लिगी जमात’ ने यह सब तमाशा नहीं किया होता, तो हमारे यहां संक्रमितों की और मृतकों की संख्या बहुत कम रहती)

दुनिया मानती है कि हम बहुत ज्यादा अनुशासित नहीं हैं। लेकिन कुछ तो बात हैं हमारी हस्ती में, की हम इस संकट का धैर्य से प्रतिकार कर रहे हैं।

पूरे विश्व में, छोटे छोटे से देशों ने भी पूर्ण लॉकडाउन नहीं किया। चीन ने भी पूरे देश में, पूरा लॉकडाउन नहीं किया। लंदन की ट्यूब रेल, जर्मनी की U और S Bahn, स्पेन की मेट्रो ट्रेन आज भी दौड़ रही हैं। अमरीका में इस महामारी के प्रकोप से हजारों लोग मर रहे हैं, पर ट्रम्प साहब पूरे देश को ठप्प करने के पक्ष में नहीं हैं। उन्हें लगता है, अमरीका की सारी इकॉनोमी इसके कारण बैठ जाएगी।

लेकिन हमने यह जो निर्णय लिया, वह बहुत ज्यादा होशियारी वाला निर्णय साबित हो रहा है। इस विशाल देश को बंद करना आसान नहीं था। बहुत समस्याएँ थीं। रोजदारी पर काम करने वाले, मेहनतकश मजदूर, छोटे बड़े उद्योग, व्यापारी इन सभी पर गाज गिरने वाली थी। लेकिन हमारे देश ने इसको हिम्मत के साथ लिया। लॉकडाउन चालू होने के बाद, तुरंत स्वयंसेवी संस्थाएं सक्रिय हुईं। पूरे देश में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक चट्टान के भांति खड़े हो गए। प्रारंभ में केरल में संक्रमितों की संख्या बढ़ रही थी। तब वहां के अस्पतालों को साफ करने से लेकर जम्मू और देहरादून में अटके मजदूरों को भोजन देने तक संघ के स्वयंसेवकों ने सेवा का जबरदस्त नेटवर्क खड़ा किया। महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे अनेक स्थानों पर सरकारी अमले ने संघ स्वयंसवेकों से मदद मांगी। भोजन की व्यवस्था होती गई। सरकारी तंत्र खड़ा हो रहा था। लेकिन हमारा देश केवल सरकारी तंत्र से नहीं चलता। एक सौ तीस करोड़ की जनता यह इस देश की ताकत है। ऐसे ही प्रसंगों में साबित होता है कि यह मात्र नदी, नालों, पहाड़ों, मैदानों, खेतों, खलिहानों का देश नहीं, यह एक जीता जागता राष्ट्रपुरुष है…!

शहरों के अपार्टमेंट में काम करने वाले सुरक्षा कर्मी, सफाई कर्मियों को रोज चाय, नाश्ता, भोजन आने लगा। अनेक स्थानों पर सफाई कर्मियों का सम्मान हुआ। पंजाब में उन पर फूल बरसाए गए। अनेक चौराहों पर पुलिस कर्मियों को नाश्ता – पानी पहुंचाया गया।

पुलिस कर्मियों ने भी गज़ब की संजीदगी दिखाई। शहरों से अपने गाँव लौटने वाले मजदूरों को संघ स्वयंसेवकों ने, पुलिस कर्मियों ने भोजन खिलाया, उनके रुकने का प्रबंध किया। जहां संभव हुआ, वहां उन्हें गाँव तक पहुंचाने की व्यवस्था भी की। एक स्थान पर तो लगभग एक हजार किलोमीटर पैदल चल कर आने वाले मजदूर के पैर के छाले देखकर, पुलिस का दिल पसीज गया। उसने स्वतः उस मजदूर के पाव में मलहम लगाया…!

जी हां, यह भारत है.!
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सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव पहुंचने वाले मजदूर हों, या फिर अपना बड़ा सा उद्योग – व्यवसाय बंद कर के घर में बैठा उद्योगपति, सायकल रिक्शा चलाने वाला मेहनतकश हो, या रास्ते पर व्यवसाय करने वाला या फिर रोज की रोटी की फिक्र करने वाला छोटा सा ठेलेवाला…. इन सब को तकलीफ जरूर हुई। बहुत ज्यादा हुई। लेकिन किसी ने सरकार को गाली नहीं दी, सरकार के विरोध में पत्थर नहीं उठाए, दुकानें नहीं लूटीं।

बल्कि, चाहे 21 मार्च का जनता कर्फ़्यू हो, 22 मार्च का कृतज्ञता ज्ञापन हो या फिर पांच अप्रैल की रात नौ बजे एकजुटता के दीप जलाने का प्रधानमंत्री मोदी जी का आह्वान हो…. इस देश की जनता ने जो एकता दिखाई, उसने विश्व में इतिहास रच दिया। यह सब अद्भुत था। फुटपाथ की छोटी सी झोपड़ी हो या बड़े महल, कोठियाँ, राजभवन या अपार्टमेंटस … सारा देश उस दिन एक ही समय जगमगा रहा था….!
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भारत का राष्ट्रपुरुष जाग रहा है। इसके बाद की दुनिया के दो हिस्से होंगे – कोरोना से पहले और कोरोना के बाद ! इस कोरोना के बाद वाले हिस्से में हम इतिहास बनाने जा रहे हैं। सारा विश्व एक अलग नजर से हमारी ओर देखेगा…।

जी हां, क्यूंकी यह भारत है..!

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