पश्चिम बंगाल : रामनवमी हिंसा से संबंधित जांच एनआईए ही करेगी
पश्चिम बंगाल : रामनवमी हिंसा से संबंधित जांच एनआईए ही करेगी
नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल सरकार को झटका देते हुए रामनवमी हिंसा से संबंधित मामलों की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को स्थानांतरित करने के कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली राज्य सरकार की याचिका सोमवार को खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने आदेश पारित किया कि एनआईए अधिनियम की धारा 6 (5) के तहत जारी केंद्र सरकार की अधिसूचना को कोई चुनौती नहीं दी गई थी, जिसके द्वारा केंद्र ने अंततः इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया था। न्यायालय ने कहा, “एनआईए द्वारा की जाने वाली जांच की सटीक रूपरेखा का इस स्तर पर अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। इस पृष्ठभूमि में और केंद्र सरकार की अधिसूचना को चुनौती के अभाव में, हम विशेष अनुमति याचिका पर विचार नहीं कर रहे हैं।”
सर्वोच्च न्यायालय तृणमूल कांग्रेस सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के अप्रैल 2023 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें मार्च में राज्य के कई इलाकों में रामनवमी जुलूस के दौरान हुई हिंसा की एनआईए जांच का निर्देश दिया गया था।
मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने मई में कहा था कि एनआईए तब जांच कर सकती है, जब इसमें अनुसूचित अपराध शामिल हों।
हालांकि, पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि यहां कोई अनुसूचित अपराध नहीं है और मामलों में इस्तेमाल किए गए विस्फोटक विस्फोटक अधिनियम के तहत नहीं आते हैं। सिंघवी ने दलील दी कि एनआईए द्वारा पश्चिम बंगाल पुलिस अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया जा रहा है।
उच्च न्यायालय ने सुवेंदु अधिकारी और प्रियंका टिबरेवाल द्वारा अदालत के समक्ष अपील के लिए दायर जनहित याचिका (पीआईएल) पर आदेश पारित किया था।
उच्च न्यायालय का रुख कर आरोप लगाया था कि हिंसा में कई बमों का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें पुलिस कर्मियों सहित कई लोग घायल हो गए थे।
विधानसभा चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री (सीएम) ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाली टिबरेवाल ने आरोप लगाया कि बनर्जी ने पश्चिम बंगाल को हिन्दू-मुस्लिम राज्य में विभाजित कर दिया है, और उन्हें त्यौहारों के दौरान कोई भी सार्वजनिक बयान देने से रोकने का आदेश मांगा।
10 अप्रैल को हुई एक विस्तृत सुनवाई के दौरान, उच्च न्यायालय ने यहां तक राय दी थी कि हावड़ा और दलखोला जिलों में हुई हिंसा, प्रथम दृष्टया, “पूर्व नियोजित” थी।