बीमारी

एक ओर तो स्वास्थ्यकर्मियों को शपथ दिलाई जाती है कि वे जाति, धर्म, क्षेत्र और नस्लवाद से ऊपर उठकर अपना कर्तव्य निभाएंगे, तभी तो कई विदेशी मरीज भारत आकर अपना उपचार करवाते हैं और कई भारतीय भी अपना उपचार विदेश जाकर करवाते हैं। परंतु आज दिल्ली सरकार स्वास्थ्यकर्मियों के कर्तव्य को अपने अविवेकपूर्ण निर्णय से बांध रही है।

शुभम वैष्णव

कोविड-19 नामक बीमारी के उपचार की जरूरत सभी को है। परंतु बीमार सरकारी तंत्र का इलाज कौन करेगा? इसका उदाहरण दिल्ली सरकार का यह निर्णय है कि दिल्ली के अस्पतालों में केवल दिल्लीवासियों का ही उपचार किया जाएगा।
अब सवाल यह है कि कोरोना से पीड़ित गैर दिल्लीवासियों का उपचार कौन करेगा? क्या उसे उपचार पाने के लिए वापस अपने गृह नगर जाना पड़ेगा और जो गृह नगर नहीं जा पाया तो क्या उसे ऐसे ही मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा?

एक ओर तो स्वास्थ्यकर्मियों को शपथ दिलाई जाती है कि वे जाति, धर्म, क्षेत्र और नस्लवाद से ऊपर उठकर अपना कर्तव्य निभाएंगे, तभी तो कई विदेशी मरीज भारत आकर अपना उपचार करवाते हैं और कई भारतीय भी अपना उपचार विदेश जाकर करवाते हैं। परंतु आज दिल्ली सरकार स्वास्थ्यकर्मियों के कर्तव्य को अपने अविवेकपूर्ण निर्णय से बांध रही है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं पाने का हक प्रत्येक भारतवासी को है। क्या सिर्फ दिल्लीवासी ना होने के कारण किसी बीमार मरीज को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान ना करना उचित निर्णय है? जबकि हमारा संविधान “हम भारत के लोग” की प्रस्तावना पर आधारित है। लेकिन आज जिस तरीके से क्षेत्रीयता के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है यह दुर्भाग्यपूर्ण है।

इस कोरोना के संकट काल में हम सबको मिलकर कोरोना से लड़ना है और कोरोना को मात देनी है। यह समय अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने का नहीं है बल्कि मिल जुलकर काम करने का है।

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